Ganesha Visarjan 2018: जानिए क्यों होता है गणपति 'विसर्जन'?
नई दिल्ली। पूरा देश इस वक्त गणेश उत्सव में डूबा हुआ है, इस बार गणपति उत्सव का पर्व 13 सितंबर से शुरू होकर 23 सितंबर तक रहेगा, जिसका अर्थ ये हुआ कि 23 सितंबर को गणेश विसर्जन होगा। गणपति के प्रेम में डूबा पूरा देश 23 सितंबर को 'अगले बरस तू जल्दी आ कर' अपने बप्पा को अश्रुपूर्ण विदाई दे देगा, हालांकि जितनी धूम-धाम से प्रभु को चतुर्थी के दिन लाया जाता है, उतनी ही भव्यता के साथ भक्त गण, उनकी विदाई अनंत चतुर्दशी वाले दिन करते हैं।
ये 'विसर्जन' क्यों होता है
वैसे तो बहुत लोग गणपति को 3 दिन, 5 दिन या 7 दिन भी रखते हैं लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि ये 'विसर्जन' क्यों होता है और इसका महत्व क्या है, नहीं तो चलिए हम आपको बताते हैं।
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'विसर्जन' शब्द संस्कृत के शब्द से मिलकर बना है
दरअसल 'विसर्जन' शब्द संस्कृत के शब्द से मिलकर बना है, जिसका नाम है 'पानी में विलीन होना', ये सम्मान सूचक प्रक्रिया है, जिसका मकसद सिर्फ ये बताना है कि इंसान जिन पंचतत्व से मिलकर बना है, एक दिन उसी में वो मिल जाएगा।
'विसर्जन' की परंपरा
जैसे कि गणेश जी को मूर्त रूप में आने के लिए मिट्टी का सहारा लेना पड़ता है, मिट्टी प्रकृति की देन है लेकिन जब गणेश जी पानी में विलीन होते हैं तो मिट्टी फिर प्रकृति में ही मिल जाती है। मतलब ये कि जो लिया है उसे लौटाना ही पड़ेगा, खाली हाथ आये थे और खाली हाथ ही जाना पड़ेगा, इसलिए 'विसर्जन' की परंपरा बनाई गई है।
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