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Politics in Sports: खेल में राजनीतिक नेताओं की जरूरत क्या है?

बार-बार दोहराया जाता है कि खेल में राजनीति के लिए कोई जगह नहीं है, लेकिन भारत में खेल और राजनीति का रिश्ता चोली दामन का है। यहां तक कि कई बार यह समझना मुश्किल हो जाता है कि खेलों में राजनीति है या फिर राजनीति में खेल।

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Politics in Sports why need of political leaders in sports?

Politics in Sports: पिछले कुछ दिनों से भारतीय कुश्ती महासंघ का मामला गरमाया हुआ है। महासंघ के अध्यक्ष बाहुबली सांसद बृजभूषण शरण सिंह पर देश के नामी-गिरामी पहलवानों ने यौन अत्याचार, वित्तीय अनियमितता और प्रशासनिक चूक का आरोप लगाया है। संगीन आरोपों के बावजूद बाहुबली सांसद पद नहीं छोड़ने की ज़िद पर अड़े हुए हैं।

लेकिन केंद्रीय खेल मंत्री ने राजनीति का चरखा दांव चलते हुए फिलहाल उन्हें कुश्ती महासंघ के काम से अलग कर एक तरह से चित्त कर दिया है। उन पर लगे आरोपों की जांच के लिए एक निगरानी समिति का गठन किया गया है जो अगले 4 हफ्ते में अपनी विस्तृत रिपोर्ट सौंपेगी।

भारतीय ओलंपिक संघ ने भी पहलवानों के आरोपों की जांच के लिए मुक्केबाज मैरीकॉम की अध्यक्षता में एक 7 सदस्यीय समिति का गठन किया है। खेल मंत्रालय की ओर से आई इस गुगली से हतप्रभ बड़बोले सांसद की न सिर्फ घिग्घी बंध गई है बल्कि अब दल की दुहाई देने लगे हैं।

मालूम हो कि खेल मंत्रालय ने सांसद बृजभूषण सिंह के इशारे पर अयोध्या में 22 जनवरी को आयोजित होने वाली भारतीय कुश्ती महासंघ की आम परिषद की बैठक को भी रद्द कर दिया तथा भारतीय कुश्ती महासंघ की सभी गतिविधियों पर रोक लगा दी है।

खेल संघों पर मठाधीशी के आरोप लगते रहे हैं। आपको याद हो कुछ साल पहले बीसीसीआई के दागी अध्यक्ष एन श्रीनिवासन के कुर्सी से चिपके रहने को लेकर उच्चतम न्यायालय ने टिप्पणी की थी कि "ऐसे मामलों से घिन आती है।" अब तो लगभग सभी खेल संघों में भारी-भरकम राजनेता अध्यक्ष या सचिव के पद पर महंत बनकर बैठे हैं।

ऐसा नहीं है कि सिर्फ राष्ट्रीय खेल संघों पर ही राजनीति भारी पड़ रही है, राज्य स्तर पर भी यही हाल है। कमोबेश राजनीति और राजनीतिक दलों से जुड़े लोग ही देश के खेलों पर कुंडली मारकर बैठे हैं। राजनेताओं की शह पाकर बड़े-बड़े पदों पर आसीन सरकार के कई आला अफसर भी इस बीमारी से ग्रस्त हैं। बड़े अफसर भी किसी न किसी रूप में खेलों से जुड़े रहना चाहते हैं लेकिन सवाल है कि ऐसा क्यों होता है? क्या यह लोग खेलों के बहुत बड़े प्रेमी हैं या फिर इनका बहुत शानदार खेल जीवन रहा है? दोनों ही हालात में जवाब है, "नहीं"। तो फिर क्या है ऐसा जो इनको खेल संघों की कुर्सियों से चिपका कर रखने के लिए प्रेरित करता है?

राजनेताओं के लिए सबसे बड़ा चैलेंज होता है सुर्खियों में बने रहना। खेल संघों पर कब्जे की वजह से वह अक्सर अखबारों में छपते रहते हैं और टीवी पर छाए रहते हैं। खेलों के मार्फत बेइंतहा पैसा भी इन नेताओं को जोड़े रखता है। पुराने दिनों में खेल के शौकीन लोग ही खेलों से जुड़ते थे। खेलों के प्रति दर्शकों की भी अपने तरह की दीवानगी होती थी।

पहले भारतीय खेलों में पैसा नहीं था। धीरे-धीरे बाजार खेलों में घुस आया। बाजार के शामिल होते ही पैसा आने लगा। बदलते समय के साथ भारतीय खिलाड़ियों ने विदेशी जमीन पर जीतना शुरू किया तो अंतरराष्ट्रीय खेल जगत की इन पर नजर पड़ी और तकनीकी ने तो देशों को एकदम जोड़ कर रख दिया है। क्रिकेट के खेल ने चकाचौंध पैदा की। कबड्डी जैसे उपेक्षित खेल में भी टीमों को मुंह मांगी रकम मिलने लगी।

