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माता अमृतानंदमयी के लिए मानव सेवा ही धर्म है

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बीते कुछ सालों से केरल कई अन्य कारणों से चर्चा में रहा है। कभी किसी हिन्दू लड़की को मुस्लिम बनाने की वजह से तो कभी ईसाइयों द्वारा मुसलमानों पर लव जिहाद का आरोप लगाने से, तो कभी पीएफआई जैसे चरमपंथी इस्लामिक संगठन के कारण। इन सबके बीच ईश्वर के अपने देश केरल की अच्छाइयों की चर्चा कम ही होती है। केरल की माता अमृतानंदमयी बीते चार दशकों से भारत और भारत के बाहर मानव सेवा के जरिए जिस धर्म का प्रसार कर रही हैं उसके बारे में कम ही लोग जानते, समझते और चर्चा करते हैं।

Mata Amritanandamayi

इसी 25 अगस्त को केरल से दूर दिल्ली एनसीआर में उनके मठ द्वारा भारत के सबसे बड़े अस्पताल की शुरुआत की गयी तो माता अमृतानंदमयी के सेवा कार्यों की चर्चा एक बार फिर हुई है। इस अस्पताल का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया है। हालांकि अभी इस अस्पताल का पहला चरण पूरा हुआ है जिसमें 500 बिस्तरों वाला अस्पताल शुरु हो गया है। लेकिन आगामी चार पांच सालों में इसे विस्तार देकर 2600 बिस्तरों वाले अस्पताल में परिवर्तित कर दिया जाएगा। तब यह देश का सबसे बड़ा निजी अस्पताल होगा।

कौन हैं माता अमृतानंदमयी?
माता अमृतानंदमयी का जन्म केरल के परयाकाडावु में 27 सितंबर 1953 को हुआ था। उनका बचपन का नाम सुधामणि था। उनका जन्म एक गरीब परिवार में हुआ था इसलिए वो ज्यादा पढ लिख नहीं पाईं। उन्होंने सिर्फ चौथी कक्षा तक पढाई की। पढाई की बजाय उनका बचपन घर का काम काज करने में ही बीता। घर में पीने की पानी की व्यवस्था, घर में भोजन पकाने के लिए लकड़ी की व्यवस्था आदि का जिम्मा सुधामणि के जिम्मे ही रहता था।

हालांकि सुधामणि का परिवार स्वयं गरीब था लेकिन जब वो अपने घर से बाहर निकलती और आसपास लोगों की गरीबी देखतीं तो कई बार अपने घर से कुछ न कुछ लाकर दूसरों की मदद करने की कोशिश करतीं। छह भाई बहनों के बीच सुधामणि सबसे अलग थीं। वह लोगों के दुख दर्द में शामिल होतीं और कुछ न कर पातीं तो कम से कम उन्हें गले लगाकर सांत्वना जरूर देतीं।

कहते हैं बचपन से सुधामणि के इस स्वभाव के कारण धीरे धीरे लोग उनसे प्रभावित होने लगे। सुधामणि में प्रेम, दया और करुणा का कुछ ऐसा आकर्षण था कि जो उनके सामने अपना दुख लेकर पहुंचता, रोने लगता। ऐसे में सुधामणि कई बार मातृत्व भाव से उसका सिर अपनी गोद में रख लेतीं या फिर गले लगाकर सांत्वना देतीं। सुधामणि की यह करुणा और प्रेम धीरे धीरे आसपास के लोगों में विख्यात हो गया। लोगों को मानसिक शांति मिलती और अपने कष्टों से उबरने की ताकत भी।

धीरे धीरे यह बात प्रचारित हो गयी कि सुधामणि का दर्शन करने से लोगों को दुख दूर हो जाते हैं। इसलिए सत्तर के दशक के आखिर से उन्होंने लोगों को दर्शन देना शुरु कर दिया था। कई बार तो ऐसा होता था कि 18-20 घंटे वो सिर्फ लोगों को दर्शन देंती, उनका दुख सुनती और उनके आंसू पोछतीं।

सुधामणि की इस करुणा और निस्वार्थ प्रेम के कारण लोग उन्हें अम्मा कहकर संबोधित करने लगे। जैसे जैसे लोग उनके आसपास बढने लगे उन्होंने सेवा कार्य को आकार देना शुरु कर दिया। आज वो अम्मा या माता अमृतानंदमयी के नाम से विख्यात हैं। लेकिन उनकी ये ख्याति उनके प्रेम, करुणा और सेवा कार्यों के कारण ही हुई है।

