Apara Ekadashi 2022: अपरा एकादशी आज, जानिए कथा, पूजा विधि और लाभ
नई दिल्ली, 26 मई। आज ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी यानी कि अपरा एकादशी है। इसे अचला एकादशी भी कहते हैं। इस एकादशी का यह नाम इसलिए पड़ा क्योंकि यह अपार पुण्यदायक होती है। अपरा एकादशी का व्रत करने से मनुष्य के पुण्य कर्मो में कभी कमी नहीं आती। वह अपार सुख, साधनों का स्वामी बनता है। इस एकादशी के दिन खरबूजा या ककड़ी का नैवेद्य भगवान विष्णु को लगाकर उसी का फलाहार किया जाता है। धर्मराज युधिष्ठिर के पूछने पर भगवान श्रीकृष्ण ने बताया किजो व्यक्ति पूर्ण समर्पण भाव से इस एकादशी का व्रत रखता है, उसके अनजाने में किए गए समस्त पापों का क्षय होता है, लेकिन एक बार यदि पापों का क्षय हो गया तो दोबारा कोई पाप जीवन में नहीं करना चाहिए। इस दिन सर्वार्थसिद्धि योग भी है जो प्रात: 5.46 बजे से प्रारंभ होकर दिवसर्पयत तक रहेगा।
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अपरा एकादशी का लाभ
'अपरा' अर्थात अपार पुण्य फल देने वाली। अपरा एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को समस्त अनजाने पापों से मुक्ति मिलती है। यह भाग्योदय करके अपार धन-संपत्ति और सुख-वैभव भी प्रदान करती है। अपरा एकादशी व्रत करने, इसकी कथा सुनने या पढ़ने से मनुष्य को समस्त भौतिक संपदा प्राप्त हो जाती है। पृथ्वी पर रहते हुए मनुष्य समस्त सुख-वैभव, सम्मान का भोग करता है और मृत्यु पश्चात हरिधाम को प्राप्त होता है।
अपरा एकादशी व्रत की विधि
अपरा एकादशी के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करें। व्रत का संकल्प लें और पूरे दिन निराहार रहें। यदि करना चाहें तो खरबूजे का फलाहार कर सकते हैं। भगवान विष्णु की पूजा में तुलसीदल, पुष्प, चंदन, धूप-दीप का प्रयोग करें। मखाने की खीर बनाएं और भोग के रूप में विष्णु भगवान को अर्पित करें। पूजा के बाद खीर का प्रसाद बांट दें। रात्रि में भगवान विष्णु के भजन करते हुए जागरण करें। अगले दिन द्वादशी को व्रत का पारण करें।
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अपरा एकादशी व्रत कथा
प्राचीन काल में महीध्वज नामक एक धर्मात्मा राजा था। राजा का छोटा भाई वज्रध्वज बड़े भाई से द्वेष रखता था। एक दिन मौका पाकर उसने राजा की हत्या कर दी और जंगल में एक पीपल के पेड़ के नीचे शव को गाड़ दिया। अकाल मृत्यु होने के कारण राजा की आत्मा प्रेत बनकर पीपल के पेड़ पर निवास करने लगी। वह आत्मा उस मार्ग से गुजरने वाले प्रत्येक व्यक्ति को परेशान करती थी। एक दिन एक ऋ षि उस रास्ते से गुजर रहे थे। प्रेत आत्मा उन्हें भी परेशान करने के उद्देश्य से पेड़ से नीचे उतरकर आई। ऋ षि ने अपने तपोबल से उसके प्रेत बनने का कारण जान लिया। ऋ षि ने प्रेतात्मा को परलोक विद्या का उपदेश दिया और राजा को प्रेत योनी से मुक्ति दिलाने के लिए स्वयं अपरा एकादशी का व्रत रखा। द्वादशी के दिन व्रत पूरा होने पर व्रत का पुण्य प्रेत को दे दिया। एकादशी व्रत का पुण्य प्राप्त करके राजा प्रेतयोनी से मुक्त हो गया और स्वर्ग चला गया।
एकादशी तिथि का समय
- एकादशी तिथि प्रारंभ 25 मई प्रात: 10.34 से
- एकादशी तिथि पूर्ण 25 मई प्रात: 10.56 तक
- व्रत का पारण 27 मई प्रात: 5.42 से 8.23