राजस्थान विधानसभा चुनाव 2018: क्या महारानी को राम-राम कहने का मन बना चुकी है जनता?
नई दिल्ली। चुनाव कार्यक्रम की घोषणा के साथ जिन पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने जा रहे हैं उनमें राजस्थान ही एकमात्र ऐसा राज्य है जहां भाजपा की सत्ता में वापसी सर्वाधिक मुश्किल मानी जा रही है। राजस्थान में 1993 से अदल-बदलकर सत्ता परिवर्तन की परंपरा रही है। पिछली बार भाजपा सत्तारूढ़ हुई थी। इस परंपरागत रुझान के मुताबिक इस बार मौका कांग्रेस को है। इसी वर्ष हुए उपचनावों में मिली पराजय से भाजपा को करारा झटका लगा है। अलवर और अजमेर लोकसभा तथा मांडलगढ़ विधानसभा सीट पर मिली जीत से कांग्रेस की उम्मीदें बढ़ी हैं। इस बार भाजपा फिर एक बार वसुंधरा राजे सिंधिया पर अपना दांव लगा रही है, जबकि कांग्रेस ने किसी को भी अपना मुख्यमंत्री प्रत्याशी नहीं बनाया है।
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कांग्रेस-बीजेपी में है मुख्य मुकाबला
राजनैतिक दलों के लिहाज़ से राजस्थान हमेशा दो विकल्पों से घिरा रहा है, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी। दोनों ही प्रमुख पार्टियों ने चुनावी तैयारियां शुरू कर दी हैं भाजपा ने 2013 के विधानसभा चुनाव में जबरदस्त कामयाबी हासिल की थी। कुल 200 में से 163 सीटें जीतकर तीन चौथाई बहुमत के साथ भाजपा सत्तारूढ़ हुई थी, जबकि कांग्रेस 21 और बसपा 3 सीटों पर ही सिमट गईं थीं। इस चुनाव में भाजपा को 45.50 फीसदी, कांग्रेस को 33.31 और बीएसपी को 3.48 फीसदी वोट मिले थे। बाद में 2014 के लोकसभा चुनाव में राज्य की सभी 25 सीटों पर भाजपा का परचम लहराया था।
गुटबंदी के शाश्वत रोग से ग्रस्त हैं दोनों पार्टियां
जहां तक दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों की सांगठनिक सेहत का सवाल है भाजपा और कांग्रेस दोनों ही गुटबंदी के शाश्वत रोग से ग्रस्त हैं। वसुंधरा सरकार के कई मंत्री सार्वजनिक तौर पर मुख्यमंत्री की कार्यप्रणाली के प्रति असंतोष जाहिर कर चुके हैं। पार्टी के वरिष्ठ नेता रहे पूर्व मंत्री घनश्याम तिवाड़ी ने पार्टी से बगावत का ऐलान कर दिया हैं। कांग्रेस भी पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट और पूर्व केंद्रीय मंत्री सी पी जोशी के गुटों में बंटी है।
इस चुनाव में इन अहम मुद्दों का रहेगा असर
हालांकि दोनों ही प्रमुख राजनितिक दल विकास को अपना मुख्य मुद्दा बता रहे हैं, लेकिन जमीनी तौर पर आरक्षण, किसान और गाय ही प्रमुख मुद्दे बनते नजर आ रहे हैं। गूजर और जाटों के आरक्षण आंदोलन में झुलस चुके राजस्थान में एट्रोसिटी एक्ट के मुद्दे पर राजपूत और ब्राह्मण भी लामबंद होने की कोशिश में हैं। भाजपा के बागी नेता घनश्याम तिवाड़ी ने तो इस मुद्दे पर तीसरा मोर्चा बनाने का ऐलान किया है। भाजपा को इस बार गाय वोटों की कामधेनु नजर आ रही है। वह गौतस्करी को लगातार मुद्दा बनाती रही है तो कांग्रेस गौ तस्करी के शक में पीट पीटकर लोगों को मारने की घटनाओं को लेकर सरकार को घेरती रही है। उधर फसल के सही दाम नहीं मिलने और कर्ज के कारण किसानों की आत्महत्याओं के मामलों को लेकर भी विपक्षी दल भाजपा सरकार को घेरने में जुटे है।
क्या वसुंधरा को मिलेगा जनता समर्थन?
