Ganesh Chaturthi 2018: गणेश चतुर्थी को चांद क्यों नहीं देखना चाहिए?
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नई दिल्ली। पूरा देश इस वक्त गणेश उत्सव की तैयारी में लगा है, हर कोई बप्पा के आगमन की प्रतिक्षा कर रहा है, चारों ओर धूम ही धूम देखने को मिल रही है। जो लोग इन दिनों गणपति को अपने घर लेकर आते हैं, वो काफी चीजों का ध्यान रखते हैं, पूजा स्थल से भोग सामग्री तक लोग सावधानी बरतते हैं लेकिन एक बात और है, जो कि इस दिन विशेष ध्यान देने वाली होती है, और वो ये कि इस दिन चांद का दर्शन नहीं करना चाहिए, ऐसा कहा जाता है कि इस दिन चांद को देखने से इंसान कलंक का शिकार होता है।
गणपति ने चांद को श्राप दिया था
दरअसल इसके बारे में एक कथा प्रचलित है, ऐसा पुराणों में वर्णन है कि गणपति ने चांद को श्राप दिया था कि उसका दर्शन करने से इंसान कलंक का भागीदार बनेगा। दरअसल एक बार गणेश जी मूष की सवारी करते वक्त गिर पड़े थे, जिसे देखकर चंद्रमा ने उनका काफी मजाक उड़ाया था। जिस पर गणेश जी को गुस्सा आ गया था।
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चांद ने मांगी गणपति से माफी
उन्होंने उसे डांटते हुए कहा था कि मुसीबत के वक्त मदद करने के बजाय लोगों का मजाक उड़ाने वाले चांद जाओ मैं तुम्हे श्राप देता हूं कि आज के बाद तुम इस विशाल गगन पर राज नहीं कर सकोगे। कोई भी तुम्हारी रोशनी को आज के बाद महसूस नहीं कर सकेगा। आज के बाद कोई भी तुम्हें देख नहीं सकेगा। जिसके बाद चांद को अपनी गलती का एहसास हुआ था, उसने गणपति से माफी मांगी, चांद की हालत देखकर देवतागण भी परेशान हो गए , जिसके बाद उन्होंने गणेश जी से प्रार्थना की, कि वो अपना श्राप वापस ले लें। गणेश जी ने चांद को माफ तो कर दिया लेकिन कहा कि मैं अब चाहकर भी अपना श्राप वापस नहीं ले सकता। परन्तु इस श्राप के असर को कम करने के लिए मैं तुम्हे एक वरदान जरूर दे सकता हूं।
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इसलिए गणेश चतुर्थी को चांद नहीं देखना चाहिए
गणेशजी ने चंद्रमा से कहा कि ऐसा अवश्य होगा कि तुम अपनी रोशनी खो दोगे लेकिन एक माह में ऐसा केवल एक ही बार होगा। इसके बाद तुम फिर से समय के साथ वापस बढ़ते जाओगे और फिर 15 दिनों के अंतराल में अपने सम्पूर्ण वेष में नजर आओगे, तुमने चतुर्थी के दिन मेरा अपमान किया है इसलिए जो भी व्यक्ति इस दिन तुम्हें देखेगा वो भी कलंकित होगा।
गलती से चांद का दीदार अगर हो जाए तो
लेकिन अगर कोई गलती से चांद का दीदार कर लेगा तो उसे कंलकित होने से बचने के लिए निम्न श्लोक का जाप करना होगा...
भाद्रशुक्लचतुथ्रयायो
ज्ञानतोअज्ञानतोअपिवा।
अभिशापीभवेच्चन्द्रदर्शनाद्भृशदु:खभाग्॥
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