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लोहिया सिद्धांत के आईने में खुद को परखें नरेंद्र मोदी

By Prem Kumar
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नई दिल्ली। 23 मार्च को राम मनोहर लोहिया इसलिए अपना जन्मदिन नहीं मनाया करते थे क्योंकि उसी दिन भगत सिंह-सुखदेव-राजगुरु को फांसी हुई थी। 23 मार्च को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अपने ब्लॉग में तीनों कान्तिकारियों को श्रद्धांजलि देते हुए बात तो शुरू की है, लेकिन पूरा ब्लॉग डॉ राम मनोहर लोहिया का जन्म दिवस मनाता नज़र आता है। पहली श्रद्धांजलि वाली पंक्ति के अलावा भगत सिंह और उनके साथी कहीं याद नहीं किए गये हैं। ऐसा क्यों?

लोहिया सिद्धांत के आईने में खुद को परखें नरेंद्र मोदी

पीएम ने शहादत दिवस से ज्यादा जन्मदिन क्यों मनाया?

चुनाव के मैदान में भगत सिंह की क्रांतिकारी विचारधारा की विरासत बची हुई नहीं दिखती। 2019 के चुनाव मैदान में मौजूद राजनीतिक दलों में भगत सिंह की राह पर चलने का दावा करने वाली कोई पार्टी नहीं है। वामदलों का ज़िक्र भी बेमानी है।इसलिए भगत सिंह या उनके साथियों के ज़िक्र से वोट बटोरने में कोई मदद नहीं मिलती। ऐसा नहीं है कि प्रधानमंत्री ने कभी भगत सिंह को राजनीतिक कारणों से याद करने की कोशिश नहीं की है। उन्होंने कर्नाटक के चुनाव में ऐसी कोशिश की थी जब उन्होंने कहा था कि भगत सिंह जेल में बंद थे तो क्या किसी कांग्रेसी का फर्ज नहीं बनता था कि वे जेल जाकर उनकी कुशल क्षेम पूछते? पंडित नेहरू क्यों नहीं उनसे मिलने जेल गये? मगर, जल्द ही उनके 'महाज्ञान' से जुड़े सवाल की पोलपट्टी खुल गयी। उसके बाद से वे कभी भगत सिंह के नाम पर कुछ सियासी बात बोलने से बचते रहे हैं।

लोहिया के नाम पर विपक्ष पर निशाना चुनाव की जरूरत

भगत सिंह की तुलना में राम मनोहर लोहिया थोड़े भाग्यशाली हैं। उनके सिद्धांत पर चलने का दावा करने वाली पार्टी देश में मौजूद है। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी यह दावा करती है। वैसे, दावा तो नीतीश कुमार और लालू प्रसाद भी करते हैं, मगर एक नरेंद्र मोदी के गठबंधन में हैं और दूसरे जेल में। इसलिए प्रधानमंत्री ने राममनोहर लोहिया को खास तरीके से सिर्फ उतना ही याद किया है जिससे वे अपने राजनीतिक विरोधियों पर निशाना साध सकें। मसलन लोहिया गैरकांग्रेसवाद के नायक थे जबकि लोहियावादी पार्टियां कांग्रेस से चुनावी तालमेल कर रही हैं।

नरेंद्र मोदी ब्लॉग में लिखते हैं-

आज उसी कांग्रेस के साथ तथाकथित लोहियावादी पार्टियां अवसरवादी महामिलावटी गठबंधन बनाने को बेचैन हैं। यह विडंबना हास्यास्पद भी है और निंदनीय भी है। कांग्रेसमुक्त भारत का नारा देने वाले नरेंद्र मोदी जैसे नेता के लिए यह बेचैनी समझ में आती है अन्यथा 42 सीटों वाली कांग्रेस के साथ कोई गठबंधन महामिलावटी है या नहीं, इस पर ध्यान देने की फुर्सत उन्हें नहीं होनी चाहिए थी। गैरकांग्रेसवाद की सियासत का मकसद उसी दिन पूरा हो गया था जब केंद्र में गैर कांग्रेसी सरकार बनी। एक बार नहीं, बार-बार बनी। आखिरकार बीजेपी ने ही अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में पांच साल गैर कांग्रेस सरकार चलाकर उस मकसद को पूरा किया था। अब आगे क्या चाहते हैं मोदी? क्या गैर कांग्रेसवाद का नारा हमेशा के लिए रहे, सत्ता में बने रहने के लिए वे इस नारे का इस्तेमाल करते रहें?

कमज़ोर विपक्ष से नेहरू डरते थे, मोदी क्यों नहीं डरे?

नरेंद्र मोदी के लिए राममनोहर लोहिया का मतलब महज एक ऐसे राजनेता हैं जो कांग्रेस और पंडित जवाहर लाल नेहरू से मतभेद रखते थे। यह बात समझ में नहीं आयी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने ब्लॉग में ऐसा क्यों लिखा, डॉ.लोहिया संसद के भीतर या बाहर बोलते थे, तो कांग्रेस में इसका भय साफ नजर आता था। वैसे, यह बात बिल्कुल सही है। जब संसद में लोहिया ने आम आदमी की आमदनी 3 आने रोज होने का दावा किया था और प्रधानमंत्री के कुत्ते पर तीन आने रोज खर्च होने का आरोप लगाया था तो इस आरोप से तब प्रधानमंत्री पंडित नेहरू विचलित हो गये थे। वे इतने विचलित हो गये थे कि योजना आयोग के उपाध्यक्ष तक इस गणित को समझने में जुट गये थे। मगर, आज क्या स्थिति बदल गयी है? आज देश में प्रति व्यक्ति दिन आमदनी करीब 310 रुपये है। विज्ञापनों पर हज़ारों करोड़ रुपये बर्बाद कर देना क्या बहस का मुद्दा नहीं होना चाहिए?

