
तृणमूल पार्टी की अंदरूनी गुटबाजी ने भी निभाई पार्थ चटर्जी को निपटाने में अहम भूमिका
पश्चिम बंगाल सरकार के नंबर दो ताकतवर मंत्री पार्थ चटर्जी की विदाई हो चुकी है। इसके साथ ही तृणमूल कांग्रेस के ऐसे नेता का राजनीतिक पराभव भी हो चुका है जिसने तृणमूल कांग्रेस की स्थापना में बड़ी भूमिका निभाई थी। अब वे और उनकी अंतरंग अर्पिता मुखर्जी - दोनों जेल में हैं। अर्पिता के घर से मिली 59 करोड़ की नकदी और करोड़ों के गहनों की चमक फिलहाल अदालती कस्टडी में राजकीय कोषागार की आलमारियों में खो चुकी है।

प्रवर्तन निदेशालय की कार्रवाई के बाद पार्थ चटर्जी पश्चिम बंगाल में लोगों की उपेक्षा के पात्र बन गये हैं। उनसे उन लोगों ने भी किनारा काट लिया है, जो कुछ दिनों पहले तक उनके पीछे घूमा करते थे। बेशक प्रवर्तन निदेशालय ने भ्रष्टाचार के खिलाफ अदालत के आदेश पर कार्रवाई की है। जांच की शुरूआत हुई शिक्षक भर्ती घोटाले की जांच से और कड़ियां जुड़ती गईं, जो हालिया मुकाम तक पहुंची है। लेकिन पश्चिम बंगाल के राजनीतिक हलके में एक बड़ा वर्ग इसे सिर्फ भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्यवाही ही नहीं मान रहा है। विशेषकर तृणमूल कांग्रेस के अंदरूनी सूत्र कुछ और ही कहानी सुना रहे हैं। उनका मानना है कि प्रवर्तन निदेशालय को तृणमूल कांग्रेस के अंदरूनी सूत्रों से ही जानकारी मुहैया कराई गई।
एक सूत्र का दावा है कि इसके पीछे तृणमूल में अंदरूनी वर्चस्व की जंग भी एक बड़ी वजह है। कुछ दिनों पहले तक ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी पार्टी में नंबर दो माने जाने लगे थे। इसे लेकर जहां तृणमूल विरोधी ताकतें ममता बनर्जी पर परिवारवाद का आरोप लगा रही थीं, वहीं तृणमूल कांग्रेस में भी कई ऐसी ताकतें थीं, जिन्हें अभिषेक का ताकतवर बनना पसंद नहीं आ रहा था। उन पर जब खनन घोटाले के आरोप लगे तो उसके बाद अपनी बेदाग छवि के चलते ममता बनर्जी को भी अपने ही प्यारे भतीजे को किनारे करने का दिखावा करना पड़ा।
तृणमूल के अंदरूनी सूत्र बताते हैं कि अभिषेक को किनारे कराने में पार्थ की भी बड़ी भूमिका थी। इसके बाद से ही पार्थ चटर्जी अभिषेक समर्थक खेमे के निशाने पर थे। मंत्रिमंडल में दूसरी बड़ी हस्ती होने और ममता के विश्वस्त होने के चलते उन पर अभिषेक समर्थक खुलकर सवाल उठाने की हिम्मत तक नहीं कर पा रहे थे। लेकिन इस बीच स्कूली शिक्षक भर्ती घोटाला सामने आ गया।
कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश पर उसकी जांच भी शुरू हो गई। भ्रष्टाचार की परतें खुलने लगीं। इसके बाद पार्थ के भ्रष्टाचार और रंगीनियों से जुड़े रहस्यों को रिकॉर्ड पर लाया जाने लगा। कहने का मतलब है कि पार्थ की काली कमाई की जानकारी तृणमूल के बड़े लोगों को पहले से ही थी। लेकिन उन पर हाथ डालने के लिए मौके का इंतजार किया गया। अपनी राजनीतिक अदावत के चलते उनसे हिसाब-किताब करने के लिए इस अवसर का इस्तेमाल किया गया।
तो क्या यह मान लिया जाय कि अभिषेक समर्थक खेमे ने प्रवर्तन निदेशालय को पर्दे के पीछे से पार्थ की रंगीनियों और भ्रष्टाचार की अंधेरी सुरंगों की जानकारी दी? तृणमूल कांग्रेस के अंदरूनी सूत्र यही जानकारी देते हैं। उनका कहना है कि कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश के बाद शिक्षक भर्ती घोटाले की शुरू हुई जांच के बाद अभिषेक खेमे ने पार्थ से जुड़ी वे जानकारियां भी केंद्रीय एजेंसियों को मुहैया करा दी, जहां एजेंसियां भले ही बाद में पहुंच जातीं, लेकिन अभी उनकी वहां पहुंच नहीं थी।
कोलकाता में एक बात और कही जा रही है कि पार्थ की काली कमाई में तृणमूल को मिला चंदा भी है, जिसे वे डकार गए थे। चूंकि वे नंबर दो थे, इसलिए उनसे सवाल पूछने की हिम्मत किसी में नहीं थी। ममता के साथ चूंकि वे शुरू से ही थे इसलिए वे भी उनका लिहाज करती थीं। पार्टी फंड को लेकर भी उनसे कुछ नहीं पूछा जाता था। लेकिन जब उनकी गिरफ्तारी के बाद पार्टी की इज्जत तार-तार होने लगी तो ममता के सामने उन्हें बाहर का रास्ता दिखाने के अलावा दूसरा कोई चारा नहीं रहा।
वैसे पार्थ को भरोसा था कि जिस तरह कोलकाता के पुलिस कमिश्नर को सीबीआई से बचाने के लिए ममता खुद सड़क पर उतर गई थीं, उनके लिए भी वे वैसा करेंगी। लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ। उलटे पार्थ की गिरफ्तारी के बाद ममता और तृणमूल कांग्रेस बैकफुट पर है। जानकार मानते हैं कि पार्थ को पार्टी से निकाले जाने के बाद भी शायद ही पार्टी का संकट दूर हो।
पार्टी में खुलकर अभिषेक और अन्य का गुट काम कर रहा है। इससे दूसरे भ्रष्टाचारी नेता भी आशंकित हैं। जाहिर है कि वे अपने बचाव में कदम भी उठाएंगे और प्रतिउत्तर में अभिषेक की कमियों को भी खोजकर उसके बहाने उन पर सवाल उठाएँगे ताकि ममता की नजर में अभिषेक निर्विवाद विकल्प न बनने पायें। लगता है कि बंगाल की राजनीति में अभी अनेक नए खुलासे होने बाकि हैं।
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