Mother's Day 2020: मां को क्या दिया है हमनें! क्या इतना सा दे सकते हैं उन्हें?
नई दिल्ली। 'सुनते हैं कि मिल जाती है हर चीज दुआ से, एक रोज तुम्हें मांगकर देखेंगे खुदा से'। हम सबकी अपनी-अपनी आरजूएं है, अपने-अपने किस्से हैं लेकिन एक 'मां' की ही दुआ ऐसी है जिसमें सबके हिस्से हैं। यह बिल्कुल सच है और इसे हम उसके त्याग, प्रेम, स्नेह और समर्पण आदि से 'ग्लोरीफाई' करते हैं। लेकिन मां के मन के भीतर के उन परतों को हम नहीं देख पाते जो उनके दिल में एक-एक करके दफ़न होती जाती हैं। उनकी सहनशीलता महिमामंडित होकर कब उनकी मजबूरी बन जाती है इसका पता भी नहीं चलता है।
मां की छवि
'मां' का नाम आते ही जो तस्वीर हमारे जेहन में सबसे पहले उभरती है वह है त्याग, प्रेम, स्नेह, समर्पण और सहनशीलता का। यह सच भी है कि अपने बच्चों के लिए 'मां' केवल एक शब्द भर नहीं वरन प्यार, शांति और स्नेह का 'शिवाला' है। उसने न जाने कितनी रतजगा करके अपने बच्चों को अपने खून से अपनी आँचल तले सींचा है और फिर एक प्रभावी शिक्षिका की तरह तालीम भी दी है। अपने बच्चों में उसने अपना सब कुछ उड़ेल दिया है। इतना कि कब वह सिर्फ अपने बच्चों के लिए ही जीने लगी इसका आभास उसे हुआ ही नहीं।
हमनें मां को कितना समझा है?
मां को समझने से पहले हमें यह समझना होगा कि वह किसी की बेटी भी है, किसी की बहन भी है और किसी की पत्नी भी है जैसे हम हैं। लेकिन सबसे पहले यह समझना होगा कि वह एक स्वतंत्र अस्तित्व वाली इंसान है। हममें से कितने उसकी इस स्वतंत्रता के हिमायती हैं! क्या हमनें इसपर गौर किया है कि जैसे हम अपने लिए जीना चाहते हैं, जैसे हमारी अपनी इच्छाएं हैं वैसे ही मां की भी होगी! जितनी निजता अपने लिए पसंद करते हैं उतनी ही उसे भी पसंद होगी! क्या घर में मां का अपना कोना, अपनी निजता, एकांत रहने देते हैं हम!
मां होने के एफेक्ट
एक छोटा का उदाहरण है - क्या कभी आपने सोचा है कि आपको माँ के हाथ का खाना ही क्यों याद आता है? क्योंकि हमसे से अधिकांश ने बाप के हाथ का खाना ही नहीं खाया है! क्या आपने सुना है कि कोई पुरुष अपनी पत्नी से बार-बार पिटने के बावजूद उसके साथ रह रहा हो? नहीं न? लेकिन 40 प्रतिशत से अधिक महिलायें पिटते हुए भी पति के साथ रहने को मजबूर होती हैं। और इस मजबूरी में उनकी मां होना एक बड़ा कारण होता है। दरअसल ऐसे कई मोर्चे हैं जहां मां की भावनाओं का दमन उसकी मां होने के कारण ही हुआ है। त्याग की देवी, ममता की मूरत, दया का सागर और अनेक खूबसूरत शब्दों के सहारे हमने जाने-अनजाने 'मां' का सबसे अधिक शोषण किया है।
हम मां के लिए क्या कर सकते हैं
सबसे पहले तो हम मां के मल्टीटास्कर होने का गुणगान न करें, ये उसके श्रम का 'अनपेड' दोहन है। यह उनके साथ हो रहे शोषण को खूबसूरत शब्द में लपेटकर उसे बढ़ावा देना है। उसे दैवीय न बनाएं, उसे भी उतनी स्वतंत्रता दें जितना खुद के लिए चाहते हैं। रूढ़ कर दिए गए 'मां' शब्द कहकर सारा बोझ अनकहे रूप में उनपर न डालें नहीं तो मां शब्द तो बचे रहेंगे लेकिन उसकी स्मिता न बची रह पाएगी।
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(इस लेख में व्यक्त विचार, लेखक के निजी विचार हैं. आलेख में दी गई किसी भी सूचना की तथ्यात्मकता, सटीकता, संपूर्णता, अथवा सच्चाई के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)