गुजरात में मोदी मैजिक के कारण क्या हैं और कांग्रेस विफल क्यों होती है, जानिए
गांधीनगर। गुजरात में एक कहावत है- निशान चूक माफ, लेकिन नहीं माफ नीचा निशान।' लक्ष्य बड़े होने चाहिए, उसके लिए मेहनत करनी पड़ती है, जवाब देना पड़ता है। यदि लक्ष्य बड़े नहीं होंगे तो फैसले भी नहीं होते हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इन्हीं कहावत के हिसाब से चुनाव लड़ते हैं और अपने लक्ष्य को ऊँचा ही रखते हैं।
ये हैं मोदी के आत्मविश्वास की वजहें
मोदी मानते हैं कि मिशन ऊँचा रखने से पार्टी के कार्यकर्ताओं में चुनाव जीतने का उत्साह बन जाता है। उन्हें लगता है कि अब हमारी सरकार बनेगी। भाजपा के राष्ट्रीय और प्रादेशिक नेतागण भी फिर इसी लक्ष्य के साथ चुनाव मैदान में जुड़ जाते हैं, जो अंतिम दिन तक उसी लक्ष्य को पकड़कर रखते हैं और सफल होते हैं।
कांग्रेस को इसलिए हार ही झेलनी पड़ी
दूसरी ओर कांग्रेस पार्टी मिशन-लैस है, पार्टी के हाईकमान और गुजरात प्रदेश के नेतागण ऐसा मिशन रख नहीं पा रहे हैं। इसलिये उनको कड़ी हार का सामना करना पडता है। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने गुजरात में मिशन रखा नहीं था, लेकिन पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष ने कहा था कि कांग्रेस गुजरात में 100 सीटें जीतेगी। ये कोई मिशन नहीं था। जबकि, भाजपा ने मिशन-150 प्लस के हिसाब से चुनाव प्रचार अभियान स्टार्ट किया था।
भाजपा 150 प्लस का लक्ष्य चुनती है
गुजरात में 2012 का चुनाव भी जब नरेंद्र मोदी की अगुवाई में लड़ा गया था, तब मोदी ने मिशन-150 का लक्ष्य बनाया था। तब मोदी युक्त भाजपा को 116 सीटेंं मिली थी। उसके बाद उन्होंने 2014 के लोकसभा चुनाव में मिशन-272 प्लस लक्ष्य रखा था और वो सरकार बनाने में सफल रहे। मोदी के इस लक्ष्य के हिसाब से गुजरात भाजपा ने 2017 में मिशन 150 प्लस रख दिया था, लेकिन 99 सीटें मिलीं। फिर भी सरकार तो भाजपा की ही बनी। कुछ भी हो, नरेन्द्र मोदी मिशन के हिसाब से काम करते हैं, तब कांग्रेस के नेता लक्ष्य तय करने में विफल रहते हैं।
कांग्रेस ने गुजरात में मिशन-26 बनाया ही नहीं
गुजरात कांग्रेस के अध्यक्ष अमित चावडा कहते हैं कि गुजरात में लोकसभा की 26 में से हम 13 सीटें जीतेंगे। कांग्रेस ने गुजरात में मिशन-26 बनाया ही नहीं, लेकिन भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने पिछले दिनों गुजरात में कार्यकर्ताओं से कहा कि हम गुजरात से 26 सीटें जीतेंगे। इनती सीटें, जितनी कि हमने 2014 के लोकसभा चुनाव में पायी थीं।'' दोनों पार्टी में यही फर्क और अंतर है, भाजपा पूरे जोर के साथ चुनाव मैदान में अपना प्रदर्शन दिखाती है, जबकि दूसरी ओर कांग्रेस पार्टी का इलेक्शन जीतने का कोई लक्ष्य तय नहीं होता है।
कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव की तैयारी शुरू की, मगर
लोकसभा चुनाव शुरू होने में केवल तीन महीने बचे हैं। ऐसे में कांग्रेस ने चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है। कांग्रेस को लगता है कि वो गुजरात की आनंद, अमरेली, बनासकांठा, साबरकांठा, पाटन, जूनागढ़, दाहोद, बारडोली, सुरेंद्रनगर, जामनगर, पोरबंदर, भरूच और मेहसाणा सीटें जीत सकती है। लेकिन गुजरात के शहरी क्षेत्र की सीटों के लिये कांग्रेस ने कोई लक्ष्य रखा नहीं है, क्योंकि यह क्षेत्र की सीटें कांग्रेस काफी सालों से जीत सकती नहीं है। कई जगह जैसे कि अहमदाबाद, सूरत, वडोदरा, गांधीनगर में कांग्रेस को प्रत्याशी ही मिल नहीं पा रहे हैं। गुजरात के शहरी इलाकों में भाजपा का कब्जा है।
भाजपा के लक्ष्य पहले से तय होते हैं
गुजरात में लोकसभा की 26 सीटें हैं। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने मिशन-26 बनाया है, मगर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अमित चावडा ने मिशन-13, यानी कि आधी सीटों का लक्ष्य रखा है। हाल ही में कांग्रेस छोड चुके एक पूर्व विधायक धीरू गजेरा का कहना है कि गुजरात में कई चुनाव मैंने देखे, लेकिन कांग्रेस चुनाव के समय पर अपने कार्यकर्ताओं को चुनाव मैदान में उत्साहित नहीं कर पा रही है। उसके प्रत्याशी को भाजपा नहीं पराजित नहीं करती, कांग्रेस पार्टी के अंदरूनी नेता और कार्यकर्ता ही उसे हरवा देते हैं। मुझे दो लोकसभा औऱ दो विधानसभा चुनाव में मेरी पार्टी के लोगों ने ही हराया है।
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