रॉक, पॉप, रैप से आगे अब पश्चिम में भजन-कीर्तन न्यू एज म्यूजिक है
भारत में "हर हर शंभो" विवाद के बीच यह तो दिख रहा है कि पश्चिमी शैली में गाया भजन भारत में कैसे पहुंच रहा लेकिन क्या हम जानते हैं कि पश्चिम में भारत का भजन कीर्तन कैसे गया? आज भारत के नौजवान गायक अफ्रीकी मूल की एक कृष्णभक्त कीर्तनकार अच्युत गोपी की धुन पर हर हर शंभो गा रहे हैं लेकिन असल सवाल तो ये है कि स्वयं अच्युत गोपी तक कृष्ण भक्ति कैसे पहुंची?
पश्चिम में हरे राम हरे कृष्ण संकीर्तन की शुरुआत साठ के दशक में इस्कॉन के संस्थापक स्वामी प्रभुपाद ने किया। स्वामी प्रभुपाद वैष्णव मत के संत थे और प्रयागराज में उनके गुरु भक्ति सिद्धांत सरस्वती ने उन्हें आदेश दिया था कि भविष्य में तुम्हें पश्चिम में जाकर भक्ति का प्रसार करना है। 1960 में 70 साल की उम्र में वो अमेरिका गये और वहां कृष्ण भक्ति मूवमेन्ट की शुरुआत की। पश्चिम में उन्होंने चैतन्य महाप्रभु के कीर्तन का मार्ग अपनाया और उनके इस मूवमेन्ट के मूल में हरि नाम संकीर्तन था। वो न्यूयार्क के पार्कों में जाते और हिप्पियों के बीच "हरे राम हरे कृष्ण" नाम का संकीर्तन करते। इस तरह शुरु हुआ उनका कृष्ण भक्ति मूवमेन्ट 1967 में इस्कॉन के रूप में सामने आया जो आज दुनिया के लगभग हर देश में मौजूद है।
इस्कॉन का प्रमुख जोर हरि नाम संकीर्तन पर होता है। उनका सिर्फ एक मुख्य कार्य है और वह है हरि नाम संकीर्तन। पूरी दुनिया में इस्कॉन के अनुयायी नियमित हरे राम हरे कृष्ण नाम का कीर्तन करते हैं। उन्होंने इसे ही आंदोलन बना दिया है। सत्तर के दशक में मशहूर म्यूजिक ग्रुप बीटल्स के जार्ज हैरिसन को हरे कृष्ण संकीर्तन इतना पसंद आया कि वो प्रभुपाद के भक्त बन गये और 1970 के अपने अल्बम "माई स्वीट लार्ड" में हरे कृष्ण संकीर्तन को शामिल किया था।
वहां से पश्चिम में हरि नाम संकीर्तन की जो लोकप्रियता बढी उसने समय के साथ इसे आंदोलन बना दिया। आज पश्चिम के देशों में जहां जहां इस्कॉन है वहां इस्कॉन के भक्त हरि नाम संकीर्तन करते हुए, नाचते गाते हुए सड़कों पर निकलते हैं। इसके लिए बड़े बड़े आयोजन होते हैं जिसमें इस्कॉन से जुड़े संकीर्तन करनेवाले पहुंचते हैं। दुनिया के अलावा भारत के मायापुर में संकीर्तन का एक वार्षिक आयोजन होता है जिसमें दुनियाभर से गायक पहुंचते हैं और कई दिन तक संकीर्तन करते हैं।
स्वामी प्रभुपाद ने जैसे संकीर्तन को पश्चिम में प्रसारित करने में अपना अहम योगदान दिया वैसे ही भजन को पश्चिम में लोकप्रिय बनाया नींब करौरी बाबा ने। नींब करौरी बाबा कभी विदेश नहीं गये लेकिन भारत में रहते हुए ही उन्होंने पश्चिम में भजन संगीत की ऐसी पौध पैदा कर दी जो आज पश्चिम में न्यू एज म्यूजिक के रूप में पहचाना जाता है। नींब करौरा बाबा के दो शिष्य जय उत्तल (डगलस उत्तल) और कृष्णदास (जैफरी कैगल) अमेरिका में पैदा हुए और आज पूरी दुनिया में घूमकर भजन गाते हैं। कृष्णदास नींब करौरी बाबा से 1970 में मिल चुके थे और कुछ समय कैंची धाम के दुर्गा मंदिर में पुजारी बनकर सेवा भी किया था।
