इंडिया गेट से: धर्मान्तरण की चुनौती के सामने राष्ट्रपति पद हेतु आदिवासी महिला
दो बड़ी बातें हुई हैं। पहली यह कि संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत के स्थाई प्रतिनिधि टी. एस. तिरुमूर्ति ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देश गैर-अब्राहमिक धर्मों हिंदू, बौद्ध, और सिख के खिलाफ घृणा व हिंसा की निंदा करें। यह बात उन्होंने काबुल के बाग-ए-बाला क्षेत्र में गुरुद्वारे पर हुए हमले का उल्लेख करते हुए कही। दूसरी बात यह हुई कि भाजपा ने उड़ीसा की आदिवासी महिला द्रोपदी मुर्मू को भारत के राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बना दिया। वैसे इन दोनों बातों का आपस में कोई संबंध नहीं है। लेकिन सामाजिक-सांस्कृतिक दृष्टि से दोनों बातों का एक दूसरे से संबंध है।

अब्राहमिक सम्प्रदायों में यहूदी, ईसाई, इस्लाम और बहाई सम्प्रदाय आते हैं। वे मध्य पूर्व में पनपे धर्म-सम्प्रदाय हैं, जो एकेश्वरवादी हैं और अब्राहम को ईश्वर का पहला पैगंबर मानते हैं। भारत में पनपे बौद्ध, हिंदू और सिख ऐसा नहीं मानते। ईसाई मिशनरी और इस्लामिक कट्टरपंथी सदियों से हिन्दुओं, सिखों और बोद्धों का तलवार की नोंक पर या लालच से धर्म परिवर्तन करवाने में लगे हुए हैं। भारत एक हजार साल से कट्टरवाद, आतंकवाद और बलात धर्म परिवर्तन से जूझ रहा है। अब्राहमिक पैगंबरवादी भारत में हिन्दुओं का धर्म परिवर्तन करवा कर भारत की संस्कृति पर हमला करते रहे हैं, और धोखे व लालच से धर्म परिवर्तन का सिलसिला अभी भी जारी है।
संयुक्त राष्ट्र में भारत की तरफ से पहली बार अब्राहमिक धर्मों की और से गैर-अब्राहमिक धर्मों पर हमलों के खिलाफ आवाज उठाई गई है। यह इस लिए संभव हो सका क्योंकि देश में भाजपा की सरकार है, जो धर्म परिवर्तन के खिलाफ है और कई भाजपा शासित राज्यों ने धर्म-परिवर्तन रोकने के लिए कड़े क़ानून बनाए हैं। इस्लामिक कट्टरपंथी अन्य धर्मों को मानने वालों को काफिर समझते हैं और सारी दुनिया को इस्लामिक बनाने के लिए आतंकवाद का रास्ता अख्तियार करते रहे हैं और आज भी कर रहे हैं। अल कायदा ने अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश को सलाह दी थी कि अगर वह बचना चाहते हैं तो उन्हें इस्लाम कबूल कर लेना चाहिए। अल कायदा ने एक ईसाई महिला पत्रकार का अपहरण किया और उसका धर्म परिवर्तन करवा कर मुक्त कर दिया था। उसे धमकी दी गई कि वह अब मुस्लिम के तौर पर ही रहेगी।
ईरान और अफगान से आए मुगलों ने हिंदुस्तान में जबरन धर्म परिवर्तन करवाने की मुहिम छेड़ी थी, इसी वजह से कश्मीर में ज्यादातर आबादी मुस्लिम हो गई, जबकि वहां सौ फीसदी आबादी ब्राह्मणों की थी। कश्मीरी पंडितों की फरियाद पर ही गुरु तेगबहादुर ने बलिदान दिया और उसके बाद सिख मत का उदय हुआ। मुगलों ने हिंदुस्तान में न सिर्फ तलवार की नोंक पर धर्म परिवर्तन करवाया, अलबता हिंदुओं के हजारों साल पुराने मंदिरों को तोड़ा और लूटा।