क्रिकेट की देखा देखी बाकी खेलों में भी लीग प्रतियोगिताओं का चलन बढ़ा। यह एक बड़ा कारण है, जिसके चलते इन नेताओं का खेल संघों को छोड़ने का दिल नहीं करता। सिर्फ लीग से ही पैसा नहीं मिलता। हर खेल की इंटरनेशनल फेडरेशन सभी देशों के अपने संघ को भी काफी मात्रा में पैसा देती है। अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक संघ का लगभग 90% खर्च ओलंपिक खेलों में बिकने वाले प्रसारण अधिकारों से चलता है। वह भारतीय ओलंपिक संघ सहित दुनिया के करीब 212 अन्य संघों को पैसा देता है।

भारतीय संसद में लगभग 700 सांसद हैं। इनमें से अधिकतर को शायद कोई जानता भी नहीं है लेकिन शरद पवार, राजीव शुक्ला, हेमंत विश्वा शर्मा, ब्रज भूषण सिंह ऐसे नाम हैं जिन से सभी परिचित हैं। ऐसे में क्या राजनेता भारतीय खेल संघों से नाता तोड़ेंगे? उसमें भी बृजभूषण शरण सिंह जैसे व्यक्ति जो अपनी काली करतूतों को ढकने तथा समाज में और अधिक रोब दाब गांठने की गरज से भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष का कवच ओढ़ कर मनमानी चला रहा हो?

मालूम हो कि टीवी के पर्दे पर सरेआम हत्या की बात कबूलने वाले अपराधी छवि के नेता बृजभूषण सिंह के काले कारनामों की फेहरिस्त लंबी चौड़ी है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के सहयोगी और उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री रहे घनश्याम शुक्ला से लेकर पत्रकार प्रदीप कात्यायन तक की संदिग्ध हालात में हुई मौत को लेकर शक की सुई इनके इर्द-गिर्द घूमती रही है। कभी राजा मनकापुर के करीब रहकर राजनीति का दांवपेच सीखने वाले बृजभूषण बड़े चाव से बताते रहे हैं कि "गन्ना डायरेक्टरी के चुनाव में एसपी पर पिस्तौल तान दी और उसे 200 गालियां दाग दी।"

छात्र जीवन से ही हैंडग्रेनेड चलाने के माहिर बृजभूषण वर्ष 1996 में टाडा कानून के तहत तिहाड़ जेल में सजा भी काट चुके हैं। गोंडा और उसके आसपास के जिलों में बोल्डर और अन्य तरह की ठेकेदारी तथा अवैध लकड़ी की कटाई से अकूत धन जमा कर चुके बृज भूषण सैकड़ों स्कूलों एवं कॉलेजों के संचालक हैं। औने पौने दाम पर सड़क के किनारे की जमीन खरीद कर तथा कुछ बलपूर्वक हथियाकर नंदिनीनगर में बड़ा शिक्षा केंद्र स्थापित करने वाले शिक्षा माफिया की नजर जनपद के प्राचीन भगत सिंह विद्यालय को हड़पने पर भी लगी है। 100 एकड़ से अधिक में फैले भगत सिंह विद्यालय की प्रबंधन समिति में फिलहाल प्रतापगढ़ के राजा भैया के शामिल होने से इनकी दाल नहीं गल पाई है।

बताते हैं कि गोंडा जिले में स्थानीय स्तर के बदमाश रहे मुन्नन खां और रिजवान अहमद के खिलाफ गोलबंदी करने के कारण एक वर्ग द्वारा इन्हें रॉबिनहुड की भी संज्ञा दी गई। फिर क्या था इन्होंने जनपद में अपराध की सारी छोटी रेखाओं को मिटा कर खुद की बड़ी रेखा तैयार कर ली। सत्ता का साथ मिलने के बाद कई नगरों और महानगरों में करोड़ों का साम्राज्य खड़ा कर लिया। बृजभूषण फिर कभी रुके नहीं अपने हिसाब से आगे बढ़ते ही गए।

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बहरहाल हालिया विवाद में खुद को पाक साफ बता रहे बृजभूषण सिंह के समर्थन में बसपा सांसद श्याम सिंह यादव ने बयान देकर उनके अच्छे चाल चलन का प्रमाण दिया है, वहीं कुछ लोग इस विवाद को हरियाणा बनाम अन्य राज्य के रूप में भी देख रहे हैं। ऐसे लोगों का तर्क है कि चूंकि कुश्ती में हरियाणा हावी है इसलिए जानबूझकर कुश्ती महासंघ को बदनाम किया जा रहा है। लेकिन यौन अत्याचार, वित्तीय अनियमितता और प्रशासनिक चूक के आरोपों के साथ कुश्ती के दिग्गज इनके खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं। देखना है खेल की राजनीति आगे भी चलेगी या राजनीति इनके खेल को बिगाड़ देगी।

यह भी पढ़ें: Wrestlers Protest: क्या वर्चस्‍व की लड़ाई है भारतीय कुश्‍ती महासंघ का विवाद?

(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं। लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)

English summary
Politics in Sports why need of political leaders in sports?
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