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लोकसभा में एकतरफा जीत के बाद भी BJP विधानसभा चुनाव में क्यों कांग्रेस को हलके में नहीं ले रही?

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नई दिल्ली। हरियाणा विधानसभा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव सम्पन्न होने में चंद दिन ही बचे हैं। 21 अक्टूबर को मतदान होना है और परिणाम 24 अक्टूबर को आने हैं। इसी तारीख में बिहार में वर्तमान मोदी सरकार के कैबिनेट में शामिल मंत्री रामविलास पासवान के छोटे भाई रामचंद्र पासवान के असामयिक निधन से खाली हुई समस्तीपुर लोकसभा सीट पर भी उप-चुनाव होंगे जहां से उनके ही पुत्र प्रिंस राज राजग गठबंधन के तहत लोजपा के चुनाव चिह्न पर मैदान में हैं। उन्हें संयुक्त गठबंधन से कांग्रेस के चुनाव चिह्न पर खड़े उम्मीदवार अशोक राम चुनौती देंगे।

कांग्रेस की बढ़त

कांग्रेस की बढ़त

लोकसभा चुनाव में भाजपा के उठाये हर एक मुद्दे उसके लिए मास्टरस्ट्रोक साबित हुआ था। भाजपा ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एकतरफा जीत हासिल की थी। फिर भी हरियाणा और महाराष्ट्र में होने वाले विधानसभा चुनावों में इस बार बीजेपी काफी मेहनत करती दिख रही है। इसके पीछे कारण भी हैं। कांग्रेस इस बार अपना हर कदम फूंक -फूंक कर रख रही है, चाहे बात चुनावी घोषणा पत्र के मुद्दे की हो या फिर पार्टी के अंदर उपजे आंतरिक कलह को शांत कर उसे सही दिशा देने का प्रयास करने का। बात अगर हरियाणा की करें तो कांग्रेस वहां के पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष अशोक तंवर प्रकरण से उबर कर शैलजा कुमारी के नेतृत्व में बेहतर दिख रही है। सियासी अनुभव रखने के साथ ही शैलजा कुमारी महिला और पार्टी की दलित चेहरा भी हैं। उन्होंने अध्यक्ष बनते ही अशोक तंवर के नाराज होने से पार्टी में होने वाले संभावित बिखराव को अपने अनुभव से रोका है। और अब कांग्रेस पार्टी भूपिंदर सिंह हुड्डा के अनुभवी नेतृत्व में विधानसभा चुनावी मुकाबले में आ गई दिखती है। कांग्रेस का अचानक अपने आंतरिक कलहों से उबर कर एकजुट होना भाजपा के लिए परेशानी खड़े कर रहा है। फिर हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस के घोषणा-पत्र ने भाजपा के लिए परेशानी को और गहरा दिया है। कांग्रेस अपने घोषणा-पत्र में महिला, किसान, दलितों के हक़ में खड़ी दिख रही है तो वहीं रोजगार, वृद्धा-पेंशन आदि जैसे बेसिक मुद्दों पर भी अपना विजन रखा है। यह निःसंदेह आकर्षक है। वहीं कांग्रेस ने भाजपा के राष्ट्रवादी मुद्दों पर खुद को मत-भिन्नता वाली स्थिति से उबारा है। ऐसे मुद्दे जो भाजपा को फायदा पहुंचाते हैं, उसपर बयानबाजी से दूरी बनाई है।

