Bakrid: जानिए कुर्बानी के पर्व ईद-उल-जुहा (बकरीद) से जुड़ी खास बातें
नई दिल्ली। कुर्बानी का पर्व 'बकरीद' कई मायनों में खास है और एक विशेष संदेश लोगों को देता है। बकरीद को अरबी में 'ईद-उल-जुहा' कहते हैं। इस्लामिक मान्यता के अनुसार हजरत इब्राहिम अपने पुत्र इस्माइल को इसी दिन खुदा के लिए कुर्बान करने जा रहे थे, तो अल्लाह ने, उनके पुत्र को जीवनदान दे दिया जिसकी याद में यह पर्व मनाया जाता है। अरबी में 'बक़र' का अर्थ है बड़ा जानवर जो जिबह किया (काटा) जाता है, ईद-ए-कुर्बां का मतलब है 'बलिदान की भावना' और 'क़र्ब' नजदीकी या बहुत पास रहने को कहते हैं मतलब इस मौके पर इंसान भगवान के बहुत करीब हो जाता है।
क्या हुआ था
हजरत इब्राहिम हमेशा बुराई के खिलाफ लड़े, उनके जीने का मकसद ही जनसेवा था। 90 साल की उम्र तक उनकी कोई औलाद नहीं हुई तो उन्होने खुदा से इबादत की तब जाकर उन्हें बेटा इस्माईल की प्राप्ति हुई। उन्हें सपने में आदेश आया कि खुदा की राह में कुर्बानी दो। उन्होंने कई जानवरों की कुर्बानी दी, लेकिन सपने उन्हें आने बंद नहीं हुए। उनसे सपने में कहा गया कि तुम अपनी सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी दो, तब उन्होंने इसे खुदा का आदेश माना और इस्माईल की कुर्बानी के लिए तैयार हो गए।
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जानवरों की कुर्बानी
ऐसा कहा जाता है कि हजरत इब्राहिम को लगा कि कुर्बानी देते समय उनकी भावनाएं आड़े आ सकती हैं, इसलिए उन्होंने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली थी लेकिन जब उन्होंने पट्टी खोली तो देखा कि मक्का के करीब मिना पर्वत की उस बलि वेदी पर उनका बेटा नहीं, बल्कि दुंबा था और उनका बेटा उनके सामने खड़ा था। विश्वास की इस परीक्षा के सम्मान में दुनियाभर के मुसलमान इस अवसर पर अल्लाह में अपनी आस्था दिखाने के लिए जानवरों की कुर्बानी देते हैं।
कुर्बानी के बकरे के गोश्त को तीन हिस्सों में बांटा जाता है
बकरीद के दिन सबसे पहले नमाज अदा की जाती है। इसके बाद बकरे या फिर अन्य जानवर की कुर्बानी दी जाती है। कुर्बानी के बकरे के गोश्त को तीन हिस्सों करने की शरीयत में सलाह है। गोश्त का एक हिस्सा गरीबों में तकसीम किया जाता है, दूसरा दोस्त अहबाब के लिए और वहीं तीसरा हिस्सा घर के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
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