Success Mantra: उपदेश देने से पहले स्वयं अपनाएं
नई दिल्ली। संसार में एक चीज आमतौर पर सभी को मनपसंद होती है और वह है किसी दूसरे को उपदेश देना, सलाह देना, सिखाना। आपने अक्सर देखा होगा कि किसी एक ने अपनी समस्या बताई नहीं कि उसे सलाह देने वालों की भीड़ लग जाती है। कई बार तो ऐसे असंभव उपाय बता दिए जाते हैं, जिन्हें करना किसी के बस की बात नहीं होती। आखिर सलाह देने में लगता ही क्या है?
जब भी आप किसी को कोई सलाह दें, पहले यह देख लें कि क्या वह काम आपने स्वयं किया है या कर सकते हैं। यदि नहीं तो व्यर्थ ही उस व्यक्ति का काम ना बढ़ाएं, जो पहले से ही परेशान है। आपका यह कार्य नैतिकता के विरूद्ध कहलाएगा। इस संदर्भ में आज गांधी जी की एक आपबीती पर चर्चा करते हैं।
साबरमती आश्रम
यह उस समय की बांत है, जब गांधी जी साबरमती आश्रम में रहते थे और अपने पास आने वालों को सलाह मशविरा दिया करते थे। हर कोई उनसे सहज ही मिल सकता था। उनसे मिलने के लिए इंतजार या संकोच नहीं करना पड़ता था। यही कारण था कि आम लोग भी अक्सर अपनी सामान्य समस्याओं के निराकरण के लिए उनके पास निस्संकोच चले आते थे। ऐसे ही एक दिन एक महिला अपने चार साल के बेटे को लेकर गांधी जी के पास आई और बोली कि महात्मा जी। मेरा बेटा दिनभर गुड़ खाता है। इसके सारे दांत खराब हो गए हैं, लेकिन यह मेरी एक नहीं सुनता। आप ही कोई उपाय बताइये या आप ही इसे समझा दीजिए। गांधी जी ने उससे कहा कि बहन, आप एक सप्ताह बाद इसे लेकर मेरे पास आना, तब मैं इसे समझा दूंगा। वह महिला बच्चे को लेकर चली गई।
गांधी जी ने बच्चे के सिर पर हाथ फेरा
एक सप्ताह बाद वह महिला बच्चे को लेकर फिर गांधी जी के पास आई। उसके आते ही गांधी जी ने बच्चे के सिर पर हाथ फेरा और कहा कि बेटा, बहुत ज्यादा गुड़ नहीं खाना। इससे तुम्हें तकलीफ होगी। तुम धीरे-धीरे गुड़ कम करना और फिर छोड़ देना। उस बच्चे ने गांधी जी के बारे में बहुत सुन रखा था। उसने तत्काल गांधी जी से वादा किया कि वह आज से ही गुड़ खाना कम कर देगा।
आपने हमें एक सप्ताह बाद आने का समय क्यों दिया?
बच्चा तो बात समझ गया, लेकिन उसकी मां बड़ी हैरान हुई। उसने कहा कि महात्मा जी, यह तो आपको भगवान की तरह पूजता है। मुझे मालूम था कि यह आपकी बात ना टालेगा। पर इतनी सी बात तो आप उस दिन भी मेरे बच्चे को समझा सकते थे। आपने हमें एक सप्ताह बाद आने का समय क्यों दिया? गांधी जी हंसते हुए बोले कि बहन, उस समय मैं स्वयं रोज गुड़ खाता था। जो काम मैं खुद करता हूं, उसे करने के लिए इसे कैसे रोकता? अगर रोकता भी, तो इस पर असर नहीं होता। इसके कोमल मन का विश्वास है कि मैं जो करता हूं, सही करता हूं। इतने से बच्चे का विश्वास मैं कैसे तोड़ता। इसीलिए मैंने आपसे एक सप्ताह का समय लिया। पहले मैंने खुद गुड़ खाना छोड़ा, उसके बाद इसे मना किया, तभी यह सहज ही मेरी बात मान गया।
सही सलाह देने का सटीक तरीका
ऐसी थी गांधी जी की महानता और यही है सही सलाह देने का सटीक तरीका। यदि आपने कोई काम स्वयं किया है, तो उसके बारे में बात करते समय आपकी आंखों में एक विशेष दृढ़ता आ जाती है। इसी से सामने वाला व्यक्ति प्रभावित होता हैं तो अगली बार जब भी सलाह दें, पहले उस पर स्वयं अमल करें।
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