लालू की चिंताओं को कितना संबोधित कर सकेगा विपक्ष
लोकसभा चुनावों में आरजेडी से लेकर कांग्रेस तक की करारी हार के बाद लालू यादव के चिंतित होने की खबरें लगातार आ रही हैं। लोकसभा चुनावों से पहले और चुनावों के दौरान भी इसको लेकर राजनीतिक चर्चाएं आम थीं कि लालू यादव की अनुपस्थिति में होने वाले इस चुनाव पर क्या असर पड़ सकता है। इन चर्चाओं के जरिये यह आशंका भी जाहिर की जा रही थी कि आरजेडी और उसके महागठबंधन को संभव है उस तरह की सफलता न मिल पाए जिसका दावा किया जा रहा है। परिणाम आए तो यह आशंका से भी ज्यादा नजर आई जब पता चला कि आरजेडी को एक भी सीट नहीं मिल पाई जिसकी कल्पना चुनाव से पहले शायद ही किसी ने की हो। इसके बाद इस आशय की खबरें आने लगीं कि लालू यादव हार से इतने ज्यादा चिंतित हैं कि उन्होंने खाना तक छोड़ दिया है। हालांकि बाद में पता चला कि चिकित्सकों की सलाह मानकर उन्होंने खाना ग्रहण करना शुरू कर दिया। बहुचर्चित चारा घोटाला मामले में सजायाफ्ता लालू यादव फिलहाल जेल में हैं और रांची के अस्पताल में उनका इलाज चल रहा है। बताया जाता है कि इस बीच कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के इस्तीफे की पेशकश और उस पर उनके अड़े रहने की खबरों ने उन्हें और भी चिंतित कर दिया। आरजेडी की हार पर भी कुछ न बोलने वाले लालू यादव ने राहुल के इस्तीफे पर न केवल अपनी चुप्पी तोड़ी बल्कि एक तरह से विपक्ष की हार पर अपनी राय भी सार्वजनिक की और यह भी बताने की कोशिश की कि इससे कैसे पार पाया जा सकता है।
राहुल गांधी के इस्तीफे की पेशकश की खबरों से लालू चिंतित
वैसे खबरें यह बता रही हैं कि लालू यादव ने अपने को केवल इस पर केंद्रित किया है कि राहुल गांधी को इस्तीफा नहीं देना चाहिए क्योंकि यह समस्या का कोई समाधान नहीं है। इससे भी आगे जाकर वह यह भी कहते हैं कि अगर राहुल ने ऐसा किया तो यह संदेश जाएगा कि वे भाजपा की जाल में फंस चुके हैं। कुछ इसी तरह की बातें तब भी सामने आई थीं जब बताया गया कि कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में राहुल ने इस्तीफे की पेशकश की थी, तब पार्टी महासचिव और उनकी बहन प्रियंका गांधी ने भी यही कहा था कि अगर राहुल इस्तीफा देंगे तो वह भाजपा की जाल में फंस जाएंगे। हालांकि उसके बाद भी मीडिया में इस आशय की खबरें आने लगीं कि राहुल गांधी अपने फैसले पर न केवल अड़े हुए हैं बल्कि उनकी ओर से यह भी कहा गया है कि पार्टी अपना नया अध्यक्ष जल्द तय कर ले। बात बढ़ती देख कांग्रेस की ओर से यह अपील भी मीडिया और अन्य लोगों से करनी पड़ी कि अंदरूनी बैठक को लेकर कोई भी बात करने से पहले संयम और विवेक से काम लिया जाए। इस आशय की खबरें भी आनी शुरू हो चुकी हैं कि कई वरिष्ठ नेता राहुल को मनाने में भी लगे हुए हैं कि वे अपने इस्तीफे पर जोर न दें। ऐसी जानकारियां भी आ रही हैं कि एक-दो दिन में दोबारा कार्यसमिति की बैठक बुलाई जा सकती है जिसमें नए सिरे से इस्तीफे से उपजी स्थितियों पर विचार किया जाए और किसी निष्कर्ष पर पहुंचा जाए।
लालू की राजनीतिक यात्रा की शुरुआत कांग्रेस विरोध से हुई थी