 हरियाणा में भाजपा की परेशानी

हरियाणा में भाजपा की परेशानी

हालांकि भाजपा ने भी आम लोगों से सरोकार वाली लगभग इन मुद्दों को अपने संकल्प-पत्र में उठाया है लेकिन उसके संकल्प-पत्र में ये मुद्दे कांग्रेस के विस्तृत दृष्टिकोण से पिछड़ते दीखते हैं। इसलिए यह तो भाजपा की चिंता है ही कि कहीं इसबार कांग्रेस के इन मुद्दों पर जनता का झुकाव कांग्रेस की तरफ न हो जाए लेकिन इसके साथ ही भाजपा को यह भी डर है कि उसे अपने पिछले कार्यकाल का हिसाब भी हरियाणा की जनता को देना है, जिसमें हरियाणा सरकार के खाते में कई विवादस्पद मसलें भी हैं। इसमें किसान आंदोलन तो ऐसा है जिसे हरियाणा की खट्टर सरकार भुलाना ही चाहेगी। इसके अलावे सीएम मनोहर लाल खट्टर के विवादित बोल भी हैं जिसने गाहे-बगाहे भाजपा के लिए परेशानी ही पैदा की है। फिर हरियाणा में योगेंद्र यादव की हिन्द स्वराज पार्टी किसानों के मुद्दे पर मुखर है, और वह भी इस चुनाव में भाग ले रही है। हिन्द-स्वराज पार्टी जितना भी प्रदर्शन करती है वह निश्चय ही खट्टर सरकार के लिए ही परेशानी खड़े करेगी। फिर हरियाणा में आईएनएलडी के कमजोर पड़ने और जाति-वर्ग के बनते मजबूत समीकरण से भी कांग्रेस को फायदा होने की उम्मीद है। भाजपा इन बातों को समझती है इसलिए वह इस बार के विधान सभा चुनाव में विपक्ष को हलके में नहीं ले रही है।

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महाराष्ट्र में कांग्रेस

महाराष्ट्र में कांग्रेस

अब बात अगर करें महाराष्ट्र चुनाव कि तो कांग्रेस ने यहाँ भी आम -जनता से सीधे रिलेट करने वाले मुद्दों को तरजीह दिया है। कांग्रेस ने महाराष्ट्र को सूखे से मुक्त करने का एक रोडमैप दिया है, जो की महाराष्ट्र का सर्वाधिक महत्वपूर्ण मुद्दा है। यह सीधे किसानों से जुड़ा हुआ है। महाराष्ट्र से दिल्ली आए किसानों के प्रदर्शन से भी यह सोचा जा सकता है कि यह मुद्दा कांग्रेस को फायदा पंहुचा सकती है। रोजगार की भी बात कांग्रेस ने अपने शपथनामा में किया है जिसमें शिक्षक पदों की भर्तियां और कामगारों के वेतन में वृद्धि की बात भी प्रमुखता से है। अगर कहें तो कांग्रेस ने अपने शपथनामे में अपना विजन और रोडमैप साफ रखा है। महाराष्ट्र में भी पार्टी ने अपने अंदर टूट की संभावनाओं को ख़त्म किया है। लोकसभा चुनाव के बाद उपजे आंतरिक कलहों से उबरी है।

महाराष्ट्र में भाजपा की परेशानी

महाराष्ट्र में भाजपा की परेशानी

वहीं भाजपा ने अपने संकल्प पत्र में महात्मा ज्योतिबा फुले, सावित्रीबाई फुले और वीर सावरकर को भारत रत्न पुरस्कार देने की पार्टी की मांग को सामने रखा है। भाजपा ने भी किसानों की बात कही है, नदियों को जोड़ने की बात कही है, बिजली के बेहतरी की बात कही है लेकिन अपनी योजनाओं के लिए स्पष्ट खाका सामने नहीं रखा है। एक करोड़ रोजगार की बात भी कही है लेकिन यह रोजगार कैसे और कहां उपलब्ध होगा, इसे स्पष्ट नहीं किया गया है। फिर सत्ता में होने के कारण भाजपा-शिवसेना गठबंधन को अपने पिछले काम का ब्यौरा जनता के सामने भी देना है। किसानों के लिए किये गए कामों की समीक्षा भी किसान और जनता करेंगे ही। इसी समय आरे जंगल विवाद ने भी सरकार को असहज किया ही है। भाजपा इन बातों को भली-भांति समझती है इसलिए इस विधानसभा चुनावों में वह कांग्रेस को हलके में नहीं ले रही है, भले ही उसने लोकसभा चुनाव में एक तरफ़ा जीत हासिल की है।

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English summary
Why BJP is not taking Congress lightly in assembly elections 2019 even after unilateral victory in Lok Sabha elections?
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