3 तलाक बिल पर बीजेपी के जाल में फंसती दिख रही है कांग्रेस
नई दिल्ली। राजनीति में जो दिखता है वो अक्सर नहीं होता। मोदी 2 सरकार की पहली प्राथमिकता बनकर 3 तलाक सामने है। मगर, वास्तव में यह बिल उनकी पहली प्राथमिकता नहीं है। प्राथमिकता है झारखण्ड, हरियाणा, दिल्ली, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र के चुनाव। बीजेपी की नज़र हिन्दू वोट बैंक को मजबूत करने की है। कांग्रेस समेत पूरा विपक्ष बीजेपी की शतरंजी चाल में फंसती नज़र आ रही है।
3 तलाक को पास कराने के लिए राज्यसभा में बहुमत केंद्र सरकार के पास नहीं है। राज्यसभा की 245 सीटों में से 9 खाली हैं। एनडीए के पास 104 सदस्य हैं। टीडीपी के चार राज्यसभा सांसद के बीजेपी में आ जाने के बाद यह संख्या बढ़कर 108 हो गयी है। फिर भी यह 236 की आधी यानी 118 से एक ज्यादा यानी 119 से 11 कम है। फिर भी बीजू जनता दल के पास 5 और अन्य व निर्दलीय के तौर पर 6 सदस्य हैं जिनसे मौका पड़ने पर बीजेपी उम्मीद कर सकती है। कई मौकापरस्त पार्टियां भी बीजेपी के काम आ सकती हैं। यह बात स्पष्ट है कि 3 तलाक के मुद्दे के बहाने बीजेपी विपक्ष की सियासत को मुस्लिमपरस्त और अपनी सियासत को हिन्दूवादी दिखाती रहना चाहती है। ऐसा बीजेपी कब तक करना चाहेगी यह भी उसके ही हाथ में है।
बीजेपी की नज़र हिन्दू वोट बैंक को मजबूत करने की
कांग्रेस को सॉफ्ट हिन्दुत्व रास आ रहा था, मगर वह इस नीति पर टिकी नहीं रह पायी। किसी मुद्दे पर असदुद्दीन ओवैसी के साथ संसद में कांग्रेस को खड़े दिखाना ही बीजेपी के लिए आज की सियासत में बड़ी सफलता है। यह संदेश देना भी बीजेपी के लिए बड़ी राजनीतिक सफलता है कि 3 तलाक का कांग्रेस समेत विपक्ष विरोध कर रहा है। जबकि हकीक़त क्या है? 3 तलाक विधेयक का कांग्रेस विरोध नहीं कर रही है। वह उसके प्रावधानों का विरोध कर रही है। बल्कि, प्रावधानों में संशोधन सुझा रही है। कांग्रेस को स्पष्ट रूप से पहले उस भ्रम को तोड़ना चाहिए जो बीजेपी उसके नाम पर फैला रही है। तीन तलाक की प्रथा का ख़त्म होना जरूरी है, यह मुस्लिम महिलाओं के खिलाफ है- यह बात कांग्रेस को खुलकर बोलनी चाहिए। उसके बाद ही अपनी उन आपत्तियों को सामने रखना चाहिए जिन्हें वे पहले रख रहे हैं।
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3 तलाक विधेयक का नहीं, कांग्रेस उसके प्रावधानों का विरोध कर रही है
तीन तलाक के गुनहगारों को 3 साल की सज़ा का विरोध क्यों हो? बल्कि, सज़ा और भी कड़ी करने की मांग की जानी चाहिए। कांग्रेस अगर इस सज़ा को कम करने की बात कहती है और उसका तर्क हिन्दुओँ में ऐसे ही किसी मामले में कमजोर सज़ा के उदाहरण से होगा, तो निश्चित रूप से यह तुलना राजनीतिक रूप से कांग्रेस पर भारी पड़ेगी। बीजेपी के बजाए कांग्रेस ही हिन्दू-मुस्लिम करती दिखेगी। यह माना कि 3 तलाक देने वाले मर्द सज़ा पाने के बाद जब जेल में होंगे तो गुजाराभत्ता कैसे दे पाएंगे। मगर, ये प्रश्न तो हर उस अपराध के मामले से जुड़ा है जिसमें कमाऊ व्यक्ति के जेल में चले जाने के बाद आश्रितों का जीना मुहाल हो जाता है। क्यों नहीं ऐसे सभी मामलों को एक साथ देखने और कोई मानवीय दृष्टिकोण अपनाने का सुझाव लेकर कांग्रेस सामने आती है? हालांकि यह भी उसे वर्तमान में तीन तलाक के कानून का समर्थन करते हुए करना होगा।
