दो राफेल विमानों की कीमत के बराबर है टैक्स छूट की ये रकम
नई दिल्ली। राफेल मामले में नया खुलासा फ्रांस की मीडिया ने किया है। अनिल अम्बानी की रिलायंस से संबद्ध कम्पनी रिलायंस फ्लैग के लिए फ्रांस की सरकार ने 14.37 करोड़ यूरो टैक्स माफ कर दिए। 15.1 करोड़ यूरो की जगह महज 73 लाख यूरो देकर अनिल अम्बानी की कम्पनी का काम चल गया। फ्रांसीसी अख़बार 'ले मोदे' का दावा है कि राफेल डील के तुरंत बाद फ्रांस की सरकार ने यह कर छूट दी। भारतीय रक्षा मंत्रालय ने इस मामले को राफेल से जोड़े जाने को गलत ठहराया है।
रक्षा मंत्रालय की प्रतिक्रिया कितनी त्वरित है। आरोप आए नहीं कि उसे नकार दिया जाए- यही प्रवृत्ति झलकती है। ख़बरों के मुताबिक 2007 से 2010 के बीच की समीक्षा अवधि के लिए रिलायंस फ्लैग को 6 करोड़ यूरो टैक्स चुकाना था। 2010-12 की अवधि के लिए टैक्स की राशि में 9.1 करोड़ यूरो की और बढ़ोतरी हो गयी। इस तरह अप्रैल 2015 तक 15.1 करोड़ यूरो बतौर टैक्स रिलायंस फ्लैग को चुकाना था।
यह वही समय है जब राफेल डील परवान चढ़ रही थी, एचएएल की जगह अनिल अम्बानी की कम्पनी को ऑफसेट पार्टनर बनाया जा रहा था। याद कीजिए 25 मार्च 2015 को दसॉ के सीईओ का बयान जिसमें हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड के प्रति आभार जताया गया था और रिक्वेस्ट ऑफ प्रोपोजल से जुड़ी सभी प्रतिबद्धताएं पूरी करने का वादा किया गया था। 8 अप्रैल 2015 को विदेश सचिव जयशंकर की प्रेस ब्रीफिंग में भी हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड का ज़िक्र था। मगर, 10 अप्रैल 2015 को राफेल डील की जो घोषणा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की थी, उसमें एचएएल नहीं था। उसकी जगह अनिल अम्बानी की कम्पनी ले चुकी थी। अब फ्रांसीसी मीडिया बता रही है कि राफेल डील होने के साथ-साथ अनिल अम्बानी की कम्पनी के टैक्स भी माफ किए गये थे। 14.37 करोड़ यूरो की टैक्स माफी। यह रकम रुपयों में 1100 करोड़ होते हैं। यूपीए के काल में जो राफेल की कीमत 526 करोड़ रुपये तय हुई थी उसके मुताबिक दो राफेल विमान की कीमत से यह ज्यादा रकम है।
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अनिल अम्बानी की कम्पनी रिलायंस का दावा है कि टैक्स में छूट फ्रांसीसी कानूनों के हिसाब से किए गये थे। रक्षा मंत्रालय भी इसे राफेल सौदे से जोड़े जाने को गलत ठहरा रहा है। मगर, यह दोनों सफाई काफी नहीं है। तमाम कानूनों के रहते हुए ही घोटाले होते आए हैं। बड़े-बड़े घोटालों में नामचीन लोगों को कानून का सहारा लेकर ही बचाने के उदाहरण मौजूद रहे हैं। इसलिए फ्रांसीसी कानून के हिसाब से यह टैक्स माफी हुई है, ये कहकर अनिल अम्बानी की कम्पनी के बचाव को स्वीकार नहीं किया जा सकता। रक्षा मंत्रालय की बात इसलिए बेमानी है क्योंकि वास्तव में ऐसी टैक्स माफी किसी डील में लिखकर नहीं हुआ करती। सवाल ये है कि फ्रांस की सरकार ने यही टैक्स में छूट पहले क्यों नहीं दी? राफेल सौदे के समय ही फ्रांसीसी सरकार क्यों रिलायंस की कम्पनी के लिए विनम्र हो गयी? न सिर्फ फ्रांसीसी सरकार, बल्कि राफेल डील से जुड़ी कंपनी दसॉ भी अनिल अम्बानी की कम्पनी को बिना किसी अनुभव के ऑफसेट पार्टनर बना रही थी। क्या आपने कभी किसी सरकार से किसी पर ऐसी मेहरबानी सुनी है 95 फीसदी टैक्स माफी, 5 फीसदी टैक्स अदायगी!
अब यह बात साफ होती दिख रही है कि अनिल अम्बानी पर मेहरबानी फ्रांस में ही नहीं भारत में भी हो रही थी। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राफेल डील की अगुआई कर रहे थे। ऐसे में सार्वजनिक कंपनी एचएएल की कीमत पर अनिल अम्बानी की कंपनी को प्राथमिकता मिलना नये सिरे से बड़ा सवाल बन गया है। एक उद्योगपति की तरफदारी की जा रही थी। दो-दो देश की सरकारें इस काम में लगी थीं। राफेल मामले को हमेशा से देश की सुरक्षा से जुड़ा सवाल बताकर जवाब देने से सरकार बचती रही है। कभी सौदे की गोपनीयता की शर्त कहकर राफेल की कीमत बताने से मना किया जाता है तो कभी राफेल डील की शर्तें बदलने की पर्देदारी की जाती है। मगर, एक के बाद एक जो नये तथ्य सामने आ रहे हैं उससे पता चलता है कि राफेल डील की पूरी दाल ही काली है। इस मामले में जांच किसी सरकारी एजेंसी के वश की बात नहीं लगती। संयुक्त संसदीय समिति ही इसकी जांच कर सकती है। वही रक्षा मंत्रालय से लेकर संबंद्ध कंपनी तक से पूछताछ कर सकती है। उम्मीद की जानी चाहिए कि चुनाव के बाद इस दिशा में पहल की जाएगी।
(इस लेख में व्यक्त विचार, लेखक के निजी विचार हैं. आलेख में दी गई किसी भी सूचना की तथ्यात्मकता, सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं।)
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