राफेल: क्या मोदी सरकार अवाम को आधी हकीकत आधे फसाने में उलझा रही है
आखिरकार 27 जुलाई को फ्रांस के एयरबेस से सात हजार किलोमीटर की दूरी तय करके आज 29 जुलाई 2020 को 5 रफाल विमान लंबी यात्रा तय करके हरियाण के अंबाला एयरबेस पंहुच ही गए। इन विमानों की आगवानी में खुद वायुसेना अध्यक्ष एयर चीफ मार्शल आरकेएस भदौरिया मौजूद थे। जबकि देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इन विमानों की आगवानी को स्वागत योग्य कदम बताया। वहीं रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने इसे सैन्य इतिहास में एक नए युग की शुरुआत बताते हुए भारतीय वायुसेना को इसके लिए बधाई भी दी। खुशी की बात ये है कि देश को 22 साल बाद 5 नए लड़ाकू विमान मिले हैं। इससे पहले 1997 में भारत को रूस से सुखोई मिले थे।
देश में रफाल विमानों की यह पंहु़च एक लंबी जद्दोजहद और तमाम उतार चढ़ावों के बाद हुई है। इन पांच रफाल विमान के भारत पहुंचने पर नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार ने इसे देश के रक्षा क्षेत्र में मिल का पत्थर बताया है। हालाकि जिस तरह से मोदी और उनकी मंडली रफेल विमानों के भारत आगवानी पर अपनी सरकार की एक उपलब्धि साबित कर रहे है ठीक उनकी ही भाषा में उन्हें सोशल मीडिय़ा पर जवाब दिया जा रहा है। लोग कहने लगे है कि दूरदर्शन के रामायण की तरह ही रफाल भी भाजपा नही बल्कि कांग्रेस की ही देन है। इसमें भाजपा का योगदान आत्मनिर्भर विक्रेता से बढ़ कर क्या है। बहरहाल इन विमानों को लेकर देश में अपने तरह की एक नई राजनीति तो शुरू होनी ही थी। खैर, इस समय मायने ये नही रखता है कि कौन इन विमानों को भारत लाया बल्कि मायने ये रखता है कि आखिर तमााम वाद-विवाद के बावजुद फ्रांस और भारत के बीच हुए रफाल विमानों के सौदे ने मुर्त रूप ले ही लिया।
रफाल खरीदी प्रक्रिया साल 2010 में युपीए के समय शुरू हुई
ये जानना आपका अधिकार है कि आाखिर भारत और फ्रांस के बीच राफल विमान खरीदने का समझौता शुरू कब से हुआ था। बता दे कि इन विमानों की खरीदी की प्रक्रिया सबसे पहले साल 2010 में कांग्रेस नेतृत्व की यूपीए सरकार के कार्यकाल से हुई थी। इन विमानों को लेकर भारत और फ्रांस के बीच 2012 से लेकर 2015 तक बातचीत चलती रही। 2014 में यूपीए की जगह मोदी सरकार सत्ता में आ गई। सितंबर 2016 में भारत ने फ्रांस के साथ 36 रफाल विमानों के लिए करीब 59 हजार करोड़ रुपये के सौदे पर हस्ताक्षर किए थे।
इस सौदे के मौके पर मोदी ने सितंबर 2016 में कहा था ये खुशी की बात है कि दोनों पक्षों के बीच कुछ वित्तीय पहलुओं को छोडक़र समझौता हुआ है। पर देश के अनेक रक्षा विश्लेषकों का मानना है कि मोदी सरकार के कार्यकाल में भारत की सेना के आधुनिकीकरण की रफ्तार काफी धीमी रही है। जिन समझौतों को एक वक्त से पहले मुर्त रूप ले लेना चाहिए थे वे अब जाकर कहीं धरातल पर उतरते दिखाई दे रहे है। देश के जाने- माने रक्षा विश्लेषक गुलशन लुथरा ने एएफपी समाचार एजेंसी को दिए अपने साक्षात्कार में एक बार कहा था कि- हमारे लड़ाकू विमान 1970 और 1980 के दशक के हैं। 25-30 साल के बाद टेक्नॉलजी के स्तर पर कुछ नया हुआ है। हमें रफाल की ज़रूरत थी।
