क्यों पहनते हैं 'कंगन' या 'चूड़ी', क्या है इसका महत्व?
नई दिल्ली । 'चूड़ी' मन की चंचलता को दर्शाती है तो 'कंगन' मातृत्व की ललक उत्पन्न करता है। इसलिए 'कंगन' दुल्हनों का श्रृंगार है जब कि चूंड़ियां कुमारी कन्याएं भी पहनती हैं। हमारे साहित्यकारों ने भी इस श्रृंगार के बारे में इतना कुछ लिख दिया है जिसके बारे में बात करना बेहद कठिन हैं। वैसे भी जब तक दुल्हन के हाथ में 'चूड़ियां' और 'कंगन' खनकते नहीं हैं तब तक एहसास नहीं होता कि दुल्हन घर आ गयी हैं। बेहद ही खूबसूरत श्रृंगार में शामिल 'कंगन' और 'चूड़ी' केवल महिलाओं को ही नहीं रिझाते बल्कि पुरूषों का भी दिल चुराते हैं।
वैसे इसका वैज्ञानिक महत्व भी है, कहते हैं चूड़ियां रज-तम प्रभाव वाली होती हैं, यह वातावरण में से नकारात्मक ऊर्जा को अपनी ओर खींचती हैं। चूड़ी पहनने से महिलाओं की कलाई पर एक दवाब बना रहता है, जिससे उसका रक्त संचरण सही रहता है और वो स्वस्थ रहती है। यही नहीं चूड़ी कलाई की त्वचा से घर्षण बढ़ाती है जो कि थकान महसूस नहीं होने देता है, यही नहीं चूड़ी से मानसिक संतुलन बनाने में सहायक है।
परंपरा
भारत में ये पंरपरा ना जाने कब से हैं लेकिन इसमें किसी को शक नहीं कि बिना चूड़ियों के हर महिला का श्रृंगार अधूरा है, खाली कलाई किसी भी महिला की अच्छी नहीं लगती है। हिंदू पूजा में तो मां दुर्गा के श्रृंगार का ये अभिन्न अंग हैं। मान्यता ये भी है कि कांच की चूड़ियां पहनने से स्त्री के पति और बेटे का स्वास्थ्य अच्छा रहता है।
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