आखिर, क्यों मनाई जाती है ईद-उल-जुहा (बकरीद) और क्या है कुर्बानी?
नई दिल्ली। कुर्बानी के पर्व ईद-उल-जुहा (बकरीद) के सेलिब्रेशन लिए पूरा देश जोर-शोर से तैयार है। त्याग और बलिदान का यह त्योहार कई मायनों में खास है और एक विशेष संदेश देता है। इस दिन बकरे की बलि दी जाती है लेकिन इसके पीछे मकसद ये समझाने की होती है कि हर इंसान अपने जान-माल को अपने भगवान की अमानत समझे और उसकी रक्षा के लिए किसी भी त्याग या बलिदान के लिए तैयार रहे।
जानिए क्यों बिना कपूर के नहीं होती है कोई पूजा पूरी?
आइए जानते इस पर्व से जुड़ी खास बातें...
ईद-उल-जुहा
- ईद-उल-जुहा (बकरीद) को अरबी में ईद-उल-जुहा कहते हैं।
- अजगा या जुहा का अर्थ है सुबह का वक्त यानी सूरज चढ़ने से सूरज के ढलने के बीच का समय।
- इस त्योहार को रमजान के पवित्र महीने की समाप्ति के लगभग 70 दिनों बाद मनाया जाता है।
- हजरत इब्राहिम द्वारा अल्लाह के हुक्म पर अपने बेटे की कुर्बानी देने के लिए तत्पर हो जाने की याद में इस त्योहार को मनाया जाता है।
- अल्लाह हजरत इब्राहिम की परीक्षा लेना चाहते थे और इसीलिए उन्होंने उनसे अपने बेटे इस्माइल की कुर्बानी देने के लिए कहा।
- हजरत इब्राहिम को लगा कि कुर्बानी देते समय उनकी भावनाएं आड़े आ सकती हैं, इसलिए उन्होंने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली थी।
बेटे की कुर्बानी
बेटा नहीं, बल्कि दुंबा था
जब उन्होंने पट्टी खोली तो देखा कि मक्का के करीब मिना पर्वत की उस बलि वेदी पर उनका बेटा नहीं, बल्कि दुम्बा (कुछ परंपराओं में भेड़) था और उनका बेटा उनके सामने खड़ा था। तब से ही विश्वास की इस परीक्षा के सम्मान में दुनियाभर के मुसलमान इस अवसर पर अल्लाह में अपनी आस्था दिखाने के लिए जानवरों की कुर्बानी देते हैं।
'बक़र' का अर्थ है बड़ा जानवर
अरबी में 'बक़र' का अर्थ है बड़ा जानवर जो जि़बह किया (काटा) जाता है। इसलिए भारत, पाकिस्तान व बांग्ला देश में इसे 'बकरा ईद' बोलते हैं। ईद-ए-कुर्बां का मतलब है बलिदान की भावना, अरबी में 'क़र्ब' नजदीकी या बहुत पास रहने को कहते हैं मतलब इस मौके पर भगवान इंसान के बहुत करीब हो जाता है।
गोश्त तीन बराबर हिस्सों में बांटा जाता है
इसलिए इस दिन हर वो मुसलमान जो एक या अधिक जानवर खरीदने की हैसियत रखता है, वो जानवर खरीदता है और क़ुर्बान करता है। इसका गोश्त तीन बराबर हिस्सों में बांटा जाता है। एक हिस्सा गरीबों के लिए, एक हिस्सा रिश्तेदारों और मिलने-जुलने वालों के लिए और एक हिस्सा अपने लिए होता है। जिस तरह से ईद पर गरीबों को ईदी दी जाती है, ठीक उसी तरह से बकरीद पर गरीबों को मांस बांटा जाता है।