इसके बाद उन्होंने 'कीर्तनवाला' के नाम से पश्चिम में भजन कीर्तन शुरु किया। जबकि बार बार संगीत की खोज में भारत आ रहे जय उत्तल भी नींब करौरी बाबा और कीर्तनवाला से प्रभावित हुए तथा अपने अल्बम बनाने शुरु किये। इन दोनों के अपने दर्जनों भजन एल्बम हैं जिसमें इन्होंने देवी, काली, दुर्गा, राम, कृष्ण, हनुमान के भजन गाये हैं और संकीर्तन किये हैं। कृष्णदास तो भजन संकीर्तन का स्टेज शो भी करते हैं जिसको सुनने की फीस हजारों रूपये में होती है।
दोनों भजन गायक अमेरिकी नागरिक हैं और शांति की खोज में भारत की ओर आये थे। दोनों सत्तर साल की उम्र पूरी कर चुके हैं और आज भी पूरी सक्रियता से भजन और नाम संकीर्तन के माध्यम से लोगों में आध्यात्मिक शांति का अनुभव पहुंचा रहे हैं। कृष्णदास मुख्य रूप से अपने हनुमान चालीसा और भजन के लिए विख्यात हैं तो जय उत्तल भजनों के फ्यूजन एल्बम के लिए। कृष्णदास और जय उत्तल अपने भजनों और संकीर्तन के लिए अलग अलग समय में संगीत के लिए प्रतिष्ठित ग्रेमी अवार्ड के लिए नामित भी हो चुके हैं।
आज ये दोनों योगा म्युजिक के नाम पर अमेरिका ही नहीं बल्कि यूरोप के दूसरे देशों में भी जाने पहचाने जाते हैं। जय उत्तल ने अपने भजन कीर्तन वाले संगीत के बारे में पूछे जाने पर एक बार कहा था "इन प्राचीन कीर्तनों में तन मन को स्वस्थ करने की क्षमता है। भजन कीर्तन हमारे दिलों को खोलता है जिसके माध्यम से हम उस पराशक्ति का अनुभव कर पाते हैं।"
इनके अलावा ओशो रजनीश और श्री श्री रविशंकर ने भी पश्चिम के कुछ संगीतकारों को प्रभावित किया जो भजन कीर्तन या आध्यात्मिक संगीत को संसारभर में प्रचारित कर रहे हैं। इसमें ओशो से प्रभावित प्रेम जोशुआ का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है। उनका फ्यूजन म्यूजिक आध्यात्मिक संगीत की दुनिया में काफी पसंद किया जाता है। इसी तरह ओशो से प्रभावित देवा प्रेमल-मितेन की जोड़ी ने आध्यात्मिक संगीत की दुनिया में पश्चिमी जगत में बड़ा काम किया है। इसके अलावा चिन्मय डंस्टर, क्रैग प्रुइस, बेन लिनबैक जैसे दूसरे कंपोजर भी हैं जिन्होंने भारतीय भक्ति संगीत को नये आयाम दिये हैं।
भारतीय मंत्रों, कीर्तन, वाद्य यंत्रों को पश्चिमी लोगों की आवाज और संगीत के माध्यम से इन लोगों ने जो भक्ति संगीत पैदा किया है वह आज लोगों के कानों में रस घोल रहा है। भागदौड़ और आपाधापी की जिंदगी में उनके मन को शांति का अनुभव करा रहा है। यू ट्यूब और दूसरे म्यूजिक प्लेटफार्म की वजह से अब इनका भजन कीर्तन और आध्यात्मिक संगीत पूरी दुनिया में सुना और सराहा जा रहा है। पश्चिम के लिए रॉक, पॉप, रैप से आगे अब यही भजन कीर्तन न्यू एज म्यूजिक है जिसमें हीलिंग पॉवर है।
भारतीय आध्यात्मिकता के प्रभाव में आकर ये संगीतकार भजन कीर्तन के माध्यम से जो प्रयोग कर रहे हैं वह रॉक, पॉप, रैप को पसंद करनेवाली पीढी को पसंद आ रहा है। भजन कीर्तन एक ऐसा लयात्मक प्रवाह है जो मन के उद्विग्न करने की बजाय शांत करता है। संभवत: इसीलिए बिहार स्कूल आफ योगा के संस्थापक स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने इस सदी की शुरुआत में ही कहा था कि बीसवीं सदी योग की सदी थी, अब इक्कसवीं सदी कीर्तन की सदी होगी। खंडित मन और जीवन को जो लय और शांति भजन-कीर्तन देते हैं वह किसी और माध्यम से नहीं मिल सकता।
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