तेजस्वी की वजह से राजद ने ताकत दिखाने का गंवा दिया मौका
पटना: बिहार विधानमंडल का मानसून सत्र 26 जुलाई को समाप्त हो रहा है। सत्र का समापन अब बिल्कुल नजदीक है। अभी तक यह सत्र मुख्य विपक्षी दल राजद के लिए बहुत निराशाजनक रहा है। लोकसभा चुनाव में हार के बाद राजद को अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज कराने के लिए यह बड़ा मौका था लेकिन वह इसका फायदा नहीं उठा पाया। नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव की गैरहाजिरी ने राजद को बैकफुट पर धकेल दिया। अभी तक सदन की 18 बैठकों में से दो दिन ही तेजस्वी कुछ देर तक सदन में दिखे थे। पटना में रह कर भी सदन की कार्यवाही में शामिल नहीं हुए। अगर विधायक दल का नेता ही सदन से गायब रहेगा तो बाकी सदस्यों पर के मनोबल पर क्या असर पड़ेगा ?
सदन की परम्परा का पालन नहीं कर सका राजद
जब सरकार सदन में बजट पेश करती है तो नेता प्रतिपक्ष ही बहस की शुरुआत करते हैं। इसके बाद वित्त मंत्री सरकार का पक्ष रखते हैं। लेकिन इस बार तेजस्वी यादव के गैरमौजूद रहने से इस परम्परा का पालन नहीं हो सका। यह मुख्य विपक्षी दल के लिए अच्छी बात नहीं है। बजट पर बहस के दौरान विभिन्न विभागों की मांगों पर भी राजद के सदस्य तर्कसंगत विरोध नहीं कर पाये। बहस के दौरान ये दिखा कि राजद के सदस्यों ने बजट प्रावधानों पर होम वर्क नहीं किया था। इसकी वजह से वे सदन में सरकार को घेर नहीं पाये।
कानून व्यवस्था भी मु्द्दा नहीं बन पाया
कानून व्यवस्था पर पर भी राजद के सदस्य मुकम्मल तैयारी के साथ सदन में नहीं आये। जब कि सरकार का पक्ष रखते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आंकड़ों के साथ विभिन्न अपराधों की कमी या बेसी पर तफसील से अपनी बात रखी। इस दौरान उन्होंने खुद माना कि राज्य में हत्या के अपराध में बढ़ोतरी हुई है। दूसरी तरफ राजद के सदस्य कुछ घटनाओं का ब्यौरा पेश कर सरकार को घेरने की कोशिश करते रहे। फैक्ट एंड फिगर के बगैर राजद के सदस्य अपनी बात को प्रभावशाली तरीके से नहीं रख सके। जब कि अपराध का ग्राफ बढ़ने के बाद भी सरकार ने आंकड़ों की बाजीगरी से अपना दामन बचा लिया। अगर तेजस्वी यादव सदन में रहते तो वे दमदार तरीके से अपनी बात सदन में रख सकते थे। वे अक्सर कानून व्यवस्था पर ट्वीट कर सरकार पर सवाल उठाते रहे हैं। लेकिन जब सदन में सवाल पूछने का मौका आया तो उन्होंने सरकार को वाकओवर दे दिया।
इंसेफेलाइटिस के मु्द्दे पर भटक गया राजद
बिहार में इंसेफेलाइटिस से करीब दो सौ बच्चे मर गये। यह हृदयविदारक घटना है। इन बच्चों की जान बचाना सरकार की जिम्मेवारी थी। लेकिन राजद इस मुद्दे पर भटक गया। वह सरकार की नाकामी को साबित करने की बजाय केवल स्वास्थ्य मंत्री के इस्तीफे पर अड़ गया। एक व्यक्ति विशेष पर केन्द्रित हो जाने से राजद ने मूल मुद्दे को गौण कर दिया। इस मु्दे पर सरकार ने कार्यस्थगन का प्रस्ताव मंजूर कर विपक्ष को अपनी ताकत दिखाने का एक बड़ा मौका दिया था। लेकिन गलत रणनीति के कारण ये मौका हाथ से फिसल गया। इस दौरान राजद नीतीश पर नरम रहा। उसने केवल भाजपा के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय को ही निशाना बनाया। जब कि चमकी बुखार से मौत की तबाही के लिए सरकार की नीतियां और लालफीताशाही को जिम्मेवार माना जा रहा था। इसके अलावा राजद बाढ़-सुखाड़ से परेशान लोगों की भी आवाज नहीं बन सका।
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