एनडीए के कार्य देखकर **क्या वाकई ख़ुश होते लोहिया?

प्रधानमंत्री ने अपने ब्लॉग में लिखा है कि लोहिया होते, तो एनडीए सरकार के कार्यों को देखकर खुश होते- अगर आज वे होते तो एनडीए सरकार के कार्यों को देखकर निश्चित रूप से उन्हें गर्व की अनुभूति होती। *प्रधानमंत्री अपनी सरकार के काम भी गिनाते हैं-एनडीए सरकार प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि, कृषि सिंचाई योजना, e-Nam, सॉयल हेल्थ कार्ड और अन्य योजनाओं के माध्यम से किसानों के हित में काम कर रही है।"* ऐसा लगता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डॉ राम मनोहर लोहिया को भी बीजेपी का कार्यकर्ता या आम वोटर समझ लिया है। योजनाओं का नाम गिनाना उपलब्धि
नहीं होती, योजनाओं से जनता को क्या और कितना फायदा हुआ है उसे उपलब्धि कहते हैं। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि से किसान देश में सम्मानित हो गये क्या?

क्या किसानों की आत्महत्याएं रुक गयीं?

कृषि सिंचाई योजना से क्या खेत सींचनेकी समस्या ख़त्म हो गयी? क्या e-nam के बाद किसानों की उपज उनके घरों से बिकने लगी है, उनके लिए पूरे देश के बाज़ार खुल गये हैं, कहीं भी उनकी फसल की बिक्री सम्भव हो गयी है, श्रेष्ठ कीमत मिलने लगी है? सॉयल हेल्थ कार्ड या दूसरी योजनाओं से क्या किसान सशक्त हो गया है? डॉ राम मनोहर लोहिया होते तो क्या इन सवालों को पूछे बगैर नरेंद्र मोदी जी की बातें मान जाते?

लोहिया ने कभी जेल जाने की शिकायत नहीं की

पीएम मोदी ने किन्हीं के हवाले से लिखा है, "डॉ. लोहिया अंग्रेजों केशासनकाल में जितनी बार जेल गए, उससे कहीं अधिक बार उन्हें कांग्रेस की सरकारों ने जेल भेजा।लोहिया ने कभी इस बात की शिकायत नहीं की। उनका संघर्ष ही गैरकांग्रेसवाद की राजनीति का आधार बना। लोहिया जीते-जी कभी बड़ी राजनीतिक पार्टी नहीं बना पाए। फिर भी उनमें विश्वास था, वे कहा करते थे, लोग मेरी बात सुनेंगे, लेकिन मेरे मरने के बाद।


स्त्री-पुरुष बराबरी की लोहियावादी कसौटी पर खुद मोदी क्या टिकते हैं?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लिखा है कि डॉ. लोहिया जीवन के हर क्षेत्र में पुरुषों और महिलाओं के बीच बराबरी के पक्षधर रहे। लेकिन, वे लिखते हैं, वोट बैंक की पॉलिटिक्स में आकंठ डूबी पार्टियों का आचरण इससे अलग रहा। यही वजह है कि तथाकथित लोहियावादी पार्टियों ने तीन तलाक की अमानवीय प्रथा को खत्म करने के एनडीए सरकार के प्रयास का विरोध किया। पहली बात ये है कि तीन तलाक खत्म करने की कोशिश का किसी राजनीतिक दल ने विरोध नहीं किया। यह कोशिश ऐसे भी सुप्रीम कोर्ट की पहल पर हुई। तीन तलाक पर कानून बनाते समय प्रावधानों को तय करने में सभी दलों का सहयोग ले पाने में वर्तमान सरकार विफल रही, इस बात को मानने के बजाए प्रधानमंत्री इसका ठीकरा विपक्ष पर फोड़ रहे हैं।

स्त्री-पुरुष की बराबरी

अगर राममनोहर लोहिया के स्त्री-पुरुष की बराबरी पर विचार को समझना हो, तो उनके इस विचार पर गौर करें, एक स्त्री और पुरुष के बीच बलात्कार और वादाख़िलाफ़ी के अलावा सारे रिश्ते वैध होते हैं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस विचार का जिक्र करना चाहिए था। लेकिन, वे नहीं कर सकते। जाहिर है लोहिया के मूलभूत सिद्धांत को याद करने के बजाए नरेंद्र मोदी ने राजनीतिक विरोधियों को साधने के लिए उनके जन्मदिन का इस्तेमाल किया है।

(इस लेख में व्यक्त विचार, लेखक के निजी विचार हैं. आलेख में दी गई किसी भी सूचना की तथ्यात्मकता, सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं।)

Comments
English summary
Prime Minister Narendra Modi wrote a blog recalling Ram Manohar Lohia’s contributions to Indian politics saying that the socialist leader would have been “very proud of the NDA government’s work.
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