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शिकारा: विस्थापन के दर्द के बीच मोहब्बत बढ़ाती एक प्रेम कहानी

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शिकारा

कश्मीर एक रेशमी धागा है। और 'शिकारा' उस रेशमी धागे के समुच्चय का एक तागा। 'शिकारा' बैचेन खामोशियों के बीच प्रेम की शरगोशी करती हुई एक कहानी है। इन खामोशियों में कश्मीरी पंडितों के कश्मीर से विस्थापन का दर्द है और इस दर्द के दामन में जो प्रेम शरगोशी करता है, उसके रूह में एक उम्मीद, एक यकीन है।

प्रेम उम्मीद और यकीन है भी। जहां यकीन ही दफ़न हो जाए वहां प्रेम की नब्ज़ ठहर तो जाएगी ही। शिकारा के नायक के घर की नींव उसके मुस्लिम दोस्त के पिता की दी गई पत्थरों पर है और नायक को भी इस नींव में इतना यकीन है कि वह उनके मुश्किल हालात में अनायास खुद को उनका बेटा लिखित करवाता है। यहां प्रेम विराट होता है और जब नायक का मुस्लिम दोस्त नायक से कहता है कि वह अपने अब्बा को तो नहीं बचा सका लेकिन वह अपने पिता को समय रहते बचा ले, तब यहां प्रेम मजहब की दीवार को तोड़ते हुए आपस में एकसार हो जाता है। प्रेम के इसी औदात्य रूप को आज के तथाकथित राजनीतिक लोग दिन-रात तोड़ने की कोशिश में लगे रहते हैं ताकि उनकी राजनीतिक दुकान चलती रहे। 'शिकारा' इसी बिंदु पर उन लोगों को निराश करती है जिनके लिए कश्मीर और कश्मीरी पंडित की घर वापसी में प्यार नहीं बल्कि बदला लेने की अभिलाषा उत्कट है। और यह अपने उग्रतम रूप में भी अक्सर दिखता है क्योंकि उनकी विचार धाराओं को राजनीतिक खुराक मिलती रहती है।

'शिकारा' कश्मीरी पंडितों के विस्थापन के इतिहास में गहरे जाने से बचते हुए कश्मीरी पंडितों के विस्थापन के दर्द को गुम्फित करता है, लेकिन अपने इस दर्द के लिए किसी के प्रति नफ़रत पैदा नहीं करता। वह राजनीति करते हुए नहीं दिखती है जैसा की आज के वक़्त में सत्ता में बैठे लोगों का हासिल यही दिखता है। यह 'शिकारा' की सामान्य प्रेम कहानी को विशिष्ट बनाती है।

शिकारा

जम्मू-कश्मीर पटनी टॉप हाइवे पर गाय के एक नवजात बच्चे को अल्लाह के भरोसे उसके हाल पर छोड़ दिया जाता है। राजनीतिक दलों के सिर्फ राजनीति करने और मुद्दों को सुलगाए रखने के लिए कश्मीरी पंडितों को उसके नियति के हाल पर छोड़े जाने के दर्द भी ऐसे ही हैं। इसलिए 'शिकारा' राजनीति को अपने मामले में दखल देने की पुरजोर वकालत करने की जगह प्रेम को अभीष्ट मानती है। कश्मीर के लिए कश्मीरी पंडितों के दिल में उनके विदारक विस्थापन के बाद भी प्यार है। उनके इस वजह से लौटने की उम्मीद में अमन चैन की नज़्म है।

'शिकारा' के छायांकन में उदास वादियां हैं जो विस्थापितों के दर्द को मौन में भी कहती रहती हैं। नए चेहरों ने कश्मीरियों की छवि को ज्यादा सघनता दी है। ए आर रहमान का संगीत भी मेल खाता है। इरशाद कामिल के बोल दर्द में प्रेम जैसे हैं। 'शिकारा' प्यार से शुरू होकर प्यार पर ख़त्म होती है।

(इस लेख में व्यक्त विचार, लेखक के निजी विचार हैं. आलेख में दी गई किसी भी सूचना की तथ्यात्मकता, सटीकता, संपूर्णता, अथवा सच्चाई के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)

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English summary
Shikara: A love story that grows in love amidst the pain of displacement.
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