Ganesh Chaturthi 2018: इस बार बन रहा है दुर्लभ गुरु-स्वाति योग, सुख-समृद्धिदायक रहेगा गणेशोत्सव
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नई दिल्ली। वैदिक ज्योतिष में शुभ योगों का महत्वपूर्ण स्थान है। यह योग नक्षत्र, वार, तिथि से मिलकर बनते हैं। जन्मकुंडली में विशेष ग्रहों की युति से शुभ-अशुभ योगों का निर्माण होता है। जब शुभ योगों में कोई कार्य किया जाए तो सिद्धिदायक होता है, जबकि अनजाने में अशुभ योगों में कोई कार्य हो जाए तो उस कार्य के पूर्ण होने में संदेह रहता है। भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दिन पार्थिव गणेश की स्थापना के साथ दस दिवसीय गणेशोत्सव प्रारंभ होता है। इस बार 13 सितंबर को चतुर्थी आ रही है, जिसमें एक अत्यंत दुर्लभ और शुभ योग बन रहा है। यह योग है 'गुरु-स्वाति योग"।
यह है स्वाति नक्षत्र का महत्व
वैदिक पंचांगों के अनुसार चतुर्थी तिथि के दिन गुरु-स्वाति संयोग होने से गणेशजी की स्थापना सुख-समृद्धि और सर्वसिद्धिदायक होती है। 27 नक्षत्रों में स्वाति नक्षत्र का स्थान 15वां होता है और इसे पुष्य नक्षत्र की तरह की शुभ और कार्यसिद्ध नक्षत्र माना गया है। इस नक्षत्र के अधिपति देवता वायुदेव होते हैं। इस नक्षत्र के चारों चरण तुला राशि के अंतर्गत आते हैं जिसका स्वामी शुक्र है। शुक्र धन, संपदा, भोग विलास, भौतिक वस्तुओं और हीरे का प्रतिनिधि ग्रह है। इस दिन बृहस्पतिवार होने से यह देवताओं के गुरु का दिन है। इसलिए इस नक्षत्र और वार में रिद्धि सिद्धि के दाता भगवान श्रीगणेश की स्थापना करने से घर-परिवार में सुख-समृद्धि का वास होगा।
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शुभफल प्रदाता गणेश चतुर्थी
शास्त्रीय मान्यता के अनुसार शुभ दिवस, शुभ नक्षत्र में श्री गणेश का आगमन सर्वत्र शुभफल प्रदाता माना गया है। भाद्रपद मास की चतुर्थी पर इस प्रकार का संयोग कई वर्षों बाद बना है। क्योंकि चतुर्थी तिथि के देवता भगवान गणेश हैं, जो रिद्धि सिद्धि प्रदान करते हैं। बृहस्पति जिन्हें ज्ञान का प्रदाता माना गया है। वायु देवता जो मनुष्य में पंच प्राण को संतुलित रखते हैं। इस दृष्टि से ज्ञान बुद्धि का संतुलन कार्य में सिद्धि प्रदान करता है। अत: गुरु स्वाति योग में दस दिवसीय गणेशोत्सव विभिन्न् प्रकार की आराध्ाना से मानोवांछित फल प्रदान करने वाला रहेगा।
मूर्ति स्थापना किस दिशा में करें
- पूर्व दिशा : पूर्व दिशा के ईशान कोण में विधि विधान से भगवान गणेश की मूर्ति स्थापित कर दस दिन तक नियमित आराधना करने से घर में स्थिर लक्ष्मी का वास होता है। साथ ही कार्य में सफलता मिलती है।
- उत्तर दिशा : मध्य उत्तर दिशा से वायव्य कोण की तरफ बढ़ते हुए मूर्ति स्थापना कर पूजा करने से आर्थिक प्रगति, सही गलत को पहचानने की क्षमता तथा सुरक्षा कवच की प्राप्ति होती है। रुके हुए कार्य की शुरुआत के लिए भी यह दिशा शुभ है।
- पश्चिम दिशा : पश्चिम दिशा में गणपति स्थापना कर पूजा अर्चना करने से संकट तथा बाधाओं का निवारण होता है। मनोवांछित फल की प्राप्ति के लिए भी इस दिशा में गणपति पूजन को श्रेयष्कर माना गया है।
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