भाजपा ने फिर एक बार वर्तमान मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को ही अपना मुख्यमंत्री प्रत्याशी घोषित किया है जबकि सत्ता वापसी के लिए कोशिश कर रही कांग्रेस किसी एक नाम पर अभी सहमत नहीं हो पाई है। इसीलिए पार्टी ने साफ कर दिया है कि राहुल गांधी के नेतृत्व में ही चुनाव लड़ा जाएगा, ना अशोक गहलोत चेहरा होंगे और ना ही सचिन पायलट।
राजस्थान में बदलता नजर आ रहा राजनीतिक परिदृश्य
वसुंधरा राजे सरकार पूर्व कांग्रेस सरकार के समय की गई घोषणाओं से अलग हटकर कुछ नया नहीं कर पाई है। कांग्रेस कार्यकाल की ही मेट्रो योजना चालू तो हो गई पर रिफाईनरी जो अधर में पूरे कार्यकाल लटकी रही अब उसे चालू किये जाने की बात की जा रही है। किसानों एवं डॉक्टरों का आंदोलन वर्षभर चलता ही रहा। चुनाव पूर्व 15 लाख नौकरियां देने का वायदा भी खोखला ही साबित हुआ। ना ही नई नौकरियां निकल पाई न राज्य में नये उद्योग धंधे में विस्तार हुआ। जो उद्योग चल रह है, वहां की हालत भी अच्छी नहीं है। वहां भी छंटनी का दौर जारी है। इस तरह राजस्थान के हालात पहले से भी बदतर दिखाई दे रहे है जिससे सत्ता पक्ष के विरोध में जनक्रोश उभरता दिखाई दे रहा है। इस तरह के हालात राजस्थान में होने वाले विधान सभा चुनाव में सत्ता पक्ष पर प्रतिकूल असर डाल सकते है। फिलहाल राजस्थान का राजनीतिक परिदृश्य बदलता नजर आ रहा है।
'मिशन 180' में जुटी है बीजेपी
भाजपा ने 180 सीटों पर विजय का लक्ष्य रखते हुए अपने चुनाव अभियान को 'मिशन 180' नाम दिया है। इस मिशन के तहत भाजपा ने ए ग्रेड की 65 विधानसभा सीटों को चिन्हित किया है। ये वे सीटें हैं, जिन पर भाजपा लगातार दो या इससे अधिक बार जीत रही है। अब भाजपा यह रणनीति बना रही है कि कम से कम 65 सीटों से गिनती प्रारंभ हो और फिर मिशन 180 तक पहुंचा जाए। संगठन की ओर से भी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को इन क्षेत्रों में तैनात किया गया। हालांकि करीब तीन माह पूर्व हुए दो संसदीय सीटों (अलवर और अजमेर) एवं एक विधानसभा सीट (मांडलगढ़) के उप चुनाव में भाजपा को ए ग्रेड की 17 विधानसभा सीटों पर भी हार का मुंह देखना पड़ा था। उप चुनाव में हार के बाद वसुंधरा राजे ने अलवर एवं अजमेर संसदीय सीटों एवं मांडलगढ़ विधानसभा क्षेत्र में अधिक ध्यान दिया।
'राजस्थान गौरव यात्रा' के जरिए तेज कर रही चुनावी अभियान
सत्ता विरोधी लहर से चिंतित राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने चुनावी बिगुल फूंक दिया है। उन्होंने 4 अगस्त को मेवाड़ से 'राजस्थान गौरव यात्रा' के जरिए अपना चुनावी अभियान शुरू किया। यात्रा की शुरुआत में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह मौजूद थे। 58 दिनों की इस यात्रा में वह राज्य के लोगों से मिल रही हैं और आगामी चुनाव के लिए जनादेश मांग रही हैं। राजस्थान गौरव यात्रा राज्य की 200 में से 165 विधानसभा क्षेत्रों से होकर गुजरेंगी। 30 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यात्रा का समापन करेंगे।
अलवर एवं अजमेर संसदीय सीट पर हुए उपचुनाव में बीजेपी हारी
मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के लिए कहा जाता है कि चुनावों के दौरान वे किसी इलाके में राजपूत होती हैं यानी पूर्व राजमाता विजया राजे सिंधिया की बेटी तो किसी इलाके में जाट यानी अपने धौलपुर ससुराल की बहू तो फिर किसी इलाके में वे अपने बेटे की पत्नी से रिश्ता जोड़ते हुए गुर्जर हो जाती हैं। अंग्रेजी मीडिया या बड़े लोगों से बात करते हुए वे ‘एलीट क्लास' होती हैं तो प्रचार के दौरान आम महिला से जुड़ी हुई और अभिवादन में राम-राम करती हुईं। दिल्ली और लंदन के पांच सितारा होटलों से लेकर धौलपुर या जोधपुर की किसी ढाणी में चारपाई पर आराम से बैठ जाती हैं। वो आदिवासियों की पोशाक भी उतने ही अंदाज़ से पहनती हैं जितनी जोधपुरी बंधेज या फिर डिजायनर साड़ी। अभी उनकी गौरव यात्रा की बस में जब वे लिफ्ट से ऊपर छत पर बाहर आती हैं तो गांवों में उन्हें देखने के लिए भीड़ जुट जाती हैं।
चुनाव में कांग्रेस पार्टी की ये है रणनीति
उधर बीजेपी से सत्ता छीनने की हरसंभव कोशिशों में जुटी कांग्रेस ने भी अपना चुनाव अभियान शुरू कर दिया है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी जयपुर में 13 किमी का रोड शो कर कांग्रेस के अभियान की औपचारिक शुरुआत कर चुके हैं। एक तरफ कांग्रेस वसुंधरा सरकार को घेरने में लगी है, वहीं दूसरी ओर कांग्रेस बूथ स्तर पर अपने संगठन को मजबूत करने में लगी है। बूथ स्तर पर कांग्रेस अपनी मजबूती को सुनिश्चित करने के लिए प्रदेश में इन दिनों 'मेरा बूथ, मेरा गौरव' नाम से एक अभियान चला रही है। राजस्थान में कांग्रेस ने बीजेपी के तर्ज पर बूथ स्तर पर माइक्रो मैनेजमेंट की तरफ कदम बढ़ाया है। चुनाव की रणनीति बनाने में जुटी कांग्रेस जातीय समीकरणों का हवाला देते हुए हवा अपने पक्ष में होने का दावा कर रही है। दो लोकसभा, एक विधानसभा सीटों और स्थानीय निकाय एवं पंचायत राज संस्थाओं के उप चुनाव में जिस तरह से कांग्रेस ने लीक से हटकर राजपूत-ब्राह्माण कार्ड खेला है, कुछ फेरबदल के साथ उसे जारी रखना चाहती है। कांग्रेस ब्राह्माण, राजपूत और दलितों की नाराजगी को हवा देकर राजनीतिक लाभ लेना चाहती है।
(ये लेखक के निजी विचार हैं)
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