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बछ बारस व्रत 2017: जानिए इस पूजा का महत्व और पूरी कथा

By पं. गजेंद्र शर्मा
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नई दिल्ली। भारत में कृष्ण केवल एक देवता मात्र नहीं हैं, भगवान विष्णु का अवतार मात्र नहीं हैं और ना ही असुरों का संहार कर धर्म की स्थापना करने वाले राजपुरुष मात्र हैं। वास्तविक अर्थ में तो कृष्ण भारत का उत्सव हैं, उमंग हैं, रस हैं, प्रेम हैं, जीवन का सत्व हैं। यही कारण है कि कृष्ण के जीवन के हर काल में, आयु के हर पड़ाव में कोई ना कोई उत्सव दिखाई पड़ता है। कृष्ण का जन्म एक उत्सव है, तो उनका नामकरण भी एक उत्सव है और उनका घर से पहली बार बाहर निकलना भी एक उत्सव है।

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सही मायने में श्री कृष्ण ने भारत को सिखाया कि जीवन के हर क्षण को उत्सव मानकर जीना चाहिए। आज हम श्री कृष्ण के बाल्य काल के उस दृश्य का रसास्वादन करते हैं, जब वे पहली बार घर से बाहर गाय चराने निकले थे। भारत में आज भी स्त्रियां इस दिन को बड़े चाव से बछबारस या गौत्सद्वादशी के नाम से मनाती हैं।

आइए जानते हैं इस दिन की उत्सव रीति-

बछबारस या गौवत्सद्वादशी

बछबारस या गौवत्सद्वादशी

भाद्रपद की कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को बछबारस या गौवत्सद्वादशी मनाया जाता है। इस दिन पुत्रवती स्त्रियां व्रत रखती हैं और अपने पुत्रों को सुख पहुंचाने का हर संभव प्रयास करती हैं। इस दिन पुत्रों की पसंद के व्यंजन बनाए जाते हैं और उन्हें उपहार भी दिए जाते हैं। कहीं- कहीं माताएं पु़त्रों की नजर भी उतारती हैं। यह व्रत पुत्र की लंबी आयु और सुखी जीवन की कामना से किया जाता है। इस दिन स्त्रियां मंूग, मोठ और बाजरा अंकुरित कर गाय के बछड़े को खिलाती हैं। इस दिन व्रती स्त्रियों को भी आहार में यही अन्न लेना होता है। इस दिन गाय का दूध सर्वथा वर्जित माना जाता है, केवल भैंस का दूध ही उपयोग में लिया जाता है।

श्री कृष्ण माता यशोदा की आंख के तारे थे

श्री कृष्ण माता यशोदा की आंख के तारे थे

जहां तक इस व्रत को मनाने की शुरुआत की बात है, तो यह माता यशोदा और पुत्र कृष्ण के बीच प्रेम के जीवंत उदाहरण का प्रतीक त्योहार है। जैसा कि सभी जानते हैं, श्री कृष्ण माता यशोदा की आंख के तारे थे। माता यशोदा अपने प्यारे पुत्र को देखे बिना पल भर भी ना रह पाती थीं। पुत्र कृष्ण भी माता पर पूर्णभक्ति रखते थे और खेलने के बीच थोड़ी- थोड़ी देर में उनके पास एक चक्कर लगाना, उनसे दुलार पाना और प्यार जताना नहीं भूलते थे। ऐसे ही मां- बेटे के दिन प्रेम से कट रहे थे।

 ग्वाले गाय चराने जंगल में जाने लगे

ग्वाले गाय चराने जंगल में जाने लगे

इस बीच श्री कृष्ण बड़े हो गए और उनके प्यारे मित्र ग्वाले गाय चराने जंगल में जाने लगे। अपने मित्रों को देख श्री कृष्ण ने भी गाय चराने जाने की हठ पकड़ ली। माता यशोदा इस सत्य से परिचित थीं कि आयु के अनुरूप पुत्र को घर से बाहर भेजना ही होगा। अपने पुत्र को इतनी देर बाहर भेजने के नाम से भी वे चिंतित थीं। ढेर टालमटोल के बाद आखिरकार भाद्रपद की कृष्ण पक्ष की द्वादशी को श्री कृष्ण का जंगल में गाय चराने जाना निश्चित किया गया।

पुत्र के पसंद के सारे व्यंजन बनाए

पुत्र के पसंद के सारे व्यंजन बनाए

पुत्र की चिंता में, उसे हर कष्ट से बचाने के लिए माता यशोदा ने लाख जतन किए। उनका लाडला इतनी देर घर से बाहर रहने वाला था इसलिए माता ने अपने पुत्र के पसंद के सारे व्यंजन बनाए। श्री कृष्ण मात्र माता यशोदा के लाड़ले ही ना थे। सारा गोकुल उन पर जान छिड़कता था। इसीलिए श्री कृष्ण के प्रथम वन गमन पर गोकुल गांव की प्रत्येक माता ने कृष्ण के प्रति दुलार प्रकट करने के लिए उनके पसंद के व्यंजन बनाए। कृष्ण के साथ वन जाने वाली गायों और बछड़ों के लिए भी मूंग, मोठ और बाजरा अंकुरित किया गया। सुबह यशोदा ने श्री कृष्ण को हर तरह से सुंदर सजाया और काला टीका लगाया।

बछबारस का व्रत

बछबारस का व्रत

उनके साथ ही ब्रज की सारी माताओं ने श्री कृष्ण के लिए व्यंजनों का ढेर लगा दिया। गायों और बछड़ों का भी श्रंगार हुआ और पूजा के बाद उन्हें अंकुरित अनाज खिलाया गया। यशोदा ने बीसियों बार बलराम को समझाया कि कृष्ण को बछड़े चराने दूर मत जाने देना। कृष्ण को अकेला मत छोड़ना। कृष्ण को धूप में अधिक मत खेलने देना आदि। इस तरह मां की ममता से ओत- प्रोत श्री कृष्ण का पहला गोवत्साचरण संपूर्ण हुआ। श्री कृष्ण के वापस आने तक गांव की किसी महिला ने उनकी चिंता में भोजन नहीं किया। गायों के लिए अंकुरित किए हुए अन्न पर ही उनका दिन कट गया। इस तरह बछबारस का व्रत अस्तित्व में आ गया।

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English summary
Bach Baras is a unique Hindu festival that is dedicated to worshipping the cows as a thanksgiving gesture for their help in sustaining the human life. It is also popularly known as Nandini Vrat and is observed on the Dwadashi of the Krishna Paksha in the Ashwin.
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