सीबीआई ही नहीं केंद्र सरकार की भी साख गिरी है सुप्रीम कोर्ट के फैसले से
नई दिल्ली। सीबीआई के पूर्व अंतरिम निदेशक दोषी करार दिए गये। वे सुप्रीम कोर्ट की अवमानना के दोषी पाए गये हैं। उन्हें सज़ा मिली है। एक लाख जुर्माना और अदालत की सुनवाई होने तक एक कोने में बैठे रहना। सीबीआई के लिए जहां यह शर्म की बात है, वहीं अंतरिम निदेशक के रूप में उनकी नियुक्ति, नियुक्ति के मकसद और उसके शर्मनाक नतीजे को भी यह घटना बयां करती है। इसका मतलब ये हुआ कि यह घटना वर्तमान केंद्र सरकार के लिए भी उतनी ही शर्मनाक है जिसने अंतरिम निदेशक के रूप में नागेशवर राव को एक नहीं, दो-दो बार नियुक्त किया था।
अंतरिम
निदेशक
ने
मनाही
के
बावजूद
लिए
'बड़े'
फैसले
याद
कीजिए
वह
घटना
जब
आधी
रात
को
सीबीआई
ने
अपने
ही
दफ्तर
पर
छापा
मारा
था।
तत्कालीन
सीबीआई
डायरेक्टर
आलोक
वर्मा
के
दफ्तर
में
छापेमारी
की
गयी।
उन्हें
छुट्टी
पर
भेज
दिया
गया।
सुप्रीम
कोर्ट
ने
वापस
सीबीआई
डायरेक्टर
को
बहाल
किया।
इस
दौरान
सुप्रीम
कोर्ट
में
कई
याचिकाएं
लगीं,
कई
आदेश
दिए
गए।
उन्हीं
आदेश
में
एक
आदेश
यह
भी
था
कि
पूर्व
अंतरिम
निदेशक
बड़े
फैसले
नहीं
लेंगे।
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तबादले और तबादलों को निरस्त करने में जुटे रहे अफसर
कई महीनों तक सीबीआई अजीबोगरीब स्थिति में रही। आलोक वर्मा के निर्देश पर अलग-अलग मामलों की जांच कर रहे अफसर और खासतौर पर वे अफसर जो उनके कनीय और सीबीआई के नम्बर दो अधिकारी राकेश अस्थाना के मामले की जांच कर रहे थे, उनके तबादले कर दिए गये। आश्चर्य ये है कि जब आलोक वर्मा की उनके पद पर दोबारा बहाली हुई, तो उन्होंने भी उन्हीं तबादलों को निरस्त करने का काम सबसे पहले किया। मगर, आलोक वर्मा का कोई भी काम केंद्र सरकार को पसंद नहीं था। इसलिए आनन-फानन में सेलेक्ट कमेटी की बैठक बुलाकर दो-एक के फैसले से आलोक वर्मा को सीबीआई से हटाकर किसी दूसरे विभाग में भेजने का फैसला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया। आलोक वर्मा ने नयी नियुक्ति को स्वीकार नहीं किया और उनके रिटायरमेंट का वक्त आ गया।
एक दिन भी सब्र नहीं कर पाए अंतरिम निदेशक
इस बीच दोबारा नागेश्वर राव सीबीआई के पूर्व निदेशक बने। इस रूप में एक बार फिर उन्होंने पूर्व सीबीआई निदेशक के फैसलों को निरस्त करते हुए नये सिरे से तबादले किए। ऐसे ही तबादलों में एक मुजफ्फरपुर शेल्टर होम केस की जांच कर रहे अधिकारी एके शर्मा का तबादला भी शामिल था जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया। जब नागेश्वर राव को लगा कि अब अवमानना से बचा नहीं जा सकता है तो बिना शर्त उन्होंने माफी मांग ली। मगर, सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें माफ करने से मना कर दिया। सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि यह जानते हुए भी कि मुजफ्फरपुर शेल्टर होम केस में एके शर्मा का तबादला करने की मनाही है, अंतरिम निदेशक ने उसकी परवाह नहीं की। ऐसे में यह केस माफी का नहीं बनता है। सुप्रीम कोर्ट ने एक दिन भी नहीं रुक पाने की परिस्थिति को आश्चर्यजनक बताया।
विवादास्पद रहे अंतिरम निदेशक के फैसले
केंद्र सरकार ने एम नागेश्वर राव को दो-दो बार अंतरिम निदेशक बनाया। दोनों ही बार अंतरिम निदेशक के लिए गये फैसले सुप्रीम कोर्ट पहुंचे। एक फैसला वो है जिसका ऊपर ज़िक्र हुआ है और दूसरा फैसला है कोलकाता पुलिस कमिश्नर से पूछताछ के लिए हाईकोर्ट से इजाजत मांगने के अदालती फैसले की अनदेखी करते हुए टीम भेजना। यह मामला भी राजनीतिक रूप से तूल पकड़ा। सबसे अहम बात इस मामले में भी यही रही कि जिस दिन अंतरिम निदेशक ने फैसला लिया, उसके अगले ही दिन सीबीआई के नये डायरेक्टर ने कार्यभार सम्भाला। यहां भी एक दिन रुकने की जहमत नहीं उठायी।
राव की हड़बड़ी में ही दिखती है गड़बड़ी
एम नागेश्वर राव ने अंतरिम निदेशक बनकर जो हड़बड़ी दिखलायी उसमे पूरी गड़बड़ी दिखती है। एक मामले में उन्हें अवमानना का दोषी पाया गया। अगर उनके कार्यकाल की जांच होती या उनके अवमानना की वजह को तलाशने की कोशिश की जाती, तो छींटे दूर तलक भी जाते। सुप्रीम कोर्ट का आदेश एक अधिकारी को सज़ा मात्र नहीं है। यह हमें सोचने को विवश करता है कि किस तरह अधिकारी राजनीतिक व्यवस्था के गुलाम बने बैठे हैं। इस घटना ने सीबीआई की साख जो पहले से ही मिट्टी में मिल चुकी है, उस पर औपचारिक मुहर लगायी है। यह घटना पूरी व्यवस्था की साख पर भी गहरा बट्टा लगाती है।
(ये लेखक के निजी विचार हैं।)
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