गाय दान करने का सबसे उत्तम समय है पितृपक्ष
नई दिल्ली। दान या परोपकार एक ऐसा कर्म है जिसका महत्व सभी धर्मों में समान रूप से स्वीकार किया गया है। हिंदू धर्म में तो दान को सबसे बड़ा पुण्य कर्म माना गया है। जरूरतमंद को दान देने से उसका शुभ आशीर्वाद तो प्राप्त होता ही है, ऐसा करने से कुंडली के समस्त ग्रह दोष भी शांत होते हैं। वैदिक ज्योतिष में तो दान के संबंध में विस्तार से बताया गया है कि आप अपनी जन्मकुंडली के ग्रहों की स्थिति के अनुसार दान करेंगे तो अत्यंत प्रभावी होगा। खैर, दान तो कई वस्तुओं के किए जा सकते हैं, लेकिन समस्त प्रकार के दान में गौदान को सबसे बड़ा दान कहा गया है। पितृपक्ष या श्राद्धपक्ष में गौदान का सबसे बड़ा महत्व है। गौदान हर प्रकार से कल्याणकारी होता है।
गाय का दान
जी हां, यदि आप गाय का दान करते हैं तो इससे बड़ा कोई दूसरा पुण्य कार्य नहीं। अधिकांश लोग अपने परिजनों की मृत्यु के बाद उनके नाम से गाय का दान करते हैं। इसके पीछे मान्यता यह है कि मृतात्मा जब स्वर्ग या नर्क की यात्रा कर रही होती है तो उसके रास्ते में पड़ने वाली वैतरणी नदी को गाय की पूंछ पकड़कर ही पार करना होता है। जो गौदान करता है उस मृतात्मा को वही गाय वैतरणी पार करवाती है।
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जीवन में एक बार गौदान अवश्य करना चाहिए
शास्त्रों का कथन है कि सभी मनुष्यों को जीवन में एक बार गौदान अवश्य करना चाहिए। शास्त्रों में गौदान के कुछ नियम बताए गए हैं। ब्राह्मण को किया गया गोदान सही और उपयुक्त माना गया है। लेकिन यह किस तरह के ब्राह्मण को दिया जाना चाहिए, गाय कैसी होनी चाहिए और किस विधि के अनुसार गौदान किया जाना चाहिए, इन सभी के संबंध में शास्त्रों में निर्देश हैं।
अंगहीन ना हो ब्राह्मण
- आप जिस ब्राह्मण को गौदान करने जा रहे हैं, उसका कोई अंग विकृत नहीं होना चाहिए। ना ही वह अंगहीन हो। गौदान का अधिकारी वही ब्राह्मण है जो अंगहीन ना हो, यज्ञ करवा सकता हो, जिसका परिवार भरा-पूरा हो और पत्नी जीवित हो। ब्राह्मण शांत, सदाचारी और वेदपाठी हो।
- गाय के सभी अंगों में देवताओं का वास होता है। इसलिए गोदान से पूर्व गाय का श्रृंगार करना चाहिए। गाय के वस्त्र, श्रृंगार का सामान, आभूषण व अन्य सामग्रियों से गाय की पूजा करनी चाहिए। ऐसा माना जाता है कि गाय के सींगों में ब्रह्मा और विष्णु का निवास है। गाय के सिर में महादेव, माथे पर गौरी और नथुनों में कार्तिकेय का वास है। गाय की आंखों में सूर्य-चंद्रमा, नाक में कंबल और अश्वतर नाग, कानों में अश्विनी कुमार, दांतों में वासुदेव, जीभ में वरुण और गले में देवराज इंद्र। बालों में सूर्य की किरणें, खुर में गंधर्व, पेट में पृथ्वी और चारों थनों में चारों समुद्र रहते हैं। गौमुत्र में गंगा और गोबर में यमुना का निवास माना है।
- जिस गाय का दान करने जा रहे हैं, उसके सींग और खुर चमकदार होने चाहिए। उसकी तांबे जैसी पीठ हो और वह दूध देने में सक्षम हो। गौदान में कभी वृद्ध गाय दान नहीं देनी चाहिए।
- गाय के साथ सोने या कांसे के बर्तन में घी-दूध और तिल डालकर कुश के साथ उस गाय की पूंछ पर रखकर उसे दान किया जाना चाहिए। दान की पूर्णता के लिए जिस ब्राह्मण को आप गाय दान कर रहे हैं उसे साथ ही साथ धन या सोने का भी दान करें।
गौदान के लिए पितृपक्ष उत्तम क्यों?
गौदान वैसे तो वर्ष में कभी भी किया जा सकता है, लेकिन कुछ विशेष दिनों में गाय का दान किया जाए तो अति शुभफलदायी होता है। गरुड़ पुराण के अनुसार गाय दान करने का सबसे उत्तम समय पितृपक्ष कहा गया है। पितृपक्ष में दो प्रकार से गाय का दान किया जा सकता है। एक तो अपने मृत परिजनों के नाम से और दूसरा स्वयं। यदि आप अपने पितरों की प्रसन्न्ता चाहते हैं, उनका शुभ आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते हैं तो पितरों के नाम से गाय का दान पितृपक्ष में अवश्य करना चाहिए। यदि आप स्वयं गाय का दान करना चाहते हैं तो उसके लिए भी पितृपक्ष का समय सबसे अच्छा कहा गया है।
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