धर्म परिवर्तन करवाने के मामले में ईसाई मिशनरियों का रिकार्ड और भी खराब है। मिशनरियों ने आदिवासियों और दलितों का बड़े पैमाने पर धर्म परिवर्तन करवाया है और यह सिलसिला आज भी जारी है। ईसाई मिशनरी आदिवासियों में प्रचार करते हैं कि वे हिन्दू नहीं हैं, हिन्दू तो बाहर से आए हैं। यूरोपीय मिशनरियों की इसी थ्योरी का जवाहर लाल नेहरु ने भी यह लिख कर प्रचार किया था कि आर्य बाहर से आए थे।
तेईस साल पहले दिसंबर 1999 में मैं अंडमान निकोबार के काचाल नामक द्वीप में गया था तो वहां पाया कि ईसाईयों ने इस द्वीप के आदिवासियों का भी लालच देकर धर्म परिवर्तन करवा दिया। ब्रिटिश सरकार की गुलामी से मुक्त होने के बाद भी ईसाई संस्थाएं व चर्च भारत में धर्म परिवर्तन करवाने के लिए विभिन्न एनजीओ के माध्यम से अरबों डॉलर भेजते हैं। मोदी सरकार ने इन की जांच करवा कर कई एनजीओ के विदेशी धन लेने के लाईसेंस रद्द किए हैं।
अमरीका व यूरोप से भेजे गए धन पर फल-फूल रहे मिशनरियों ने देश भर के आदिवासी क्षेत्रों को धर्म परिवर्तन का क्षेत्र चुना हुआ है। पूर्वोत्तर के सभी राज्य, उड़ीसा, राजस्थान, झारखंड, छत्तीसगढ़ के आदिवासी क्षेत्रों में पिछले साठ सत्तर सालों में बड़े पैमाने पर धर्म परिवर्तन की मुहिम चलाई गई है। जगह-जगह पर हिंदुओं ने लालच से धर्म परिवर्तन करवाए जाने की मुखालफत की और तनाव पैदा हुआ। कई जगह पर हिंसक स्थिति भी पैदा हुई, जिससे समाज में वैमनस्य फैला।
हिंदू धर्म की प्रथाओं, मान्यताओं व देवी-देवताओं की खिल्ली उड़ाकर, उनके लिए अपमानजनक और अश्लील टिप्पणियां करके ईसाई स्कूलों में पढ़ रहे अबोध बच्चों के मन पर हिंदू धर्म के खिलाफ नफरत फैलाने का काम आज भी किया जा रहा है। स्वामी दयानंद ने मुगलों की ओर से जबर्दस्ती मुसलमान बनाए गए हिंदुओं को वापस हिंदू धर्म में लाने के लिए शुद्धि अभियान चलाया था।
अब संघ परिवार के संगठन भी यह काम कर रहे हैं। इसे घर वापसी का नाम दिया गया है, इस घर वापसी का मुस्लिम, ईसाई और सेक्यूलर राजनीतिक दल विरोध करते हैं। संघ परिवार के विभिन्न संगठन लंबे समय से आदिवासी क्षेत्रों में धर्म परिवर्तन रोकने के लिए काम कर रहे हैं।
राजग की राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार द्रोपदी मुर्मू उड़ीसा के उसी क्षेत्र से आती हैं, जहां ईसाईयों ने धर्म परिवर्तन का केंद्र बनाया हुआ है। उन का राष्ट्रपति बनना आदिवासियों को बड़ा संदेश है, जो धर्म परिवर्तन मुहिम पर ब्रेक लगाएगा। आदिवासी महिला को राष्ट्रपति बनवा कर मोदी सरकार आदिवासियों को यह संदेश देना चाहती है कि वे भारत भूमि के पुत्र हैं और प्राचीन हिन्दू संस्कृति का हिस्सा हैं।
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