Aja Ekadashi 2020 : खोया सम्मान और संपत्ति प्रदान करती है अजा एकादशी
नई दिल्ली। भाद्रपद माह के कृष्णपक्ष की एकादशी तिथि को अजा एकादशी के नाम से जाना जाता है। यह एकादशी 15 अगस्त को आ रही है। इस एकादशी का व्रत करने से भगवान विष्णु के साथ मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। इस एकादशी को अश्वमेघ यज्ञ के समान फल देने वाली कहा गया है।
कैसे करें व्रत पूजा
अजा एकादशी व्रत करने वाले साधक को चाहिए कि वह दशमी तिथि की रात्रि में भोजन ना करें। एकादशी को सूर्योदय पूर्व उठकर तिल और मिट्टी का लेप करके कुशा डालकर स्नान करे। इसके बाद सूर्य को जल का अर्घ्य दे और भगवान विष्णु की पूजा करें। इसके लिए अपने पूजा स्थान को शुद्ध कर लें। एक चौकी पर लाल या पीला वस्त्र बिछाकर धान्य रखकर उस पर कलश स्थापित करे। कलश पर लाल रंग का वस्त्र सजाएं। इस पर भगवान विष्णु की प्रतिमा रखकर एकादशी व्रत का संकल्प लेकर विधि विधान से पूजन करें। इसके बाद अजा एकादशी व्रत की कथा सुनें या पढ़ें। दिनभर निराहार रहते हुए भगवान विष्णु के नामों मानसिक जाप करते रहे। द्वादशी के दिन ब्राह्मण को यथायोग्य दान दक्षिणा दें और स्वयं व्रत खोलें।
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अजा एकादशी का महत्व
अजा एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति अपने चित्त की वृत्तियों से आगे बढ़कर धर्म के मार्ग पर प्रशस्त होता है। कहा जाता है कि अजा एकादशी का व्रत करने से अश्वमेघ यज्ञ करने के समान पुण्य फल की प्राप्ति होती है। इस व्रत को करने से हरिद्वार आदि तीर्थ स्थानों में स्नान, दान आदि का फल प्राप्त होता है। व्रत के प्रभाव से व्यक्ति के ग्रहजनित दोष भी दूर हो जाते हैं और व्यक्ति समस्त सुखों का भोग करते हुए अंत में मोक्ष को प्राप्त होता है। भगवान विष्णु की कृपा से व्रती की आने वाली कई पीढ़ियों को दुख नहीं भोगना पड़ते हैं।
अजा एकादशी की कथा
प्राचीनकाल में हरिशचंद्र नामक एक चक्रवर्ती राजा राज्य करता था। किसी जन्म के कर्मों के कारण उसे अपना राज्य और सारा धन त्यागना पड़ा। साथ ही अपनी स्त्री, पुत्र तथा स्वयं को बेच दिया। वह राजा चांडाल का दास बनकर मृतकों के वस्त्र ग्रहण करता था। मगर किसी प्रकार से सत्य से विचलित नहीं हुआ। कई बार राजा चिंतित हो जाता और विचार करने लगता कि मैं कहां जाऊं, क्या करूं, जिससे मेरा उद्धार हो। इस प्रकार राजा को कई वर्ष बीत गए। एक दिन राजा इसी चिंता में बैठा हुआ था कि गौतम ऋ षि का आगमन हुआ। राजा ने उन्हें देखकर प्रणाम किया और अपनी सारी कहानी बताई। यह बात सुनकर गौतम ऋषि ने कहा कि राजन आज से सात दिन बाद भाद्रपद कृष्णपक्ष की अजा नाम की एकादशी आएगी, तुम विधिपूर्वक उसका व्रत करो। इस व्रत के पुण्य प्रभाव से तुम्हारे समस्त पाप नष्ट हो जाएंगे। इस प्रकार राजा से कहकर गौतम ऋषि उसी समय अंतर्ध्यान हो गए। राजा ने उनके कथनानुसार एकादशी आने पर विधिपूर्वक व्रत व जागरण किया। उस व्रत के प्रभाव से राजा के समस्त पाप नष्ट हो गए और फिर से स्त्री-पुत्र और धन युक्त होकर राज्य करने लगा।
एकादशी तिथि
- एकादशी प्रारंभ 14 अगस्त को दोपहर 2.01 बजे से
- एकादशी समाप्त 15 अगस्त को दोपहर 2.19 बजे
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