16 अक्टूबर को समाप्त होगा अधिकमास, जानिए इस दिन क्या करें और क्या ना करें
नई दिल्ली। अधिकमास, पुरुषोत्तम मास 16 अक्टूबर को आश्विन कृष्ण अमावस्या के दिन समाप्त हो रहा है। एक महीने से जो श्रद्धालु अधिकमास का व्रत, पूजा, तप कर रहे थे वे पुरुषोत्तम मास का व्रत 16 अक्टूबर को पूर्ण करेंगे। इस दिन भगवान विष्णु की विशेष पूजा की जाती है और सुखी-समृद्धिशाली जीवन के लिए भगवान का आशीर्वाद लेते हैं।
कैसे करें पुरुषोत्तम मास व्रत का उद्यापन
- अधिकमासे तु सम्प्राप्ते श्री जनार्दनतुष्टये ।
- त्रयस्ति्र शंदपूपांश्च शर्कराघृत संयुतान् ।।
- नरकोत्तारणार्थायं मयादानं प्रदीयते ।
- दास्ये पुरुषोत्तमप्रीत्यै गृहाण त्वं द्विजोत्तम ।।
- मलिनं पापस्य विशुद्धयर्थे वायनं संप्रदाम्यहम् ।
अधिकमास की समाप्ति पर इसका उद्यापन अवश्य करना चाहिए तभी पूरे माह किए गए व्रत, जप, तप, पूजा का फल मिलता है। अधिकमास के अंतिम दिन प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर भगवान सूर्यनारायण को लाल पुष्प, चंदन, अक्षत मिश्रित जल से अर्घ्य दें। इसके बाद श्री गणेशादि की पूजा व पंचांगकर्म पूर्ण कर सर्वतोभद्रमंडल की स्थापना कर इसके मध्य में एक प्रधान कलश, चार दिशाओं में चार कलश एवं पूर्वादिक्रम से 30 कलश स्थापित करें। इस प्रकार कुल 35 कलशों पर राधा सहित पुरुषोत्तम, वासुदेव, जनार्दनादि नाम से देवताओं की स्थापना कर वस्त्र, दक्षिणा चढ़ाकर हवन संपन्न करें। बाद में 33 मालपुआ और मिष्ठान्न का कांस्य पात्र में रखकर नैवेद्य लगाकर प्रार्थना करते हुए ब्राह्मणों को दान कर दें।
- ऊं विष्णुरूपी सहस्त्रांशु: सर्वपापप्रणाशन:।
- एपूपान्न प्रदानेन मम पापं व्यपोहतु ।।
इसके बाद भगवान विष्णु की प्रार्थना करें-
- यस्य हस्ते गदाचक्रे गरुड़ोयस्य वाहनम्: ।
- शंख: करतले यस्य स मे विष्णु: प्रसीदतु ।।
इन मंत्रों सहित गुड़, गेहूं, घी, मिष्ठान्न, दाख, केला, वस्त्र आदि वस्तुओं का दान, दक्षिणा सहित भगवान को तीन बार अर्घ्य देकर भगवान नारायण के 33 नाम मंत्र का जाप करें-
विष्णुं, जिष्णुं, महाविष्णुं, हरिं, कृष्णं, अधोक्षजम, केशवं, माधवं, रामं, अच्युत्यं, पुरुषोत्तमम, गोविन्दं, वामनं, श्रीशं, श्री कृष्णमं, विश्वसाक्षिणं, नारायणं, मधुरिपुं, अनिरिद्धं, त्रिविक्रमम, वासुदेवं, जगद्योनिं, अनन्तं, शेयशानियम, सकर्षणं, प्रद्मुम्नं, दैत्यरिं, विश्वतोमुखम, जनार्दनं, धरावासं, दामोदरं, मघार्दनं, श्रीपतिं च।
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