हर हाल में मुस्लिम महिलाएं 3 तलाक से छुटकारा चाहती हैं
3 तलाक का प्रावधान तलाक की घटनाओं को रोकने के लिए था। मगर, इसने ऐसी कुरीति का रूप ले लिया कि इससे तलाक की घटनाएं बढ़ गयीं। महिलाओं को इसका विरोध करने का अधिकार नहीं होने की वजह से महिलाएं सबसे बड़ी पीड़ित बनकर उभरीं। अब हर हाल में मुस्लिम महिलाएं 3 तलाक से छुटकारा चाहती हैं। वे तमाम लोग, चाहे मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के लोग हों या फिर राजनीतिक दलों के, इस बात के गुनहगार हैं कि उन्होंने कभी 3 तलाक की कुप्रथा के ख़िलाफ़ महिलाओँ की आवाज़ बुलन्द नहीं की। यह अवसर उन गलतियों को सुधारने का भी है। मुस्लिम महिलाओँ ने अपने हक की लड़ाई खुद लड़ी और सुप्रीम कोर्ट से जीती है। सत्ताधारी दल बीजेपी तो महज सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार कानून बनाने की कोशिश कर रही है। एक राजनीतिक दल अगर कोई कोशिश करेगा तो वह उसका राजनीतिक फायदा भी जरूर सोचेगा। बीजेपी यही कर रही है। ऐसा नहीं है कि मुस्लिम महिलाओं के अधिकार के प्रति वे अचानक संजीदा हो गये हैं। अगर होते, तो 3 तलाक के खिलाफ कितनी बार उन्होंने आंदोलन किए, इसका इतिहास बीजेपी जरूर बताती। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद बीजेपी सरकार को मौका मिल गया कि वह इस मुद्दे को राजनीतिक रूप से भुना सके और इससे वोट बटोर सके।
कांग्रेस समेत विपक्ष बीजेपी की चाल में फंस जा रहे हैं
3 तलाक की ही तरह बीजेपी सरकार वन नेशन वन इलेक्शन के मुद्दे का भी इस्तेमाल कर रही है। वह राजनीतिक बहस छेड़कर ‘देश का पैसा बचाने' और राष्ट्रहित जैसे मुद्दे को उभारने जा रही है। जब 3 तलाक बिल ही अगले चुनावों की तैयारी है तो समझा जा सकता है कि वन नेशन वन इलेक्शन की बात कितनी बेमानी है। इस विषय पर बहस के नाम पर पीठ दिखा रही कांग्रेस और दूसरे दलों के लिए भी यह नुकसान का सौदा होगा। पर्सेप्शन की लड़ाई बीजेपी जीत चुकी होगी। बीजेपी एनआरसी का मुद्दा भी इतने ही जोर-शोर से उठाएगी। इसकी वजह ये है कि इस मामले में भी कांग्रेस समेत पूरे विपक्ष का सुर एकतरफा रहने वाला है। बीजेपी यही दिखाना चाहती है। वह बताना चाहती है कि वास्तव में घुसपैठ मिटाने का विरोध किया जा रहा है। वोट बैंक से इस मुद्दे को जोड़कर बीजेपी हमला करने की तैयारी में है। एनआरसी के मुद्दे पर भी कांग्रेस को स्पष्ट रुख लेना होगा कि किस हद तक वह घुसपैठ को बर्दाश्त करने को तैयार है और किन बिन्दुओं पर उसका विरोध है। कांग्रेस के लिए चुनौती बड़ी है मगर बीजेपी के लिए राह आसान है। बीजेपी को अपने एजेंडे पर चलने के लिए मुश्किलात का सामना करना नहीं पड़ रहा है। वह बस अपना एजेंडा चल दे रहा है और कांग्रेस समेत विपक्ष उनकी चाल में फंस जा रहे हैं, बल्कि फंसते चले जा रहे हैं।
(इस लेख में व्यक्त विचार, लेखक के निजी विचार हैं. आलेख में दी गई किसी भी सूचना की तथ्यात्मकता, सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं।)
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