इसी बीच मीडिया में लालू यादव की राय सामने आई जिसका अपना महत्व समझा जा सकता है क्योंकि लालू को लेकर चुनावों के दौरान और परिणाम आने के बाद भी यह कहा जाता रहा है कि अगर वे प्रचार के दौरान बाहर होते तो हालात भिन्न होते। इसी तरह महागठबंधन में कांग्रेस के बने होने के पीछे भी तमाम अन्य कारणों के, एक यह भी माना जाता है कि उसमें लालू की बड़ी भूमिका थी। लोगों को यह भी जरूर याद होगा जब शत्रुघन सिन्हा ने सार्वजनिक रूप से कहा था कि लालू यादव ने उन्हें कांग्रेस में जाने की सलाह दी थी। मतलब यह है कि कांग्रेस और सोनिया तथा राहुल को लेकर लालू के भीतर कोई साफ्ट कॉर्नर काम करता रहा है। वह अब भी काम कर रहा है तभी उन्होंने आरजेडी हार पर और तेजस्वी को लेकर कोई बात नहीं की, लेकिन राहुल गांधी के इस्तीफे की पेशकश पर खुलकर अपनी बातें रखीं। माना जाता है कि यह वही लालू यादव हैं जिनकी राजनीतिक यात्रा की शुरुआत कांग्रेस विरोध से होती है और जिन्होंने कांग्रेस को पराजित कर बिहार में सत्ता हासिल की थी और उसके बाद से वहां कांग्रेस फिर कभी मजबूत नहीं हो पाई। लेकिन कालांतर में उनकी राजनीति का एक प्रमुख एजेंडा जैसे कांग्रेस के साथ खड़ा होना बन गया।
भाजपा के खिलाफ लड़ाई उनकी राय हो सकती है अहम
विस्तार में जाए बिना यह याद किया जा सकता है कि कैसे बीते करीब 15 वर्षों से हर संकट के समय वह कांग्रेस के पक्ष में दिखाई देते रहे हैं। इसके पीछे शायद सांप्रदायिकता के खिलाफ संघर्ष के लिए वे कांग्रेस को जरूरी मानते हों। यह भी हो सकता है कि भाजपा के खिलाफ लड़ाई में उनकी यह राय अहम हो कि वह बिना कांग्रेस के यह संभव नहीं हो सकता क्योंकि वही एक पार्टी है जिसकी बुरी हालत में भी पूरे देश में उपस्थिति है। इतना ही नहीं, वह पूरी मजबूती के साथ सांप्रदायिकता के खिलाफ खड़ी होती है। अब एक बार फिर लालू यादव जिस तरह बहुत स्पष्टता के साथ कांग्रेस और राहुल गांधी के पक्ष में खड़े हुए हैं उसके अपने साफ संकेत समझे जा सकते हैं। अपनी टिप्पणी में लालू यादव ने न केवल विपक्ष की हार के पीछे के कारणों को चिन्हित किया है बल्कि आगे के बारे में भी राय रखी है। कोई जरूरी नहीं कि विपक्ष उनकी राय को स्वीकारे ही, लेकिन कहा जा सकता है कि उनका आकलन बहुत व्यावहारिक है।
कांग्रेस के घोषणापत्र की भी लालू ने प्रशंसा की
उदाहरण के लिए बताया जाता है कि लालू ने कहा है कि विपक्ष बिना दुल्हे के बारात जैसी स्थिति में था। यह भी कहा कि विपक्ष को राहुल गांधी को अपना नेता और भावी प्रधानमंत्री घोषित कर चुनाव मैदान में जाना चाहिए था जबकि क्षेत्रीय दल अपने राज्य में अपनी जीत की गारंटी करने में लगे रहे। कांग्रेस के घोषणापत्र की भी लालू ने प्रशंसा की और यह भी कहा कि राफेल जैसे मुद्दे को पूरे विपक्ष को मुद्दा बनाना चाहिए था। उनकी सलाह यह भी है कि भविष्य के लिए अभी से विपक्ष को नए सिरे से एकजुट होकर आगे बढ़ना चाहिए। इसके अलावा और भी बहुत सारी बातें की हैं। लालू के विचारों से कोई जरूरी नहीं कि हर किसी की सहमति हो। यह भी हो सकता है कि खुद राहुल गांधी उनकी सलाह को उतना महत्व न दें। इस सब को हर राजनीतिक दल अपने तरीके से लेने के लिए स्वतंत्र है। लेकिन इससे इनकार नहीं किया जा सकता है कि लालू यादव की ओर से पूरी स्थिति पर गंभीर हस्तक्षेप की कोशिश की गई है। यह तो भविष्य बताएगा कि राहुल गांधी क्या करते हैं क्योंकि यह उनकी पार्टी का अपना मामला है। विपक्ष लालू की बात को कैसे लेगा, इसका भी अभी अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। लेकिन इतना जरूर कहा जा सकता है कि अगर विपक्ष इस पर कुछ सार्थक विमर्श करता है, तब भी शायद कुछ नया होने की संभावना बन सके।
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