क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

तीन तलाक पर कानून बनने भर से सुधरेगी मुस्लिम महिलाओं की स्थिति?

Google Oneindia News
triple talaq

नई दिल्ली। तीन तलाक विधेयक, 2019 संसद में पारित हो चुका है। अब इस बिल पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर का इंतजार है। उनके हस्ताक्षर से यह विधेयक कानून का रूप ले लेगा। इस बिल को लागू करने के लिए भाजपा काफी पहले से प्रयासरत थी, लेकिन राज्य सभा में बहुमत नहीं होने के कारण यह बिल अध्यादेश से प्रभाव में था। भाजपा ने इस बिल को एक चुनौती की तरह लिया और राज्य सभा में उसके बहुमत नहीं होने के बावजूद यह बिल इस बार 84 के मुकाबले 99 मतों से पास हो गया। ऐसा कुछ विरोधी दलों के सदन से वोटिंग के दौरान वाकआउट करने से संभव हो सका।

खैर जो भी घटनाक्रम रहा हो, अब यह बिल लगभग क़ानून का रूप ले चूका है और भाजपा निश्चित रूप से मुस्लिम महिलाओं के बीच राजनीतिक माइलेज लेती दिख रही है हालाँकि मुस्लिम संगठन इस पर सवाल उठा रहे हैं। लेकिन क्या सच में यह मुद्दा 'तीन तलाक' में कुछ प्रावधान किये जाने के बावजूद इतना बड़ा था की इस पर इतने विवाद होने चाहिए थे या इसे कानून का रूप देकर सरकार को अपनी पीठ थपथपानी चाहिए। इस पर कुछ सोचने से पहले यह देखते हैं की इस 'तीन तलाक' में संशोधन करके क्या प्रावधान किये गए थे और इसकी वर्तमान स्थिति क्या थी।

क्या था विवाद जिससे यह मुद्दा उभरा?

क्या था विवाद जिससे यह मुद्दा उभरा?

दरअसल यह मामला शायरा बानो केस से चर्चित हुआ था जिससे इस तीन तलाक में मौजूद अमानवीयता सामने आई थी। शायरा बानो ने मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन कानून 1937 की धारा 2 की संवैधानिकता को चुनौती दी थी। उसने मार्च 2016 में सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दायर कर तीन तलाक और निकाह हलाला के चलन और साथ ही मुस्लिमों में प्रचलित बहु-विवाह की व्यवस्था को असंवैधानिक घोषित किए जाने की मांग की थी। उनकी अर्जी में कहा गया था कि तीन तलाक संविधान के अनुच्छेद 14 व 15 के तहत मिले मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय क्या रहा?

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय क्या रहा?

अगस्त 2017 में इस पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने बहुमत के निर्णय से मुस्लिम समुदाय में एक बार में तीन बार तलाक देने की प्रथा को निरस्त कर दिया और इसे असंवैधानिक, गैरकानूनी और शून्य करार दिया था। साथ ही कोर्ट ने कहा था कि तीन तलाक की यह प्रथा कुरान के मूल सिद्धांत के खिलाफ है। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा की वह इस तीन तलाक पर कानून बनाये। इसके बाद सरकार के द्वारा कानून लाया गया और इसे संशोधित भी किया गया जिसमें मुस्लिम समुदाय में तत्काल तलाक देने के मामले में पुरुषों के लिए सजा का प्रावधान रखा गया था। पहले से ही विवाद का विषय बने इस मुद्दे पर काफी नए संशोधनों के बाद भी राजनीतिक दलों और विभिन्न संगठनों के बीच आम सहमति नहीं बनी जसकी वजह से राज्य सभा में बहुमत नहीं होने के कारण सरकार को अध्यादेश लाना पड़ा था।

बने कानून की जटिलताएं क्या है?

बने कानून की जटिलताएं क्या है?

अब सवाल उठता है कि जब सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने बहुमत के निर्णय से मुस्लिम समुदाय में एक बार में तीन बार तलाक देने की प्रथा को निरस्त कर दिया और इसे असंवैधानिक, गैरकानूनी और शून्य करार दे दिया तो नियमतः यह इंस्टेंट तलाक खुद ही अमान्य हो जाता है, तो फिर इसके लिए किसी को सजा किस आधार पर दी जानी चाहिए? और अगर सजा मिलती है तो फिर पीड़िता को जो गुजरा भत्ता देय होगा उसे कौन देगा क्योंकि गुजरा भत्ता देने वाला तो जेल में सजा काट रहा होगा।

दूसरी बात तो जब बीवी या कोई रक्त संबंध रखने वाला व्यक्ति शौहर की शिकायत करेगा तो इस शिकायत पर तीन तलाक का अपराध संज्ञेय अपराध की श्रेणी में आएगा। संज्ञेय अपराध में पुलिस वारंट के बिना शौहर को गिरफ्तार कर सकती है। ऐसे में इसका दुरूपयोग भी हो सकता है।

क्या तीन तलाक की समस्या इतना बड़ी थी?

क्या तीन तलाक की समस्या इतना बड़ी थी?

दरअसल सुप्रीम कोर्ट से इसंटेंट तलाक निरस्त होने के बाद इस मसले को लेकर कोई समस्या थी ही नहीं। इसे समस्या बना दिया गया। अगर आंकड़ों पर भी गौर करें तो जनगणना 2011 के अनुसार परित्यक्ता यानी छोड़ दी गई या अलग रह रही महिलाओं की संख्या मुसलमानों में सबसे कम 0.67 फीसदी है। लेकिन हाँ, तलाकशुदा महिलाओं की संख्या के मामले में थोड़ा फर्क है। मुस्लिम में जहां 0.49 फीसदी महिलाएं तलाकशुदा हैं वहीं ईसाइयों में ये संख्या 0.47 फीसदी और हिंदुओं में 0.22 फीसदी है। लेकिन यह ध्यान देने की बात है की वैसे छोड़ दी गई या अलग रह रहीं महिलाओं की संख्या, तलाकशुदा महिलाओं से ज्यादा हैं। ये तो एक समग्र आकड़ों की बात हुई लेकिन जिस इंस्टेंट तलाक की बात है कि तलाक-तलाक-तलाक बोलकर कितने लोगों ने पत्नियों को छोड़ा है तो इसका कोई आंकड़ा किसी के पास शायद ही हो।

फिर भी ऐसे मामलों में जितना काम सामाजिक दबाब कर सकता है वह कानून नहीं कर पाता है। कानून की अपनी खूबियां होती हैं और खामियां भी। तो जो मुद्दे पारिवारिक संबंधों को सहेजने वाले हों वहां विवादों का आपसी रजामंदी से हल निकालना ज्यादा बेहतर है। ऐसे में इस तीन तलाक कानून से मुस्लिम महिलाओं के पारिवारिक जीवन में क्रांतिकारी बदलाव होते तो नहीं दिख रहे हैं।

Comments
English summary
Will the situation of Muslim women improve from the law on triple talaq?
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
For Daily Alerts
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X