धनतेरस के दिन समुद्र से प्रकट हुए थे भगवान ‘धनवंतरि’
किंवदंती है कि देवताओं और राक्षसों के बीच हुए युद्ध विराम के समझौते के बाद जब समुद्र मंथन किया गया था, तब समुद्र से चैदह रत्न निकले थे। जिनमें एक रत्न अमृत भी था। भगवान विश्णु देवताओं को अमर करने के लिए ‘धनवंतरि' के अवतार में प्रकट होकर कलष में अमृत लेकर समुद्र से निकले थे। इस दिन धनवंतरि की पूजा करने से लक्ष्मी जी प्रसन्न होकर धन वर्शा करती हैं।
इस दिन जहां भगवान धनवंतरि के प्रकटोत्सव को कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदष को ‘धनतेरस' के रूप में मनाने की सदियों पुरानी परंपरा है, वहीं धनतेरस को अमीर और गरीब वर्ग के लोगों के बीच धातु की कोई वस्तु खरीदने का भी रिवाज है। मान्यता है कि इस दिन खरीदी गई वस्तु अत्यधिक फलदायक होती है।
धर्मग्रंथों के जानकार बांदा जनपद के पनगरा गांव में रहने वाले बुजुर्ग पंडि़त बद्री प्रसाद दीक्षित बताते हैं कि ‘भगवान विश्णु ही भगवान ‘धनवंतरि' में प्रकट हुए थे, इस दिन ‘धनवन्तरि' की पूजा करने से व्यापारी वर्ग के अलावा ग्रहस्थ जीवन बिता रहे लोगों को भी लाभ होता है।'
दीक्षित पूजा-अर्चना के बारे कहतें हैं कि ‘त्रयोदष की सुबह स्नान के बाद पूर्व दिषा की ओर मुख कर भगवान धनवंतरि की मूर्ति या चित्र की स्थापना करनी चाहिए, तत्पष्चात मंत्रोच्चारण करना चाहिए और आचमन के लिए जल छोड़ना चाहिए।' वह बताते हैं कि ‘धनवंतरि की पूजा भगवान विश्णु की पूजा है, इसलिए लक्ष्मी जी प्रसन्न होकर धन की वर्शा करती हैं।'