अक्षय तृतीया पर जन्म लेने वाले भगवान परशुराम ने काट डाला था मां का सिर
नई दिल्ली। आज अक्षय तृतीया है, ऐसा माना जाता है कि आज के ही दिन भगवान परशुराम का जन्म हुआ था। परशुराम को भगवान विष्णु का छठा अवतार भी कहा जाता है। पौरोणिक वृत्तान्तों के अनुसार उनका जन्म भृगुश्रेष्ठ महर्षि जमदग्नि द्वारा सम्पन्न पुत्रेष्टि यज्ञ से प्रसन्न देवराज इन्द्र के वरदान स्वरूप पत्नी रेणुका के गर्भ से वैशाख शुक्ल तृतीया को हुआ था। वे भगवान विष्णु के आवेशावतार कहे जाते हैं।
चलिए जानते हैं उनके बारे में विस्तार से...
परशुरामजी का उल्लेख रामायण, महाभारत, भागवत पुराण में
परशुरामजी का उल्लेख रामायण, महाभारत, भागवत पुराण और कल्कि पुराण इत्यादि अनेक ग्रन्थों में किया गया है। वे अहंकारी और धृष्ट हैहय वंशी क्षत्रियों का पृथ्वी से 21 बार संहार करने के लिए प्रसिद्ध हैं।
वैदिक संस्कृति
वे धरती पर वैदिक संस्कृति का प्रचार-प्रसार करना चाहते थे। कहा जाता है कि भारत के अधिकांश ग्राम उन्हीं के द्वारा बसाये गये।जिस मे कोंकण, गोवा एवं केरल का समावेश है, इसी कारण इन क्षेत्रों में भगवान परशुराम की पूजा होती है।
परशु धारण करते हैं
शिवजी द्वारा प्रदत्त परशु धारण किये रहने के कारण वे परशुराम कहलाते हैं, वे शस्त्रविद्या के महान गुरु थे। उन्होंने भीष्म, द्रोण व कर्ण को शस्त्रविद्या प्रदान की थी।
पिता के कहने पर मां का काटा था सिर
परशुराम यमदग्नि और रेणुका की संतान थे। इतिहास के पन्ने पलटें तो पता चला कि एक बार उनके पिता ने मां का सिर काट देने की आज्ञा दी। पिता की आज्ञा को मानते हुये उन्होंने पलक झपकते ही मां रेणुका का सिर धड़ से अलग कर दिया। इसके बाद ऋषि यमदग्नि ने परशुराम से कहा कि वरदान मांगों इस पर उन्होंने कहा कि यदि वरदान ही देना है तो मेरी मां को पुन: जीवित कर दों इस पर पिता यमदग्नि ने रेणुका को दोबारा जीवित कर दिया। जीवित होने के बाद रेणुका ने कहा कि परशुराम तुमने मां के दूध का कर्ज अदा कर दिया। इस प्रकार पूरे विश्व में परशुराम ही ऐसे व्यक्ति हैं जो मां और बाप दोनों के ऋण से मुक्त हुए थे।
सुदर्शन चक्र
त्रेता युग में भगवान राम ने ही परशुराम को द्वापर युग तक सुदर्शन चक्र संभालने की जिम्मेदारी थी। इसीलिए गुरु संदीपनी के यहां आकर परशुराम ने श्रीकृष्ण को सुदर्शन चक्र सौंपा था।
यह भी पढ़े: अक्षय तृतीया आज, भूलकर भी ना करें ये काम वरना होंगे परेशान