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हरियाणा के सूरजकुंड हस्‍तशिल्‍प मेले पर निबंध

By Ajay Mohan
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परंपरा, विरासत और संस्‍कृति के अद्भुत समन्‍वय के साथ-साथ माटी की महक सूरजकुंड हस्‍तशिल्‍प मेले की पहचान है। यह मेला हर साल हरियाणा सरकार द्वारा फरवरी के महीने में आयोजित किया जाता है।

Essay on Surajkund Crafts Mela in Hindi

हर साल मेले का अलग थीम होता है और थीम के अनुसार ही मेला स्थल की साज-सज्जा की जाती है। दुनिया भर से लोग इस मेले को देखने आते हैं। सूरजकुण्ड हस्तशिल्प मेला एक ही स्थान पर भारतीय कला, संस्कृति और संगीत की समृद्ध परंपरा भी प्रस्‍तुत करने में अग्रणी रहा है।

मेले का उद्देश्य भारत के परपरागत रीति-रिवाजों को कायम रखना है और यह दर्शकों की सांस्कृतिक समझ को बढ़ाने में सहायक है। पूरा माहौल, प्रस्तुत संगीत और मेला मैदान में बिक रहे तरह-तरह के उत्पाद एक लघु भारत होने का एहसास कराते हैं। दोनों चौपालों पर होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रम हर शाम नाट्यशाला की प्रस्तुतियां हमारी संस्कृति की मधुरता को प्रद्शित करती हैं।

इस माहौल को खासतौर पर मेले की थीम के अनुरूप बनाया जाता है। इसलिये मेले में आने वाले लोगो को आनंद का एहसास होता है। यह मेला न केवल दुनिया की हलचल से दूर एक आदर्श जगह है, बल्कि कलाकारों, फैशन डिजाइनरों और व्यंजन प्रेमियों के लिये एक स्वर्ग है।

शिल्पियों के लिये रोजी-रोटी का विकल्प

सूरजकुण्ड हस्तशिल्प मेला सैंकड़ों शिल्पियों के लिये रोजी-रोटी कमाने का एक अच्छा विकल्प बन गया है। अपनी कला और शिल्प के राष्ट्रीय मंच के प्रदर्शन से अन्य रास्ते भी खुलते हैं। इसलिये वे अपनी कलाओं और शिल्पों के बेहतरीन नमूने लाते हैं और उन्हें मेले में प्रदर्शित करते हैं।

मेले से नियार्तकों और खरीददारों को वार्षिक मिलन का भी अवसर मिलता है। यहां किसी विचौलिये के बिना शिल्पकार और निर्यातक आमने-सामने होते हैं। इससे शिल्पकारों को अपनी कला क्षेत्र का विस्तार करने और उसमें सुधार करने का सीधा मौका मिलता है।

27 वर्षों से कायम

सूरजकुण्ड हस्तशिल्प मेले ने पिछले 26 वर्षों में भारतीय पयर्टन के मानचित्र पर अपनी विशेष पहचान दर्ज की है। मेले में मोहक संस्कृति, प्राचीन शिल्पों और परपराओं तथा विरासत की झलक मिलती है, जो अपनी क्षमता से इतिहास बन गई है।

मुख्‍य रूप से केन्दीय पर्यटन मंत्रालय के तत्वावधान में आयोजित यह मेला वास्तव में विभिन्न एजेंसियों-हस्तशिल्प और हथकरघा के विकास आयुक्तों और संस्कृति तथा विदेश मंत्रालयों के सामूहिक और एकजुट प्रयासों का फल है। हरियाणा पर्यटन और थीम राज्य असम के पर्यटन विभाग नें संयुक्त रूप से मेले का आयोजन किया है और प्रबन्धों में सम्रवय रख रहे हैं।

