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Indira Ekadashi 2018: इंदिरा एकादशी व्रत से दिलाएं पितरों को मोक्ष

By Pt. Gajendra Sharma
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नई दिल्ली। आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी इंदिरा एकादशी के नाम से जानी जाती है। पितृपक्ष में आने के कारण इस एकादशी का महत्व कई गुना बढ़ जाता है। मान्यता है कि यदि कोई पूर्वज जाने-अनजाने हुए अपने पाप कर्मों के कारण अपने कर्मों का दंड भोग रहे हैं तो उनके वंशज इस एकादशी पर विधिपूर्वक व्रत कर इसके पुण्यफल को उनके नाम पर दान कर दें तो पूर्वजों को मोक्ष मिल जाता है और मरने के बाद व्रती भी बैकुंठ में निवास करता है।

इंदिरा एकादशी व्रत कथा

इंदिरा एकादशी व्रत कथा

भगवान श्रीकृष्ण धर्मराज युधिष्ठिर को इंदिरा एकादशी का महत्व बताते हुए कहते हैं कि यह एकादशी समस्त पाप कर्मों का नाश करने वाली है। इस एकादशी को करने वाले व्रती के साथ-साथ उनके पितरों की भी मुक्ति हो जाती है। हे राजन! इंदिरा एकादशी की जो कथा मैं तुम्हें सुनाने जा रहा हूं। इसके सुनने मात्र से ही वाजपेय यज्ञ के समान फल की प्राप्ति होती है।

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कथा

कथा

कथा कहते हुए श्रीकृष्ण बताते हैं कि सतयुग में महिष्मति नाम की नगरी में राजा इंद्रसेन राज करते थे। वे बड़े धर्मात्मा थे और उनकी प्रजा सुख चैन से रहती थी। राज्य में धर्म कर्म के सारे कार्य अच्छे से किए जाते थे। एक दिन नारद जी इंद्रसेन के दरबार में जाते हैं। इंद्रसेन उन्हें प्रणाम करते हुए उनके आने का कारण पूछते हैं। तब नारद जी कहते हैं मैं तुम्हारे पिता का संदेश लेकर आया हूं जो इस समय पूर्व जन्म में एकादशी का व्रत भंग होने के कारण यमराज के निकट दंड भोग रहे हैं। नारदजी के मुख से इंद्रसेन अपने पिता की पीड़ा को सुनकर व्यथित हो गए और पिता के मोक्ष का उपाय पूछने लगे। तब देवर्षि ने कहा कि राजन तुम आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करो और इस व्रत के पुण्य को अपने पिता के नाम दान कर दो। इससे तुम्हारे पिता को मुक्ति मिल जाएगी। राजा इंद्रसेन ने नारदजी द्वारा बताई विधि के अनुसार एकादशी व्रत किया। जिससे उनके पिता की आत्मा को शांति मिली और मृत्यु के बाद इंद्रसेन को भी मोक्ष की प्राप्ति हुई।

व्रत की पूजा विधि

व्रत की पूजा विधि

आश्विन माह के कृष्णपक्ष की दशमी तिथि के सायंकाल से ही एकादशी व्रत का पालन करना प्रारंभ कर देना चाहिए। इसके लिए दशमी तिथि को सायंकाल में भोजन न करें। एकादशी के दिन प्रात:काल उठकर नित्य क्रियाओं से निवृत होकर स्नान करें। संकल्प ले कि 'मैं सारे भोगों को त्यागकर निराहार एकादशी का व्रत करुंगा। हे प्रभु मैं आपकी शरण हूं आप मेरी रक्षा करें और मेरे अतृप्त पूर्वजों को इस एकादशी व्रत का फल प्रदान करें। भगवान विष्णु या शालिग्राम की मूर्ति के आगे विधिपूर्वक पूर्वजों का श्राद्ध करके ब्राह्मण को फलाहार करवाएं और दक्षिणा दें। द्वादशी के दिन प्रात:काल भगवान विष्णु की पूजा करके ब्राह्मण को भोजन करवाकर फिर स्वयं भोजन करें।

व्रत से लाभ

व्रत से लाभ

  • व्रत के प्रभाव से पितरों को मुक्ति मिलती है। यदि उनकी आत्मा कहीं भटक रही है। अतृप्त है तो वे मुक्त हो जाते हैं।
  • व्रत करने वाले को मृत्यु के पश्चात भगवान विष्णु के परमधाम की प्राप्ति होती है।
  • व्रत करने वाले को इस संसार में रहते हुए समस्त प्रकार के भौतिक सुख-साधनों की प्राप्ति होती है।
  • परिवार और दांपत्य जीवन में मधुरता बनी रहती है।

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English summary
Indira Ekadashi is a one of the auspicious fasting days of Hindus that falls on the ekadashi (11th day) of the Krishna Paksha (the wanning phase of moon) during the Hindu month of Ashwin.
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