Upper Caste Reservation: गरीब सवर्णों से छल, कोर्ट से पास नहीं हो पाएगा आरक्षण
नई दिल्ली। गरीब सवर्णों के लिए आरक्षण का बिल लोकसभा में पेश हो चुका है। कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, एनसीपी ने समर्थन का एलान किया है। बीएसपी भी इसे चुनावी पेशकश बताते हुए समर्थन देने को तैयार है। आरजेडी, डीएमके को आपत्ति है। मगर, देश की ज्यादातर राजनीतिक पार्टियां सवर्णों के गरीबों को आरक्षण देने के पक्ष में दिख रही हैं।
यह एक आश्चर्य है। वोट बैंक का गणित आरक्षण से इस तरह बंधा है कि चाहे आप इस आरक्षण को जितना बढ़ाते चलें, विरोध की हिम्मत किसी की नहीं होती। अगर किसी वोट बैंक को नुकसान हो, तो विरोध जरूर होता है। सवाल ये है कि सवर्णों के गरीबों को आरक्षण देने से क्या किसी को नुकसान नहीं होगा? नुकसान होगा। बिल्कुल होगा।
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गरीब सवर्णों को आरक्षण से किनको होगा नुकसान?
गरीब सवर्णों को आरक्षण देने से उन लोगों को नुकसान होगा, जो नौकरी के लिए प्रतियोगिता परीक्षा में आरक्षित कोटे में रहने के बावजूद मेरिट की बदौलत जनरल कैटेगरी में जगह बनाते हैं। ऐसा इसलिए होगा कि जनरल कैटेगरी छोटी हो जाएगी। अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव के विरोध की वजह यही है। यादव, कोइरी, कुर्मी, जैसी जातियां पिछड़े वर्ग में सशक्त जातियां हैं। इन्हें कोटे का भी लाभ मिलता है और ये जनरल में भी जगह बनाते हैं। वहीं बीएसपी की सियासत अलग है। मायावती ये मानकर चलती हैं कि दलित समुदाय की वह देश में इकलौती नेता हैं। इसलिए उन्हें सिर्फ वोट बैंक जोड़ना है जो सवर्णों को आरक्षण का समर्थन करके जोड़ सकती हैं।
आबादी 15 फीसदी आरक्षण 10 फीसदी क्यों?
तेजस्वी ने एक अहम सवाल उठाया है कि सवर्णों की आबादी 15 फीसदी है तो उन्हें 10 फीसदी आरक्षण का फैसला किस अध्ययन के आधार पर दिया गया? बिल्कुल सही सवाल है। शायद बीजेपी ने यह आधार नरसिम्हाराव सरकार से उधार लिया हो, जिन्होंने गरीब सवर्णों के लिए 10 फीसदी आरक्षण देने की व्यवस्था बनायी थी। मगर, सुप्रीम कोर्ट ने उसे 1992 में खारिज कर दिया था।
गरीब सवर्णों के लिए आरक्षण को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कई महत्वपूर्ण व्यवस्था दी थी-
• आय और सम्पत्ति के आधार पर आरक्षण नहीं दिया जा सकता
• व्यक्ति को आरक्षण नहीं दे सकते, हमेशा समूह को आरक्षण मिलेगा
• आर्थिक आधार पर आरक्षण समानता के मूल अधिकार का उल्लंघन है
गरीब सवर्णों को आरक्षण का आधार
वर्तमान सरकार ने गरीब सवर्णों के लिए जो आधार तय किया है उस पर अगर गौर करें तो उनमें शामिल हैं-
• वार्षिक आमदनी 8 लाख से कम होना
• 5 हेक्टेयर से कम खेती योग्य जमीन होना
• 1000 स्क्वॉयर मीटर से कम का घर होना
• निगम की अधिसूचित जमीन 109 गज से कम हो
• निगम की गैर अधिसूचित जमीन 209 गज से कम हो
• किसी भी तरह के आरक्षण के अंतर्गत नहीं आते हों
सुप्रीम कोर्ट में नहीं टिकेंगे गरीब सवर्णों को आरक्षण के आधार
सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण के लिए जो आधार नहीं माना था, उन्हीं आधारों को नरेंद्र मोदी सरकार ने गरीब सवर्णों के लिए आरक्षण का आधार बनाया है। फौरी तौर पर ये साफ लगता है कि सुप्रीम कोर्ट में मोदी सरकार का फैसला टिकने वाला नहीं है। ऐसे ही आधारों पर गुजरात हाईकोर्ट ने अगस्त 2016 में गुजरात सरकार के उस फैसले को निरस्त कर दिया था जिसमें 6 लाख से कम वार्षिक आय वालों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की गयी थी। राजस्थान भी उदाहरण है जहां 2015 में सवर्ण वर्ग के गरीबों के लिए 14 प्रतिशत और पिछड़ों में अति निर्धन के लिए 5 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था की गयी थी, मगर राजस्थान हाईकोर्ट ने उस फैसले को भी निरस्त कर डाला।
समूह में ही मिल सकता है आरक्षण
जब हम किसी व्यक्तिगत सम्पत्ति देखते हैं, उसकी आमदनी देखते हैं तो इस आधार पर दिया जाने वाला आरक्षण व्यक्तिगत हो जाता है, जबकि सुप्रीम कोर्ट कह चुका है समूह में ही आरक्षण दिया जा सकता है। कोई समूह, भले ही वह जाति ही क्यों न हो, आरक्षण का पात्र तभी होता है जब यह पुष्ट हो जाए कि शैक्षिक या सामाजिक स्तर पर वह अन्य समूहों या जातियों के मुकाबले पिछड़ गयी हो।
यूपीए सरकार ने भी खेला था विगत लोकसभा में जाट आरक्षण का दांव
पिछली यूपीए सरकार ने भी लोकसभा चुनाव से पहले जाट आरक्षण का दांव खेला था। 9 राज्यों में जाटों को ओबीसी में शामिल कर उन्हें आरक्षण देने की व्यवस्था की थी। मगर, सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में इसे ख़ारिज़ कर दिया तो इसके पीछे वजह ये थी कि यह साबित नहीं किया जा सका कि जाट दूसरी जातियों के मुकाबले शैक्षिक या सामाजिक नजरिए से पिछड़े हैं। इसका आकलन भी पिछड़ा आयोग करता है। यह टास्क भी पूरा नहीं किया गया था। किसी आयोग से राय नहीं ली गयी थी।
(ये लेखक के निजी विचार हैं।)
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