Diwali Rangoli Design: रंगोली के इन तरीकों से कीजिए मां लक्ष्मी को प्रसन्न
नई दिल्ली। दिवाली पर अगर लोग दिए जलाते हैं तो वहीं हर घर के आंगन और मुख्य द्वार पर रंगोली बनाने की भी परंपरा है। लोग सुंदर रंगों से अपने घरों में रंगोली मनाते हैं। माना जाता है कि रावण का वध करने के पश्चात जब श्रीराम अपनी पत्नी सीता के साथ 14 वर्षों का वनवास व्यतीत करके अयोध्या वापस लौट रहे थे, तब अयोध्या वासियों ने उनका पूरे हर्षोल्लास से स्वागत किया था। लोगों ने अपने घरों की साफ-सफाई करके उन्हें स्वच्छ बनाकर रंगों तथा फूलों की मदद से रंगोली सजाई थी और घर को दीपक से सजाया था, इसलिए तब से ही दीपावली पर रंगोली और दिए जलाने का नियम बन गया है। अगर इस भरोसे में थोड़ी सी रचनात्मकता जुड़ जाए तो सोने पर सुहागा हो जाएगा तो चलिए जानते हैं कुछ खास तरीकों के बारे में।
सुंदर आकृति आकार ले लेती है...
रंगोली दो प्रकार से बनाई जाती है, सूखी और गीली। दोनों में एक मुक्तहस्त से और दूसरी बिंदुओं को जोड़कर बनाई जाती है। बिंदुओं को जोड़कर बनाई जाने वाली रंगोली के लिए पहले सफेद रंग से जमीन पर किसी विशेष आकार में निश्चित बिंदु बनाए जाते हैं फिर उन बिंदुओं को मिलाते हुए एक सुंदर आकृति आकार ले लेती है।
गेरू और सफ़ेद खड़ी
पारंपरिक मांडना बनाने में गेरू और सफ़ेद खड़ी का प्रयोग किया जाता है। बाज़ार में मिलने वाले रंगोली के रंगों से रंगोली को रंग बिरंगा बनाया जा सकता है। रंगोली बनाने के झंझट से मुक्ति चाहने वालों के लिए अपनी घर की देहरी को सजाने के लिए 'रेडिमेड रंगोली' स्टिकर भी बाज़ार में मिलते हैं, जिन्हें मनचाहे स्थान पर चिपकाकर रंगोली के नमूने बनाए जा सकते हैं।
सुंदर आकृति
इसके अतिरिक्त बाजार में प्लास्टिक पर बिंदुओं के रूप में उभरी हुई आकृतियाँ भी मिलती हैं, जिसे जमीन पर रखकर उसके ऊपर रंग डालने से जमीन पर सुंदर आकृति उभरकर सामने आती है।
आटा या रंग का पाउडर
अगर रंगोली बनाने का अभ्यास नहीं है तो इन वस्तुओं का प्रयोग किया जा सकता है। कुछ साँचे ऐसे भी मिलते हैं जिनमें आटा या रंग का पाउडर भरा जा सकता है। इसमें नमूने के अनुसार छोटे छेद होते हैं। इन्हें ज़मीन से हल्का सा टकराते ही निश्चित स्थानों पर रंग झरता है और सुंदर नमूना प्रकट हो जाता है।
पोस्टर, क्रेयॉन, फ़ेब्रिक और एक्रिलिक
रंगोली बनाने के लिए प्लास्टिक के स्टेंसिल्स का प्रयोग भी किया जाता है। गीली रंगोली चावल को पीसकर उसमें पानी मिलाकर तैयार की जाती है। इस घोल को ऐपण, ऐपन या पिठार कहा जाता है। इसे रंगीन बनाने के लिए हल्दी का प्रयोग भी किया जाता है। इसके अतिरिक्त रंगीन रंगोली बाज़ार में मिलने वाले पोस्टर, क्रेयॉन, फ़ेब्रिक और एक्रिलिक रंगों से भी बनाई जाती हैं।
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