
Netaji Subhash Chandra Bose: कैसा भारत बनाना चाहते थे नेताजी सुभाष चंद्र बोस

भारतीय स्वाधीनता संग्राम के अन्यतम सेनानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की ख्याति अगर है तो सिर्फ इसलिए नहीं कि उन्होंने 'तुम मुझे खून दो, मैं तुझे आजादी दूंगा', 'दिल्ली चलो' जैसे नारे दिए, जिसने 'जय हिंद' को जन-जन तक लोकप्रिय बना दिया। इतिहास में वे इसलिए भी अमर हैं कि 1938 की हरिपुरा कांग्रेस में उन्होंने उस पट्टाभिसीतारमैया को हरा दिया, जिन्हें गांधी जी का उम्मीदवार माना जाता था।
नेताजी की अगर इतिहास में ख्याति है, तो इसलिए भी कि उन्होंने आजाद हिंद फौज बनाई, भारत से भागकर अंग्रेज सरकार के खिलाफ जापान के सहयोग से सशस्त्र संघर्ष किया और भारत के अभिन्न द्वीप को आजाद करा लिया।
लेकिन भारतीय इतिहास में नेताजी की भविष्य दृष्टि, भावी भारत को लेकर सपना और दुनिया में भावी भारत की स्थिति को लेकर कम ही चर्चा की गई है। भारत के सार्वजनिक प्रसारक प्रसार भारती के संग्रहालय में उनके कई अनमोल भाषण हैं, जिनमें आजादी के नायक के शब्द तो हैं ही, सिंगापुर और बर्मा रेडियो से दिए भाषण भी हैं। नेताजी का जब भी जिक्र होता है, उनके इन भाषणों का जिक्र खूब होता है। लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर 1938 में हरिपुरा में दिए उनके भाषण का जिक्र कम होता है। इस भाषण में उन्होंने भावी भारत का जो नक्शा खींचा था, 84 साल बाद भी वह प्रासंगिक नजर आता है।
अभी हाल ही में विश्व आर्थिक मंच की बैठक में चीन के प्रतिनिधिमंडल ने बताया कि 61 साल में पहली बार चीन की जनसंख्या घटी है। उसके मुताबिक, चीन की जनसंख्या करीब एक अरब 41 करोड़ है। जबकि भारत की जनसंख्या एक अरब 42 करोड़ है। भारत जब आजाद हुआ था तो अविभाजित भारत की जनसंख्या करीब 36 करोड़ थी।
आज हम अकेले ही 142 करोड़ को पार करने वाले हैं। चीन की घोषणा के बाद भारत में जनसंख्या की बढ़ोतरी को लेकर खूब चिंताएं जताईं जा रही हैं। लेकिन इसे लेकर सुभाष बाबू काफी पहले से ही चिंतित थे। कांग्रेस का अध्यक्ष चुने जाने के बाद उन्होंने अपने भाषण में इसका भी जिक्र किया था और जनसंख्या को लेकर भी अपनी राय रखी थी।
जनसंख्या को लेकर उन्होंने तब कहा था, "हमें बढ़ती आबादी के संकट का समाधान ढूंढ़ना है। भारत की आबादी अधिक है या कम - इस तरह के सैद्धांतिक सवालों में उलझने की मेरी कोई इच्छा नहीं है। मैं ये दिखाना चाहता हूं कि जब धरती पर गरीबी, भुखमरी और बीमारी बढ़ रही है, तब एक दशक में ही 30 करोड़ तक बढ़ चुकी आबादी को हम संभाल नहीं सकते। यदि आबादी पिछले बरसों की तरह ही बेतहाशा बढ़ती रही, तो हमारी योजनाओं के विफल होने की आशंका है। इसलिए जब तक हम पहले से ही मौजूद आबादी के लिए रोटी, कपड़े और शिक्षा का प्रबंध नहीं कर लेते, अपनी आबादी को रोकना जरूरी है।"
सोचिए कि नेताजी की सोच कैसी थी। यह दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि जनसंख्या नियंत्रण को लेकर स्वाधीन होते ही हमारे कर्णधारों ने कोई नीति नहीं बनाई। गरीबी निवारण के लिए योजनाएं दर योजनाएं बनाई तो गईं, लेकिन उन्हें जमीनी हकीकत बनाने के लिए ठोस तरीके अख्तियार नहीं किए गए। लेकिन नेताजी को इसका अंदेशा था, इसीलिए उन्होंने अपने ढंग से इन विषयों पर सोचा और उसे लागू करने की योजना भी बनाई थी।
