सोनभद्र आदिवासी 'नरसंहार' मामले में सड़क पर दिखीं प्रियंका गांधी लेकिन कहाँ हैं अखिलेश मायावती?
नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में हुए जमीनी विवाद में 10 लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। यह घटना दिल दहला देने वाली थी। हालाँकि इस मामले में पुलिस ने मुख्य आरोपी ग्राम प्रधान यज्ञदत्त समेत 27 लोगों को अब तक गिरफ्तार कर लिया है। अन्य आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए पुलिस की टीमें सक्रिय हैं।
इसी सामूहिक नरसंहार में मारे गए लोगों के परिजनों से मिलने के लिए कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी सोनभद्र जिले के उस गावं में पीड़ित परिवारों से मिलने के लिए अड़ी हुई थी। जबकि वहां का प्रशासन उन्हें घटनास्थल पर जाने से रोक रही थी। प्रशासन का कहना था की ऐसा वह वहां उपजे तनाव को देखते हुए कर रहा है। लेकिन प्रियंका का कहना था कि वह पीड़ित परिवारों से मिले बिना वापस नहीं जाएंगी। जो तनाव और पीड़ा प्रभावित परिवारों ने झेली है, उससे ज्यादा तनाव और भला क्या होगा!
उत्तर प्रदेश की सियासत गरमा गई है
चुनार किले के गेस्ट हाउस में पीड़ितों से मुलाकात होने के बाद भले ही प्रियंका गांधी का धरना ख़त्म हो गया है लेकिन उत्तर प्रदेश की सियासत एक बार फिर से गरमा गई है। विधानसभा में विपक्ष कानून व्यवस्था को लेकर योगी सरकार को कटघरे में खड़ा कर रही है तो वहीं प्रियंका का कहना है की वह सड़क पर संघर्ष करने से लेकर जहाँ तक संभव होगा वह पीड़ितों का साथ देगी। प्रियंका ने ऐसा करके भी दिखाया है। जब उन्हें पीड़ित परिजनों से मिलने नहीं दिया गया तो उन्होंने और कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने मिर्जापुर के चुनार गेस्ट हाउस के बाहर ही धरना-प्रदर्शन शुरू कर दिया था। वहीं रात भी गुजारी। वह इस मुद्दे पर लगातार मुखर होती जा रही थी। यह वही समय था जब पीड़ित परिजनों को सहयोग और सहानुभूति की जरुरत होती है। उत्तर प्रदेश की राजनीति में लगभग हाशिये पर पड़ी कांग्रेस इस बात को समझ रही थी। प्रियंका सड़क की लड़ाई लड़कर उन पीड़ित परिवारों के साथ अबतक खड़ी दिखी है। वह ही एकमात्र थी जो पीड़ित परिवारों से मिलने के लिए मिर्जापुर के प्रशासन से जूझ रही थी।
बड़ी पार्टियां जो खुलकर मुखर नहीं रहीं
वहीं उत्तर प्रदेश की दो बड़ी राजनीतिक पार्टियां समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी लगभग इस बड़ी घटना के परिदृश्य से गायब हैं। उनका जुझारूपन सड़क पर दिख नहीं रहा है, जबकि उत्तर-प्रदेश में ये पार्टियां खुद को बहुजन हितों का पोषक कहती है। सपा के वर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव और बसपा के मायावती जमीनी स्तर पर खुद कुछ करते दिख नहीं रहे हैं। प्रियंका गांधी के जमीं पर आकर लड़ने और पीड़ितों के साथ आकर खड़े होने के इस साहस ने आम आदमी की नज़रों में इन नेताओं के कार्यशैली पर एक अनकहा सवाल उठाया है।
अखिलेश यादव
सपा प्रमुख इस वीभत्स घटना की आलोचना अपने ट्विटर और फेसबुक के माध्यम से करते हैं। घटना घटित होने के दिन वे ट्विटर के माध्यम से सरकार से सभी मृतकों के परिवारों को 20-20 लाख रुपए मुआवज़ा देने और दोषियों पर सख़्त से सख़्त कार्रवाई करने की अपील करते हैं। घटना के तीसरे दिन समाजवादी पार्टी घटनास्थल पर घटना की जाँच के लिए अपना प्रतिनिधि मंडल भेजती है, जिसे प्रशासन द्वारा रोक दिया गया था। उस प्रतिनिधि मंडल में खुद अखिलेश यादव नहीं होते हैं जबकि यह घटना कोई मामूली घटना नहीं है। यह मामला आदिवसियों के नरसंहार का है जिसमें सामूहिक हत्या हुई है। यह घटना उन्हीं के राज्य की है जहाँ के वे खुद मुख्यमंत्री रह चुके हैं।
मायावती
वही हाल बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो और पूर्व मुख्यमंत्री मायावती की भी है। इन्होंने तो घटना के दो दिन बाद तक अपना प्रतिनिधि मंडल भी नहीं भेजा है। घटना घटित होने के अगले दिन वह अपने भाई के ऊपर सम्पत्ति के मामले में सीबीआई के दखल पर ट्वीट करती दिखती हैं, लेकिन इस मुद्दे पर कुछ नहीं कहती हैं। उनके घटना स्थल पर जाने की तो बात ही नहीं दिख रही है, ये और बात है की वह खुद को दलित, पिछड़ों और आदिवासियों का सबसे बड़ा नेता मानती हैं। उन्होंने भी बस सरकार पर दबाब बनाये रखने की बातें कहीं और सरकार से न्याय की अपील की। सही वक़्त आने पर उनकी पार्टी उचित कार्यवाई करेगी , ऐसा उन्होंने कहा है।
अब इस मुद्दे पर देश के अन्य राजनीतिक दल भी मुखर हो रहे हैं, लेकिन पीड़ित परिवारों से मिलने के लिए सड़क पर किये गए प्रियंका गांधी के संघर्ष ने इस मुद्दे को दबने नहीं दिया है और यह उम्मीद है की पीड़ितों को न्याय मिलेगा।