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गांधी तेरे देश में-शौच लिंचिंग

By अखिलेश श्रीवास्तव
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नई दिल्ली। ये दुर्योग ही है कि जिस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वच्छ भारत मिशन के लिए न्यूयॉर्क में गेट्स फाउंडेशन के ग्लोबल गोल कीपर अवार्ड से नवाजे जा रहे थे, उसी समय मध्यप्रदेश के शिवपुरी में दो दलित बच्चों की पीट-पीटकर इसलिए हत्या कर दी गई क्योंकि वो खुले में शौच करने को मजबूर थे। कुछ दिनों बाद ही जब हम गांधी की 150वीं जयंती मनाने जा रहे हैं, इस तरह की बर्बर हिंसक वारदात हमें केवल शर्मिंदा ही करती है। तारीखी लिहाज से गांधी के विचार जितने पुराने होते जा रहे हैं और उनके नाम पर आयोजन जितने भव्य, हम एक बर्बर समाज बनने के उतने ही नए-नए तरीकों को ईजाद करते जा रहे हैं।

 नई दिल्ली। ये दुर्योग ही है कि जिस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वच्छ भारत मिशन के लिए न्यूयॉर्क में गेट्स फाउंडेशन के ग्लोबल गोल कीपर अवार्ड से नवाजे जा रहे थे, उसी समय मध्यप्रदेश के शिवपुरी में दो दलित बच्चों की पीट-पीटकर इसलिए हत्या कर दी गई क्योंकि वो खुले में शौच करने को मजबूर थे। कुछ दिनों बाद ही जब हम गांधी की 150वीं जयंती मनाने जा रहे हैं, इस तरह की बर्बर हिंसक वारदात हमें केवल शर्मिंदा ही करती है। तारीखी लिहाज से गांधी के विचार जितने पुराने होते जा रहे हैं और उनके नाम पर आयोजन जितने भव्य, हम एक बर्बर समाज बनने के उतने ही नए-नए तरीकों को ईजाद करते जा रहे हैं। आसमान की ऊंचाइयों से लेकर, पाताल की गहराइयों तक हम कामयाबियों के भले ही कितने झंडे गाड़ लें लेकिन बापू की 150वीं जयंती और लोकतांत्रिक गणराज्य बनने की प्लैटिनम जुबली तक हम अपने बच्चों को शौच तक का अधिकार नहीं दे पाए। हमारे नाकारापन का इससे बड़ा और कोई नमूना नहीं हो सकता। करोड़ों टॉयलेट और घर की छत मुहैया कराए जाने के आंकड़े और दावे, इस तरह की घटनाओं के बाद केवल बेईमानी लगते हैं। समाज में बर्बर और हिंसक होती इस मानसिकता की बढ़ती प्रवृत्ति के लिए कौन सी परिस्थितियां जिम्मेदार हैं, हमें आंकड़े, दावे और राजनीति से परे होकर सोचना होगा। खबर ये भी है कि पहले इन दबंगों ने अपने रसूख के चलते परिवार के घर में सरकारी शौचालय भी नहीं बनने दिया और जब मजबूरी में खुल में शौच करने गए तो उन्हें मार डाला। ये बताता है कि निचले स्तर पर राजनीतिक रसूख और दबंगई सिस्टम पर किस तरह हावी हो जाती है। पहले गरीब का हक छीनती और फिर उसकी जान तक लेने से भी परहेज नहीं करते। दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश के लिए शर्म की इससे बुरी, कोई और बात हो नहीं सकती। एक लोकतांत्रिक गणराज्य और कथित सभ्य समाज के तौर पर ये हम सब की विफलता है। 2 अक्टूबर को हम किस मुंह से राजघाट पर गांधी की समाधि पर उनके विचारों का सामना कर पाएंगे। क्या उन्हीं हाथों से हम गुलाब की पंखुड़ियां बिखेर पाएंगे, जिनमे से कुछ के हाथों ने दो मासूमों से केवल इसलिए जीने का अधिकार छीन लिया क्योंकि हम उन्हें शौच तक का अधिकार नहीं दे पाए। राजनीति से परे हम सब को इस क्रूर वारदात पर सोचने की जरूरत है। इस घटना पर समाज को बेहद ही संवेदनशील होकर सोचने की जरूरत है। एक घटना होने पर उसी तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति का नया ट्रेंड भी आजकल शुरू हुआ है। गांधी को हमारी सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी स्वच्छता के नाम पर, हम इस तरह शौच लिंचिंग की किसी और घटना को होने से रोकें। अगर हम दिनोंदिन हिंसक और बर्बर होती मानसिकता को रोकने में जरा भी कामयाब हो पाए तो वही बापू के लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

आसमान की ऊंचाइयों से लेकर, पाताल की गहराइयों तक हम कामयाबियों के भले ही कितने झंडे गाड़ लें लेकिन बापू की 150वीं जयंती और लोकतांत्रिक गणराज्य बनने की प्लैटिनम जुबली तक हम अपने बच्चों को शौच तक का अधिकार नहीं दे पाए। हमारे नाकारापन का इससे बड़ा और कोई नमूना नहीं हो सकता। करोड़ों टॉयलेट और घर की छत मुहैया कराए जाने के आंकड़े और दावे, इस तरह की घटनाओं के बाद केवल बेईमानी लगते हैं। समाज में बर्बर और हिंसक होती इस मानसिकता की बढ़ती प्रवृत्ति के लिए कौन सी परिस्थितियां जिम्मेदार हैं, हमें आंकड़े, दावे और राजनीति से परे होकर सोचना होगा।

खबर ये भी है कि पहले इन दबंगों ने अपने रसूख के चलते परिवार के घर में सरकारी शौचालय भी नहीं बनने दिया और जब मजबूरी में खुल में शौच करने गए तो उन्हें मार डाला। ये बताता है कि निचले स्तर पर राजनीतिक रसूख और दबंगई सिस्टम पर किस तरह हावी हो जाती है। पहले गरीब का हक छीनती और फिर उसकी जान तक लेने से भी परहेज नहीं करते। दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश के लिए शर्म की इससे बुरी, कोई और बात हो नहीं सकती।

एक लोकतांत्रिक गणराज्य और कथित सभ्य समाज के तौर पर ये हम सब की विफलता है। 2 अक्टूबर को हम किस मुंह से राजघाट पर गांधी की समाधि पर उनके विचारों का सामना कर पाएंगे। क्या उन्हीं हाथों से हम गुलाब की पंखुड़ियां बिखेर पाएंगे, जिनमे से कुछ के हाथों ने दो मासूमों से केवल इसलिए जीने का अधिकार छीन लिया क्योंकि हम उन्हें शौच तक का अधिकार नहीं दे पाए। राजनीति से परे हम सब को इस क्रूर वारदात पर सोचने की जरूरत है।

इस घटना पर समाज को बेहद ही संवेदनशील होकर सोचने की जरूरत है। एक घटना होने पर उसी तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति का नया ट्रेंड भी आजकल शुरू हुआ है। गांधी को हमारी सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी स्वच्छता के नाम पर, हम इस तरह शौच लिंचिंग की किसी और घटना को होने से रोकें। अगर हम दिनोंदिन हिंसक और बर्बर होती मानसिकता को रोकने में जरा भी कामयाब हो पाए तो वही बापू के लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

(लेख में व्यक्त विचार, लेखक के निजी विचार हैं. आलेख में दी गई किसी भी सूचना की तथ्यात्मकता, सटीकता, संपूर्णता अथवा सच्चाई के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है. आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं)

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English summary
Two Dalit children beaten to death over open defecation Shivpuri Madhya Pradesh
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