नृत्य के माध्यम से प्रस्तुत कीं टैगोर की कृतियां
भारत-बांग्लादेश द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित इस सात दिवसीय महोत्सव के दौरान यह पहला दिन था जब दिन की सभी प्रस्तुतियां महिला कलाकारों ने प्रस्तुत की। थिएटर अदाकारा स्वातिलेखा सेनगुप्ता ने जहाँ गाँव की स्त्रियों की छिपी हुई सुन्दरता को उकेरा, वहीं कत्थक के माध्यम से सास्वती सेन ने 'नायिका' के तीन पहलुओं को जीवंत किया।
देश की सांस्कृतिक राजधानी कोलकाता की निवासी स्वातिलेखा महान सत्यजीत रे की फिल्म 'घरे बैरे' में अग्रणी महिला का चरित्र जी चुकी हैं। यह तथ्य स्वयं इस बात का द्योतक है कि वे किस स्तर की अदाकारा हैं। संगीत नाटक अकादेमी द्वारा वर्ष 2010 के लिए अदाकारी के लिए सम्मानित इस अदभुत अभिनेत्री ने गुरुदेव की विभिन्न रचनाओं के अंशों पर आधारित नाटक 'अमर प्रियो रबिन्द्रनाथ' में गाँव की सुन्दर बालाओं के चरित्र को जिया। गुरुदेव ने अपनी रचनाओं में बार बार शाश्वत सुन्दरता का जिक्र किया है।
यह सुन्दरता उन्हें गाँव की सांवली और सीढ़ी साधी लड़की में दिखाई देती है। स्वातिलेखा ने अपने तारो ताज़ा अभिनय के जरिए गुरुदेव की उसी गाँव की लड़की की छिपी हुई सुन्दरता को बड़ी ही खूबसूरती से उकेरा।
इससे पहले आज की पहली प्रस्तुति के अंतर्गत कत्थक के लखनऊ घराना से सम्बंधित दिल्ली की सास्वती सेन ने 'बालिका बोधु' में बालिका बधू, 'शुबक्खन' में छोटी उम्र में ब्याही लड़की द्वारा युवा होने पर सपनो के राजकुमार की प्रतीक्षा और 'पुजारिनी' में गौतम बुद्ध की शिष्या के जरिए गुरुदेव की रचना "नायिका" के तीन पहलुओं को जिया। अतुलनीय गुरु बिरजू महाराज की यह शिष्या वर्ष 2004-05 के लिए संगीत नाटक अकादेमी द्वारा सम्मानित हो चुकी हैं।
स्मरणोत्सव के दौरान गुरुदेव की रचनाओं से चुनकर स्त्री चरित्रों को जिस जीवटता और संवेदनशील तरीके से जिया गया है उस पर अकादेमी की उपाध्यक्ष शांता सरबजीत सिंह का कहना था, "गुरुदेव की रचनाओं में स्त्रियों की मनोस्थिति को जिस गूड रूप में दर्शाया गया है, वह अतुलनीय है। आज की प्रस्तुतियों ने उस स्त्री स्वभाव के विभिन्न आयामों को बहुत ही खूबसूरती से मंच पर उतारा।"
उल्लेखनीय है कि सात दिवसीय स्मरणोत्सव अंतिम पड़ाव तक पहुँच चुका है और कल 13 मई को स्मरणोत्सव का समापन हो जायेगा।