Digital Literacy in India: डिजिटल इंडिया की डरावनी हकीकत
नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (एनएसएसओ) की ताजा रिपोर्ट बताती है कि देश की युवा पीढ़ी कम्प्यूटर और कम्युनिकेशन की तकनीकों और इनसे मिलने वाली सुविधाओं की जानकारी के मामले में फिसड्डी है।
Digital Literacy in India: आंकड़े ऐसी चीज हैं, जिनकी मदद से कुछ भी साबित किया जा सकता है। 21वीं सदी का लगभग एक चौथाई सफर पूरा कर रहे भारत को ही लीजिए। पिछले कई सालों से इस बात का बहुत ढोल पीटा जा रहा है कि हम तकनीक को अपनाने और इसके इस्तेमाल के मामले में दुनिया के सभी देशों से आगे निकल रहे हैं।
इस बात की पुष्टि के लिए बहुत सारे उदाहरण दिए जाते हैं। मसलन, 2019 के खत्म होते-होते कम्प्यूटर वाले भारतीय घरों की संख्या एक करोड़ दस लाख पार कर चुकी थी। वर्तमान में 32.1 प्रतिशत भारतीय घरों में इंटरनेट की सुविधा है। वर्ष 2022 के अंत तक देश में बारह साल से अधिक उम्र वाले इंटरनेट यूजर्स की संख्या 59.5 करोड़ हो चुकी है। इनमें दो से बारह साल तक के बच्चों को भी जोड़ लिया जाए तो ये यूजर्स करीब सत्तर करोड़ हो जाते हैं।
एक और दावा देश में स्मार्टफोन धारकों की लगातार बढ़ती संख्या को लेकर किया जाता है। माना जा रहा है कि वर्तमान में देश में 1.2 अरब लोगों के पास मोबाइल फोन हैं। इनमें भी सत्तर करोड़ ऐसे हैं, जो स्मार्टफोन का इस्तेमाल करते हैं। स्मार्टफोन के उपयोग को लेकर अनुमान है कि वर्ष 2030 तक देश के करीब 96 प्रतिशत लोगों के पास स्मार्टफोन होंगे। पिछले दिनों नोकिया की 'ब्रॉडबैंड इंडिया ट्रैफिक इंडेक्स' रिपोर्ट आई है, जिसका दावा है कि हम भारतीय हर महीने औसतन 19.5 जीबी डाटा खर्च कर रहे हैं। अनुमान है कि वर्ष 2027 तक यह उपभोग 46 जीबी तक पहुंच जाएगा।
हमें इस बात का गर्व है कि आईटी-बीपीएम (बिजनेस प्रोसेस मैनेजमेंट) में हमारे करीब पचास लाख पेशेवर (मार्च 2022 तक) मौजूद हैं, जिनकी वजह से हमें घरेलू उपभोग और निर्यात मिलाकर बीते वित्त वर्ष में लगभग 230 अरब डॉलर की आय हुई है। हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में भी हमें आए दिन बहुत से पैरेंट्स इस बात पर इतराते दिख जाते हैं कि उनके तीन-चार साल के बच्चे स्मार्टफोन के फीचर्स का इस्तेमाल करने के मामले में उनसे ज्यादा स्मार्ट हैं।
आंकड़ों और हकीकत में अंतर
ये आंकड़े, मोबाइल-इंटरनेट का बढ़ता उपभोग, टेक्नोक्रेट पेशेवर और ये स्मार्ट नौनिहाल, असलियत में तस्वीर का सिर्फ एक पहलू दिखाते हैं। दूसरा पहलू देखेंगे तो यकीनन मिर्जा गालिब का मशूहर शेर याद आ जाएगा 'हमको तो मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन, दिल बहलाने को गालिब खयाल अच्छा है...'। जिस हकीकत के बूते हम तकनीक की दुनिया का सिरमौर बनने का सपना देख रहे हैं, वह दरअसल बहुत खोखली है।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि देश में कम्प्यूटर क्रांति के आरंभ से अब तक, पिछले लगभग चार दशकों में हमने प्रौद्योगिकी के पंख लगाकर प्रगति और विकास के आसमान में बहुत ऊंची-ऊंची उड़ानें भरी हैं। लेकिन, आसमान नापते-नापते हमसे जमीन की अनदेखी भी हुई है। 3 जी से 6 जी की ओर ले जाते इस तेज रफ्तार सफर में एक पल के लिए रुकिए। अब जरा इस बात पर गौर फरमाईये कि कम्प्यूटर पिछले चालीस सालों से हमारी जिंदगी में मौजूद हैं। कम्प्यूटर के प्रसार वाले दौर का साक्षात करने वाले भारतीयों की यह संभवत: तीसरी पीढ़ी है, जो किशोरावस्था और युवावस्था के बीच आती है।