नेताजी ने तब कहा था, "हमें भूमि व्यवस्था में सुधार की जरूरत होगी, इसमें जमींदारी प्रथा को खत्म करना भी शामिल है। हमें किसानों को कर्ज के बोझ से छुटकारा दिलाना होगा। ग्रामीणों को कम ब्याज पर कर्ज दिलाना होगा, लेकिन आर्थिक समस्याओं के समाधान के लिए कृषि क्षेत्र में किए गए सुधार ही काफी नहीं है। राज्य नियंत्रित औद्योगीकरण को हम कितना भी नापसंद करते हों, उसके दुष्प्रभावों की हम कितनी ही आलोचना क्यों न करें, हमारे लिए पूर्व औद्योगिक काल में लौटना संभव नहीं। लेकिन हमें इसकी ओर भी देखना होगा। स्वतंत्र भारत में संपूर्ण कृषि और औद्योगिक ढांचे का उत्पादन और विनिमय के क्षेत्र में क्रमशः सामाजीकरण करने के उद्देश्य से हमें योजना आयोग के परामर्श से समेकित होकर कार्यक्रम बनाना होगा।"
सोचिए, आजाद भारत के बाद उसकी प्रशासनिक नीति क्या होगी, किन विषयों पर स्वाधीन भारत की सरकार को फोकस करना होगा, सुभाष चंद्र बोस की इसे लेकर निगाह साफ थी। उनके पास योजना थी कि आने वाले दिनों में हमें अपने यहां योजनाएं बनाने के लिए बाकायदा योजना आयोग स्थापित करना होगा और उसके जरिए योजनाएं तैयार करनी होंगी। अंग्रेज लौटेंगे तो वे भारत का विभाजन करके मानेंगे, कांग्रेस के अधिकांश तपे-तपाए नेता भी इसका अंदाजा नहीं लगा पाए। लेकिन सुभाष चंद्र बोस को इसका अंदाजा हो गया था।
साइमन कमीशन के विरोध में सुभाष बाबू ने जो आंदोलन छेड़ा था, उससे उनकी लोकप्रियता बढ़ गई थी। विशेषकर नौजवानों के बीच उन्हें चाहने वाले बढ़ने लगे थे। पिछली सदी के तीस के दशक में उन्हें पूरे देश से बोलने के लिए निमंत्रण मिलने लगा था। ऐसे ही एक भाषण में उन्होंने अंग्रेजों के जाने के बाद भारत विभाजन की आशंका जताई थी। इस संदर्भ में उन्होंने देश को सचेत रहने का भी संदेश दिया था। तब उन्होंने फिलीस्तीन, मिस्र, इराक और आयरलैंड समेत कई देशों का हवाला दिया था। तब नेताजी ने कहा था कि इन देशों का इतिहास बताता है कि हमारे आंदोलनों से अंग्रेज जब भारत छोड़ने को मजबूर होंगे तो वे ऐसी कारगुजारी करने की कोशिश जरूर करेंगे।
नेताजी के इन भाषणों पर ध्यान दें तो पता चलता है कि स्वाधीन भारत की इतिहास दृष्टि ने उनके विचारों, उनके कार्यों से भावी भारत को वंचित रखा। पंडित नेहरू के बारे में आज बार-बार कहा जाता है कि उन्होंने नौ बार जेल यात्रा की थी, लेकिन कितने लोग जानते हैं कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस को अंग्रेजों ने 11 बार जेल भेजा था।
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देश अब नेताजी के जन्मदिन को पराक्रम दिवस के तौर पर मना रहा है। इस बहाने उनके कार्यों और विचारों को याद किया जा रहा है। बेहतर होगा कि भावी भारत के प्रशासन और उसकी विदेश नीति को लेकर नेताजी की जो सोच थी, देश उनके बारे में भी जाने और उससे आधुनिक संदर्भों में प्रेरणा लेकर आगे बढ़े।
(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं। लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)