Anant Chaturdashi Day 2018: अनंत चतुर्दशी पर करें भगवान विष्णु की पूजा, कष्टों से मिलेगी मुक्ति
नई दिल्ली। भादो माह की शुक्त पक्ष की चतुर्दशी के दिन अनंत चतुर्दशी व्रत किया जाता है। इस दिन पार्थिव गणेश के विसर्जन के साथ दस दिवसीय गणेशोत्सव का समापन होता है। अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। इस व्रत के बारे में शास्त्रों का कथन है कि यह समस्त प्रकार के कष्टों से मुक्ति दिलाता है, विपत्तियों से उबारता है। धन और उत्तम संतान की कामना से यह व्रत किया जाता है।
14 गांठे भगवान श्री हरि के 14 लोकों की प्रतीक
इस व्रत में सूत या रेशम के धागे को कुमकुम से रंगकर उसमें चौदह गांठे लगाई जाती हैं। ये 14 गांठे भगवान श्री हरि के 14 लोकों की प्रतीक मानी गई है। गांठे लगाकर राखी की तरह का अनंत बनाया जाता है। इस अनंत रूपी धागे को पूजा में भगवान विष्णु पर अर्पितकर व्रती अपनी भुजा में बांधते हैं। पुरुष दाएं तथा स्त्रियां बाएं हाथ में अनंत बांधती है। मान्यता है कि यह अनंत हम पर आने वाले सब संकटों से रक्षा करता है। यह अनंत धागा भगवान विष्णु को प्रसन्न् करने वाला तथा अनंत फल देता है।
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अनंत चतुर्दशी का महत्व
मान्यता है कि महाभारत काल में इस व्रत की शुरुआत हुई थी। जब पांडव जुए में अपना राज्य गंवाकर वन-वन भटक रहे थे, तो भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें अनंत चतुर्दशी व्रत करने को कहा। धर्मराज युधिष्ठिर ने अपने भाइयों व द्रौपदी के साथ इस व्रत को किया। तभी से इस व्रत का चलन शुरू हुआ। भारत के कई भागों में इस व्रत का चलन है। पूर्ण विश्वास के साथ व्रत करने पर यह अनंत फलदायी होता है।
अनंत चतुर्दशी व्रत की पूजन विधि
अनंत चतुर्दशी के दिन व्रती को प्रात:स्नान करके व्रत का संकल्प करना चाहिए। पूजा घर में कलश स्थापित करें और कलश पर भगवान विष्णु का चित्र स्थापित करें। इसके बाद सूत के धागे में चौदह गांठें लगाएं। इस प्रकार अनंतसूत्र तैयार हो जाने पर इसे भगवान विष्णु के समक्ष रखें। इसके बाद भगवान विष्णु तथा अनंतसूत्र की षोडशोपचार विधि से पूजा करें तथा अनन्ताय नम: मंत्र का जाप करें। पूजा के बाद अनंत को स्त्री और पुरुष अपने हाथों में बांध लें और अनंत चतुर्दशी व्रत की कथा सुनें। अनंतसूत्र बांधने के बाद ब्राह्मण को भोजन कराएं। यथायोग्य दान-दक्षिणा देने के बाद स्वयं अपने परिवार सहित प्रसाद ग्रहण करें।
अनंत सूत्र बांधने का मंत्र
अनंत
संसार
महासमुद्रे
मग्नं
समभ्युद्धर
वासुदेव।
अनंतरूपे
विनियोजयस्व
अनंतसूत्राय
नमो
नमस्ते।।
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