Apara Ekadashi 2019: अद्भुत शक्ति से भरी है अपरा एकादशी, जानिए पूजा विधि
नई दिल्ली। हमारे धर्म शास्त्रों में एकादशी के व्रत को सबसे बड़ा और पुण्यदायी माना गया है। वर्ष में 24 एकादशियां आती हैं, जिनमें से कुछ एकादशी बहुत महत्वपूर्ण होती है। ऐसी ही एक एकादशी ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी है, जिसे अपरा एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस एकादशी का यह नाम इसलिए पड़ा क्योंकि इस व्रत में अपार सिद्धिदायक गुण भरे हुए हैं। अपरा एकादशी व्रत को करने से चमत्कार भी हो जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। अपरा एकादशी 30 मई 2019, गुरुवार को आ रही है।
किसे करना चाहिए अपरा एकादशी
यदि आपने अपने परिजनों, घनिष्ठ मित्रों या किसी अन्य व्यक्ति से अपने लाभ के लिए झूठ बोला है, यदि आपने अपने परिजनों, करीबियों की संपत्ति हड़प ली है, यदि आपने अपने पति या पत्नी के साथ विश्वासघात करते हुए किसी अन्य से विवाहेत्तर संबंध बना लिए हैं, यदि आपने चोरी की है, किसी का अपमान किया है, किसी का धन लेकर उसे लौटाया नहीं है तो सावधान हो जाएं। इन पाप कर्मों के फलस्वरूप आपको इस जीवन में और अगले अनेक जन्मों में घोर कष्ट भोगना पड़ सकता है। लेकिन धर्मराज युधिष्ठिर के पूछने पर भगवान कृष्ण ने इन पाप कर्मों के बुरे फल से मुक्ति के लिए अपरा एकादशी व्रत करने के निर्देश दिए हैं। साथ ही उन्होंने यह भी कहा है कि इस व्रत को करने के बाद दोबारा कोई पाप कर्म ना किए जाएं वरना इस एकादशी का फल शून्य हो जाएगा और पूर्व से भी अधिक घोर नर्क की यातना झेलना पड़ेगी।
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अपरा एकादशी करने के चमत्कारिक लाभ
जैसा कि नाम से ही ज्ञात है 'अपरा" अर्थात अपार फल देने वाली। अपरा एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को समस्त पापों से मुक्ति तो मिलती ही है यह भाग्योदय करके अपार धन-संपत्ति और सुख-वैभव भी प्रदान करती है। इस एक एकादशी को कर लेने से अन्य एकादशियों का फल भी प्राप्त हो जाता है, इसलिए इसे अपरा कहा गया है। अपरा एकादशी व्रत करने, इसकी कथा सुनने या पढ़ने से मनुष्य को समस्त भौतिक संपदा प्राप्त हो जाती है। इस एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति के आत्मविश्वास और साहस में जबर्दस्त तरीके से वृद्धि होती है। उसके आकर्षण प्रभाव में वृद्धि होती है जिसके फलस्वरूप नाम, प्रसिद्धि और समृद्धि प्राप्त होती है।
कैसे
करें
अपरा
एकादशी
व्रत
अपरा एकादश्ाी व्रत करने की विधि अन्य सभी एकादशियों से अलग है। इस एकादशी का व्रत 24 घंटे तक चलता है। इसे करने से पूर्व दशमी के दिन से व्यक्ति को ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए सात्विक विचारों का पालन करना होता है। दशमी के दिन से पाप कर्मों से दूर हो जाएं। अपने मन और मस्तिष्क में से नकारात्मक विचारों को बाहर निकाल दें। केवल सकारात्मक विचारों को आने दें। अपने परिवार और जीवनसाथी के प्रति विश्वस्त रहें। किसी का बुरा ना करें और ना ही किसी को बुरा बोलें। एकादशी के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करें। ध्यान रहे इस दिन शरीर पर तेल नहीं लगाना है। एकादशी व्रत का संकल्प लें और पूरे दिन बिना कुछ खाए-पीए रहें। भगवान विष्णु की पूजा में तुलसीदल, पुष्प, चंदन, धूप-दीप का प्रयोग करें। मखाने की खीर बनाएं और भोग के रूप में विष्णु भगवान को अर्पित करें। पूजा के बाद खीर का प्रसाद परिजनों में बांट दें। एकादशी के दिन में पलंग, बिस्तर या सोफे पर ना बैठें। जमीन पर चटाई या आसन बिछाकर बैठें। रात्रि में भगवान विष्णु के भजन करते हुए जागरण करें। अगले दिन द्वादशी को व्रत का पारण करें। सबसे महत्वपूर्ण बात, इस एकादशी की पूजा यदि गंगा या किसी अन्य पवित्र नदी के किनारे बैठकर की जाए तो अद्भुत, चमत्कारिक रूप से परिणाम प्राप्त होते हैं।
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अपरा एकादशी व्रत कथा
प्राचीन काल में महीध्वज नामक एक धर्मात्मा राजा था। राजा का छोटा भाई वज्रध्वज बड़े भाई से द्वेष रखता था। एक दिन मौका पाकर उसने राजा की हत्या कर दी और जंगल में एक पीपल के पेड़ के नीचे शव को गाड़ दिया। अकाल मृत्यु होने के कारण राजा की आत्मा प्रेत बनकर पीपल के पेड़ पर निवास करने लगी। वह आत्मा उस मार्ग से गुजरने वाले प्रत्येक व्यक्ति को परेशान करती थी। एक दिन एक ऋ षि उस रास्ते से गुजर रहे थे। प्रेत आत्मा उन्हें भी परेशान करने के उद्देश्य से पेड़ से नीचे उतरकर आई। ऋ षि ने अपने तपोबल से उसके प्रेत बनने का कारण जान लिया। ऋ षि ने प्रेतात्मा को परलोक विद्या का उपदेश दिया और राजा को प्रेत योनी से मुक्ति दिलाने के लिए स्वयं अपरा एकादशी का व्रत रखा। द्वादशी के दिन व्रत पूरा होने पर व्रत का पुण्य प्रेत को दे दिया। एकादशी व्रत का पुण्य प्राप्त करके राजा प्रेतयोनी से मुक्त हो गया और स्वर्ग चला गया।
एकादशी तिथि का समय
- एकादशी तिथि प्रारंभ 29 मई दोपहर 3.21 बजे से
- एकादशी तिथि पूर्ण 30 मई सायं 4.37 बजे
- पारण 31 मई को प्रात: 5.28 से 8.12 बजे तक
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