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हम इन विमानों के सौदे के संबंध में रक्षा मामलों के जानकारों की माने तो सबसे पहले बतौर समझौते के भारत को 126 विमान खरीदने थे। तय ये हुआ था कि भारत 18 विमान खरीदेगा और 108 विमान बेंगलुरु के हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड में एसेम्बल होंगे, लेकिन ये सौदा पट नहीं पाया। सन 2014 में केन्द्र में मोदी सरकार के आने के बाद से सब स्थिति बदल गई और ये सौदा फिर नये सिरे से उनके हिसाब-किताब से होने लगा। इन विमानों की खरीदी में मोदी की नियत और नीति पर भी उंगलियां उठी। तमाम राजनीतिक दलों ने मोदी पर विमानों को अधिक राशि में खरीदने का आरोप लगाया। अब जब आरोप-प्रत्यारोप के बाद रफाल भारत पहुंच ही गए है तो सवाल नए खड़े हाने लगे है। मसलन जिन विमानों को मोदी सरकार अपनी एक सैन्य सफलता बता कर वाहवाही लुट रही है क्या ये रफाल वाकई लाजवाब हैऔर इनका कोई तोड़ नहीं है? क्या भारत इनके दम पर जंग जीत पाएगा।
रक्षा विश्लेषकों की माने तो इसमें कोई दोराय नही है कि रफाल के आने से भारतीय एयर फोर्स की ताकत बढ़ेगी। हालाकि विशेषज्ञों का मानना ये है कि इनकी संख्या बहुत कम है। 36 रफाल अंबाला और पश्चिम बंगाल के हासीमारा स्क्वाड्रन में ही खप जाएंगे। पर जब इसकी मारक क्षमता पर बात करे तो द इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस (आईड़ीएसए) में फाइटर जेट पर विशेषज्ञता रखने वाले विश्लेषक का कहना है कि कोई भी लड़ाकू विमान कितना ताकतवर है यह उसकी सेंसर क्षमता और हथियार पर निर्भर करता है। मतलब कोई फाइटर प्लेन कितनी दूरी से देख सकता है और कितनी दूर तक मार कर सकता है।
कोई फाइटर प्लेन कितनी ऊंचाई तक जाता है ये भी उसके इंजन की ताकत पर ही निर्भर करता है। सामान्य रूप से फाइटर प्लेन 40 से 50 हजार फीट की ऊंचाई तक जाते ही हैं, लेकिन ऊंचाई से किसी लड़ाकू विमान की ताकत का अंदाजा नहीं लगा सकते हैं। फाइटर प्लेन की ताकत मापने की कसौटी हथियार और सेंसर क्षमता ही है। वैसे रफाल का टारगेट अचूक है। रफाल ऊपर-नीचे, अगल-बगल यानी हर तरफ निगरानी रखने में सक्षम है। मतलब इसकी विजिबिलिटी 360 डिग्री होगी। पायलट को बस विरोधी को देखना है और बटन दबा देना है और बाकी काम कंप्यूटर कर लेगा। इसमें पायलट के लिए एक हेलमेट भी होगा। इस विमान के संबंध में खबरें ये भी है कि परमाणु हथियारों से लैस रफाल हवा से हवा में 150 किलोमीटर तक मिसाइल दाग सकता है और हवा से जमीन तक इसकी मारक क्षमता 300 किलोमीटर है। कुछ भारतीय पर्यवेक्षकों का मानना है कि रफाल की क्षमता पाकिस्तान की एफ-16 से ज्यादा है। रफाल साढ़े चार जेनरेशन फाइटर प्लेन है और सबसे एडवांस पांच जेनरेशन है। जाहिर है इस मामले में रफाल बहुत आधुनिक लड़ाकू विमान है। भारत ने इससे पहले 1997-98 में रूस से सुखोई खरीदा था। सुखोई के बाद रफाल खरीदा जा रहा है। 20-21 साल के बाद यह डील हो रही है तो जाहिर है इतने सालों में टेक्नॉलोजी बदली है।
क्या भारत इसके दम पर जंग जीत पाएगा?