भारतीय कला, संस्कृति और परपराओं के 15 दिन के इस महोत्सव के लिये देश भर के सर्वश्रेष्ठ शिल्पी और लोक कलाकार अपने उत्पादों तथा कला-कौशल के साथ यहां आते हैं। यह मेला पर्यटन उद्योग के दिल्ली और आसपास के क्षेत्र में वर्ष भर होने वाली गतिविधियों में सबसे अधिक महत्वपूर्ण मेला है। पिछले वर्ष इस मेले को 8 लाख लोगों ने देखा और इस वर्ष यह संख्या और भी अधिक रहने की संभावना है।

Essay on Surajkund Crafts Mela in Hindi

1987 में शरू हुआ था सूरजकुंड मेला

सूरजकुण्ड हस्तशिल्प मेला वर्ष 1987 में शरू हुआ था लेकिन किसी एक राज्य / केन्द्र शासित प्रदेश को थीम राज्य के रूप में शामिल करने का सिलसिला वर्ष 1989 में शुरू हुआ था। 1989 के बाद से एक राज्य को हर साल मेले के थीम राज्य के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। थीम राज्य को मेला मैदान में एक यादगार ढांचा / द्वार का निर्माण करना होता है।

सभी थीम राज्यों की प्रतिकृतियां सूरजकुण्ड मेले के मैदान में स्थापित की गई हैं, जिनसे भारत की विविधता परिलक्षित होती है। तीस एकड़ भूमि में लगभग 600 कुटीर बनाये जाते हैं। जिला प्रशासन की सहायता से सुरक्षा, अग्नि शमन और यातायात के व्यापक प्रबन्ध किये जातें हैं। एक स्थल पर फूड कोर्ट बनाया जाता है। जहां तरह-तरह के व्यंजन और अल्प आहार उपलब्ध होते हैं।

इस मेले में थाईलैंड, तजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान, किर्गिस्तान और कांगो समेत कई देशों के कलाकार अपनी कला का जौहर दिखाने आ चुके हैं और आते भी हैं।

मेला स्थल का इतिहास

सूरजकुण्ड का इतिहास बहुत पुराना है। इस स्थान की सुन्दरता से आकर्षित होकर राजा सूरजपाल ने यहां अपना गढ़ बनाया और यहां पर एक सूर्य मंदिर तथा सूर्य सरोवर की स्थापना की।

समय के साथ मंदिर अब नष्ट हो चुका है, लेकिन सूर्य सरोवर के अवशेष अभी भी नजर आते हैं। इसी सूर्य सरोवर के नाम से इस स्थान को सूरजकुण्ड नाम दिया गया। सूर्य सरोवर के स्थल को केन्द्र में रखकर चारों ओर कई पर्यटन सुविधाओं का विकास किया गया है।

Essay on Surajkund Crafts Mela in Hindi

मंदिर के अवशेषों के पास होटल राजहंस बनाया गया है। सूर्य सरोवर और मेला मैदान के बीच नाट्यशाला है। सूरजकुण्ड दक्षिण दिल्ली से 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और दिल्ली के मुय स्थलों से यहां पहुंचने के लिये वाहन उपलब्ध हैं ।

मेले में दर्शकों के प्रवेश के लिये 50 रूपये का टिकट रखा जाता है। विकलांगों, भूतपूर्व सैनिकों, कार्यरत सैनिकों और वरिष्ठ नागरिकों के लिये टिकट में 50 प्रतिशत की छूट दी जाती है। स्वतंत्रता सेनानियों के लिये प्रवेश निशुल्क होता है। शनिवार, रविवार और राजपत्रित अवकाश के दिनों को छोड़ कर मेले में स्कूल के बच्चे यदि स्कूल के माध्यम से स्कूल यूनिफार्म में आते हैं। उनका प्रवेश निशुल्क रहता है। टिकटें आन-लाईन और ऑफ लाईन ई-टिकटिंग के जरिये भी उपलब्ध होती है।

नोट- इस लेख में तथ्य अशोक कुमार द्वारा पीआईबी के लिये लिखे गये लेख से लिये गये हैं।

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English summary
The Surajkund Crafts Mela is organized annually by the Haryana Tourism Department in the month of February. Read essay on Surajkund Mela in Hindi.
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