यह इंसान की जिंदगी का सबसे सुनहरा दौर होता है, जब ज्ञान उसके भविष्य निर्माण का एक महत्वपूर्ण माध्यम बन रहा होता है। सोचिए कि कैसा लगता है, जब आपको पता चलता है कि हममें से अधिकांश आज तक कम्प्यूटर का मुकम्मल इस्तेमाल तक नहीं सीख पाए हैं। यहॉं कोई कम्प्यूटर इंजीनियरिंग या सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट की बात नहीं की जा रही, बल्कि उन बेसिक फंक्शनों की बात की जा रही है, जो कम्प्यूटर का सामान्य इस्तेमाल करने वाले एक व्यक्ति को आने चाहिए।
तीन चौथाई लोग नहीं जानते कम्प्यूटर कमांड
एनएसएसओ की रिपोर्ट इसी तल्ख सच्चाई से पर्दा उठाती है। इससे संबंधित सर्वे में लोगों से फाइल ट्रांसफर से प्रोग्रामिंग तक, कम्प्यूटर से जुड़े नौ कौशलों (स्किल) के बारे में उनकी क्षमताओं के बारे में पूछा गया था। पता चला कि 15 से 29 वर्ष के करीब आधे युवक और दो तिहाई युवतियां कम्प्यूटर में एक फाइल या फोल्डर को एक जगह से दूसरी जगह मूव नहीं कर सकते। कॉपी-पेस्ट टूल्स का इस्तेमाल जानने वालों का अनुपात भी लगभग यही था। वहीं 75.3% युवक और 83.2% युवतियां किसी सॉफ्टवेयर को खोज पाने, डाउनलोड या इंस्टॉल करने में असमर्थ थे। जहां तक ईमेल के साथ अटेचमेंट भेजने की बात है, तो इसमें भी 68.9% युवकों और 77.9% युवतियों ने अपनी बेबसी ही जाहिर की।
अब आप समझ सकते हैं कि हमें इस स्तर पर कितना काम करने की जरूरत है। डिजीटल दुनिया का बहुत तेजी से विस्तार हो रहा है। इसमें करीब तीन चौथाई युवाओं को कम्प्यूटर की बेसिक जानकारी न होना, कहीं उन्हें इस दुनिया में दोयम दर्जे का नागरिक न बना दे।
यह सही है कि हम तेजी से इंटरनेट ऑफ थिंग्स, मेटावर्स, चैटबॉट्स, ब्लॉकचेन, स्मार्ट गाड़ियों, स्मार्ट डिवाइसों के ब्रह्मांड के नागरिक बनते जा रहे हैं। लेकिन, इस सर्वे के नतीजों पर चिंता और चिंतन भी जरूरी है।
अब डिजीटल साक्षरता के प्रसार की बारी
हमने स्कूलों में लैपटॉप बांटे, टैबलेट बांटे, स्मार्टफोन भी बांटे, लेकिन इनका समुचित उपयोग सिखाने पर हमने बहुत ज्यादा ध्यान नहीं दिया। पिछले कई सालों से दूसरी-तीसरी कक्षा से ही बच्चों को कम्प्यूटर का ककहरा सिखाने वाली किताब थमा दी जाती हैं, लेकिन कभी यह जानने की कोशिश नहीं की जाती कि क्या वाकई वे उन्हें कुछ सिखा पाई हैं। अगर उनसे कुछ सिखाया जा सकता तो शायद इस सर्वे के नतीजे कुछ और ही होते।
अब गलती को सुधारने का वक्त है। जिस प्रकार हम देश में साक्षरता की 74.04% दर हासिल कर वर्ष 2025 तक इसे शत-प्रतिशत तक पहुंचाने की ओर बढ़ रहे हैं, उसी प्रकार हमें डिजिटल साक्षरता पर भी गंभीरता से ध्यान देना होगा। हमें अपनी युवा पीढ़ी को समझाना होगा कि कंप्यूटर सिर्फ गेम खेलने या मोबाइल सिर्फ सेल्फी लेने के लिए नहीं होता, बल्कि यह उस दुनिया में सफलता की कुंजी है। अगर वो इसका उपयोग अपने जीवन को समृद्ध और बेहतर बनाने के लिए नहीं कर रहे हैं तो वो गैजेट्स का नहीं बल्कि गैजेट्स उनका उपयोग कर रहे हैं।
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