पर सवाल तो अब भी अपनी जगह खड़ा है कि क्या भारत पाकिस्तान से इस लड़ाकू विमान के जरिए युद्ध जीत सकता हैै? बता दे कि जो लड़ाकू रफाल विमान भारत ने फ्रांस से लिए हैं, उनमें पहले से ही हवा से हवा में मार करने वाले मेटियोर यानी लंबी दूरी वाली मिसाइलें लगी होती हैं, जो भारतीय वायुसेना की क्षमता को पड़ोसी मुल्कों की तुलना में कई गुना बढ़ा देंगे। इधर पाकिस्तान के पास जो फाइटर प्लेन हैं वो भी किसी से छुपे नहीं है। उनके पास जे-17, एफ-16 और मिराज है । जाहिर है कि रफाल की तरह इनकी टेक्नॉलजी एडवांस नहीं है। पर हमें यह समझना चाहिए कि अगर भारत के पास 36 रफाल हैं तो वो 36 जगह ही लड़ाई कर सकते हैं। अगर पाकिस्तान के पास इससे ज्यादा फाइटर प्लेन होंगे तो वो ज्यादा जगहों से लड़ाई कर पाएगें। मतलब संख्या भी खासे मायने रखती है। गर हम पाकिस्तान से हटकर चीन के संदर्भ में बात करे तो चीन के पास रफाल जैसे बहुत अत्याधुनिक और एडवांस तकनीक के ऐसे कई फाइटर प्लेन पहले से मौजूद है। और संख्या भी हमसे कई गुना अधिक है।
अब हम आपको रक्षा की आंतरिक संख्या संरचना से अवगत कराते है। भारतीय वायु सेना को 42 स्क्वाड्रन आवंटित हैं और अभी 32 ही है। जितने स्क्वाड्रन हैं उस हिसाब से तो लड़ाकू विमान ही नहीं है। अभी भारत के सभी 32 स्क्वाड्रन पर 18-18 फाइटर प्लेन है। एयरफोर्स की आशंका है कि अगर एयरक्राफ्ट की संख्या नहीं बढ़ाई गई तो स्क्वाड्रन की संख्या 2022 तक कम होकर 25 ही रह जाएगी और आने वाले समय में यह भारत की सुरक्षा के लिए बेहद खतरनाक साबित होगा। बहरहाल, हमें गुणवत्ता तो चाहिए ही, लेकिन साथ में संख्या भी चाहिए। अगर भारत को चीन या पाकिस्तान का मुकाबला करना है तो लड़ाकू विमान की तादाद भी उनके स्तर पर ही होनी चाहिए। चीन के पास जो फाइटर प्लेन हैं वो हमसे कहीं अधिक उन्नत तकनीक के है और उनकी संख्या भी बहुत ज्यादा है। बेशक ये अच्छी बात है कि मोदी के पीएम रहते 36 रफेल की जगह भले ही मात्र 5 रफेल भारत पहुंचे हो लेकिन एक पीएम होने के नाते मोदी को जनता को इस सच से भी महरूम नही करना चाहिए कि गर युद्ध की स्थिति निर्मित हुई तो हम लोग पाकिस्तान को तो हैंडल कर सकते हैं लेकिन हमारे पास चीन की कोई काट नहीं है। अगर चीन और पाकिस्तान दोनों साथ आ गए तो हमारा फंसना तय है। भारत और चीन 1962 में एक युद्ध कर चुके हैं। भारत को शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा था। अब भी दोनों देशों के बीच सीमा का स्थाई तौर पर निर्धारण नहीं हो सका है। हमारे साथ रफाल को लेकर एक दिक्कत और भी है। वो ये कि हमने रफाल को बनाया नही है बल्कि बना बनाया लिया है। इसमें टेक्नॉलजी ट्रांसफर नहीं है। रूस के साथ जो डील होती थी उसमें वो टेक्नॉलजी भी देता था। भारत इसी दम पर 272 सुखोई विमान बना रहा था और लगभग फाइनल होने के करीब था। वैसे हमारी काबिलियत तकनीक का दोहन करने के मामले में बिल्कुल ना के बराबर है। फिर ऐसे में मोदी सरकार ने इस तरह के सौदे को अंजाम कैसे दे दिया।
(इस लेख में व्यक्त विचार, लेखक के निजी विचार हैं. आलेख में दी गई किसी भी सूचना की तथ्यात्मकता, सटीकता, संपूर्णता, अथवा सच्चाई के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)