लोका: समस्ता सुखिनो भवन्तु
मनुष्य को दो प्रकार के कष्ट हैं। पहला, भौतिक या सांसारिक और दूसरा आध्यात्मिक या भावनात्मक। माता अमृतानंदमयी अपने सामने आनेवाले मनुष्यों को इन दोनों ही प्रकार के कष्टों से उबारने का कार्य करती हैं।
अपने अनुभवों से माता अमृतानंदमयी जानती हैं कि संसार में अधिकतर मनुष्यों के कष्ट का कारण आध्यात्मिक या भावनात्मक नहीं है। अधिकतर मनुष्य भौतिक अभाव में कष्ट भोग रहे हैं। इसलिए आध्यात्मिक प्रवचन से अधिक उनका जोर सेवा कार्यों पर रहता है। आज माता अमृतानंदमयी मठ भारत ही नहीं दुनिया के कई देशों में अपने सेवा कार्यों के लिए जाना जाता है।

माता अमृतानंदमयी मठ आज शिक्षा, तकनीकि, चिकित्सा, पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में कार्यरत है। अमृता विश्व विद्यापीठ के आज छ: कैम्पस है और यह देश का एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय बन चुका है। इसके साथ ही 1998 में मठ द्वारा कोच्चि में अमृता इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंसेज की स्थापना की गयी जो आज 1100 बिस्तरों वाला सुपर स्पेशिएलिटी अस्पताल है। इस अस्पताल में निजी अस्पतालों की तुलना में बहुत कम फीस ली जाती है लेकिन रोगी को संपूर्ण सेवा भाव से विश्वस्तरीय चिकित्सा उपलब्ध कराई जाती है। दिल्ली से सटे फरीदाबाद में माता अमृतानंदमयी अस्पताल इसी के विस्तार की एक कड़ी है जो 2026 तक पूरी तरह बन जाने के बाद भारत का सबसे बड़ा निजी अस्पताल होगा।

चिकित्सा और शिक्षा के अलावा माता अमृतानंदमयी मठ सेवा के अन्य कार्य भी करता है। माता अमृतानंदमयी की प्रेरणा से 1987 में अम्मा की रसोंई की शुरुआत हुई थी जो लोगों को नि:शुल्क भोजन कराता है। भारत के अलावा आज अम्मा का किचन उत्तरी अमेरिका, मेक्सिको, फ्रांस, स्पेन, केन्या, ब्राजील और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में भी जरूरतमंद लोगों को निशुल्क भोजन उपलब्ध करा रहा है।

भारत में शुद्ध पेयजल की समस्या को देखते हुए इस समय मठ की ओर से भारत के 5000 गांवों में शुद्ध पेयजल की आपूर्ति भी की जा रही है। 1998 से अब तक माता अमृतानंदमयी की ओर से बेघर लोगों के लिए 47 हजार घरों का निर्माण करवाया गया है। माता अमृतानंदमयी मठ की ओर से केरल और केन्या में अनाथ बच्चों के लिए अनाथ आश्रम का संचालन भी किया जाता है। मठ की ओर से लगभग एक लाख विधवाओं, बेसहारा, अपंग लोगों को पेंशन भी दी जाती है।

इसके अलावा देश विदेश में जहां कहीं प्राकृतिक आपदा आयी है माता अमृतानंदमयी मठ वहां सेवा कार्य के लिए उपस्थित होता है। फिर वो 2001 में आया गुजरात का भूकंप हो कि 2015 में नेपाल में आया भूकंप। माता अमृतानंदमयी मठ बाढ, भूकंप, सुनामी में लोगों की मदद के लिए खड़ा रहता है। 2001 से लेकर अब तक मठ की ओर से 75 मिलियन डॉलर ऐसे आपदा राहत पर खर्च किया जा चुका है। स्वाभाविक है ये धन भी समाज के लोग उन्हें दे रहे हैं और वो समाज के लोगों पर खर्च कर रहे हैं। इन सबके बीच माता अमृतानंदमयी देवी एक मध्यस्थ हैं। वो स्वयं को एक मध्यस्थ ही मानती हैं। जो समस्त लोक के सुख के लिए बिना किसी भेदभाव के सेवा के माध्यम से निरंतर प्रयासरत है। यही उनके लिए सबसे बड़ा धर्म है।

(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)

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English summary
service of humanity is mata amritanandamayi religion
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