कृष्ण भक्तों का सबसे बड़ा पर्व चंदन यात्रा महोत्सव 7 मई से
नई दिल्ली। वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया पर्व मनाया जाता है। यह दिन ब्राह्मणों के जनक और भगवान विष्णु के अवतार भगवान परशुराम का जन्मदिवस तो है ही, लेकिन इस दिन का महत्व एक और बात से जाना जाता है। अक्षय तृतीया से चंदन यात्रा महोत्सव प्रारंभ होता है, जो ज्येष्ठ कृष्ण अष्टमी तक चलता है। इन 21 दिनों तक भगवान कृष्ण के भक्त उन्हें चंदन का लेप लगाते हैं। इसके पीछे मान्यता यह है कि वैशाख माह में भीषण गर्मी पड़ती है, इसलिए भगवान को गर्मी के प्रकोप से बचाने के लिए उन्हें चंदन लगाकर शीतलता प्रदान की जाती है।
चंदन यात्रा महोत्सव
चंदन यात्रा महोत्सव के संबंध में मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ ने स्वयं राजा इंद्रद्युम्न को यह आदेश दिया था कि वैशाख माह में चंदन महोत्सव मनाया जाए। भक्ति के विभिन्न् अंगों में भगवान के शरीर को चंदन सहित अन्य सुगंधित लेप लगाना भी शामिल है। वैशाख का महीना बहुत गर्म होता है। इसलिए चंदन का लेप लगाकर भगवान को शीतलता प्रदान की जाती है। वृंदावन के सभी मंदिरों में अक्षय तृतीया के दिन भगवान के विग्रहों को चंदन के लेप से पूरा ढंक दिया जाता है। यह उत्सव 21 दिनों तक चलता है।
चंदन लेप की परंपरा
भगवान को चंदन लगाने के पीछे एक और कथा कही जाती है। उसके अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त चैतन्य महाप्रभु के गुरु ईश्वर पुरी के गुरु माधवेंद्र पुरी भगवान को वैशाख माह में चंदन का लेप लगाया करते थे। उनका मानना था कि भगवान कृष्ण सृष्टि के कण-कण में विद्यमान हैं। इसलिए जब भगवान को चंदन लगाकर शीतलता प्रदान की जाती है तो उसका प्रभाव प्रत्येक जीव पर पड़ता है और उन्हें भी शीतलता की गहरी अनुभूति होती है। अक्षय तृतीया के दिन से शुरू होने वाले इस चंदन लेप की परंपरा ने अब 'चंदन यात्रा महोत्सव" का रूप ले लिया है।
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अर्धविग्रह को गोवर्धन पर्वत पर स्थापित किया
चंदन यात्रा की परंपरा के प्रवर्तनकर्ता गौडीय संप्रदाय के प्रमुख आचार्य माधवेंद्र पुरी एक बार गोवर्धन प्रवास पर थे। उसी समय गोपाल ने स्वप्न में दर्शन देकर उन्हें प्रकट करने का अनुरोध किया। माधवेंद्र पुरी ने गांव वालों की मदद से उस स्थान को खोदा और वहां मिले गोपाल जी के अर्धविग्रह को गोवर्धन पर्वत पर स्थापित किया। कुछ दिन बाद गोपाल ने पुरी को कहा कि जमीन में बहुत समय तक रहने के कारण उनका शरीर जल रहा है। इसलिए वे जगन्नाथपुरी से चंदन लाकर उसके लेप से उनके शरीर का ताप कम करें।
भगवान गोपीनाथ को खीर का भोग लगाया
करीब दो हजार किलोमीटर की यात्रा कर माधवेंद्र पुरी जगन्नाथपुरी गए। ओडिशा व बंगाल की सीमा पर वे रेमुन्न् गांव पहुंचे जहां गोपीनाथजी का एक मंदिर था। रात को उस मंदिर में पुजारी ने भगवान गोपीनाथ को खीर का भोग लगाया। यह देखकर पुरी ने सोचा कि अगर वे उस खीर को खा पाते तो वैसी ही खीर अपने गोपाल को भी बनाकर खिलाते। ऐसा सोचकर वे रात को सो गए। उधर भगवान गोपीनाथ ने पुजारी को रात में स्वप्न में बताया कि मेरा एक भक्त यहां आया है, उसके लिए मैंने खीर चुराई है, उसे वह दे दो। भगवान की भक्त के लिए यह चोरी इतनी प्रसिद्ध हुई कि उनका नाम ही खीर-चोर गोपीनाथ पड़ गया।
माधवेंद्र पुरी
अगले दिन माधवेंद्र पुरी के जगन्नाथपुरी पहुंचने से पहले ही खीर चोर की खबर चारों तरफ फैल गई। जगन्नाथपुरी में माधवेंद्र पुरी ने पुजारी से मिलकर अपने गोपाल के लिए चंदन मांगा। पुजारी ने माधवेंद्र पुरी को वहां के महाराजा के पास भेजा। महाराजा ने एक मन विशेष चंदन की लकड़ी पुरी को भेंट कर दी। वापस लौटते समय जब पुरी गोपीनाथ मंदिर के पास पहुंचे तो गोपाल फिर उनके स्वप्न में आए और कहा कि वो चंदन गोपीनाथ को ही लगा दें क्योंकि गोपाल और गोपीनाथ एक ही हैं। माधवेंद्र पुरी ने गोपाल के निर्देशानुसार चंदन गोपीनाथ को ही लगा दिया। तब से इस लीला के सम्मान में जगन्नाथपुरी में भी चंदन यात्रा उत्सव आरंभ हुआ।
भक्त क्या करें इस दौरान
श्रीकृष्ण भक्तों के लिए ये 21 दिन बहुत खास होते हैं। इस दौरान मंदिरों में तो भगवान को चंदन लगाया ही जाता है, कृष्ण भक्तों को अपने घर के विग्रहों को भी चंदन का लेप लगाना चाहिए। इससे भगवान को शीतलता प्राप्त होती है। वे प्रसन्न् होते हैं और भक्तों की इच्छाएं पूरी करते हैं। भगवान को चंदन लगाने के बाद जो लेप बचे उसमें से भक्त और उसका पूरा परिवार भी अपने मस्तक पर चंदन लगाए। इससे गर्मी जनित अनेक रोगों में राहत मिलती है।
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