Dev Shayani Ekadashi 2020: सुख-संपत्ति का आशीर्वाद देंगे श्रीहरि
नई दिल्ली। आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देवशयनी एकादशी व्रत किया जाता है। यह वर्ष की सबसे महत्वपूर्ण एकादशी होती है क्योंकि इस दिन से भगवान विष्णु चार माह के लिए पाताल लोक में राजा बली के यहां योगनिद्रा में निवास करते हैं। इस बार आश्विन माह का अधिकमास होने के कारण श्रीहरि विष्णु का शयनकाल पांच माह का होगा। शयनकाल में जाने से पूर्व की यह यह अंतिम एकादशी होती है जिस पर भगवान अपने भक्तों को सुख-समृद्धि और सौभाग्य का आशीर्वाद देकर जाते हैं। इस एकादशी का व्रत करने से समस्त सुखों की प्राप्ति होती है और मनुष्य मृत्यु के पश्चात बैकुंठ लोक को जाता है।
कैसे करें देवशयनी एकादशी व्रत की पूजा
- इस एकादशी का व्रत करने से एक दिन पहले दशमी तिथि के दिन से व्रती को संयमों का पालन करना चाहिए।
- दशमी तिथि के दिन रात्रि भोजन का त्याग करे। रात में दातुन करके ककड़ी का सेवन करें, ताकि मुंह में अन्न का कोई कण बाकी ना रहे।
- एकादशी तिथि को सूर्योदय पूर्व उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करे और पूजा स्थान को भी शुद्ध कर लें।
- अब एकादशी व्रत का संकल्प लेकर दिनभर निराहार रहते हुए भगवान विष्णु के भजन, भक्ति करते रहे।
- सायंकाल के समय पूजा स्थान पर एक चौकी पर पीला वस्त्र बिछाकर उस पर भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की मूर्ति या चित्र स्थापित करे।
- अब पोषडोशपचार पूजन करें। पीले पुष्पों से भगवान का श्रृंगार करें। शुद्ध घी से बने मिष्ठान्न का नैवेद्य लगाएं।
- विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें। इसके बाद पीले रंग के रेशमी गद्दों पर भगवान काे शयन करवाएं।
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भगवान को शयन करवाते समय इस मंत्र का जाप करें
सुप्ते
त्वयि
जगन्नाथ
जमत्सुप्तं
भवेदिदम्।
विबुद्दे
त्वयि
बुद्धं
च
जगत्सर्व
चराचरम्।
अर्थात्- हे प्रभु आपके जागने से पूरी सृष्टि जाग जाती है और आपके सोने से पूरी सृष्टि, चर और अचर सो जाते हैं। आपकी कृपा से ही यह सृष्टि सोती है और जागती है। आपकी करुणा से हमारे ऊपर कृपा बनाए रखें।
देवशयनी एकादशी की कथा
सतयुग में मांधाता नगर में एक चक्रवर्ती सम्राट राज्य करता था। एक बार उसके राज्य में तीन वर्ष तक का सूखा पड़ गया। प्रजा में हाहाकार मच गया। राजा के दरबार में सभी प्रजाजन पहुंचे और दुहाई लगाई। राजा ईश्वर से प्रार्थना करने लगा कि कहीं मुझसे कोई बुरा काम तो नहीं हो गया है। अपने दुखों का हल ढूंढने के लिए राजा जंगल में अंगिरा ऋषि के आश्रम में पहुंचा। राजा ने करबद्ध होकर ऋषि से प्रार्थना की कि हे ऋषिवर मैंने सब प्रकार से धर्म का पालन किया है फिर भी मेरे राज्य में तीन वर्षों से सूखा पड़ा हुआ है। अब प्रजा के सब्र का बांध टूट गया है और उनका दुख मुझसे देखा नहीं जा रहा है। कृपा कर इस विपत्ति से बाहर निकलने का कोई मार्ग बताएं। तब ऋषि ने कहा कि राजन आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत करके भगवान विष्णु काे प्रसन्न करो।उनकी कृपा से वर्षा अवश्य होगी। राजा राजधानी लौट आया और आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी का व्रत किया। व्रत के प्रभाव से राज्य में खूब वर्षा हुई और चारों ओर खुशियां छा गई।
खास बात
- एकादशी तिथि प्रारंभ 30 जून को सायं 7.50 बजे से
- एकादशी तिथि पूर्ण 1 जुलाई को सायं 5.31 बजे तक
- एकादशी का पारणा 2 जुलाई को सुबह 5.46 से 8.28 बजे तक
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