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एक सरकार पेंशन शुरू करे, दूसरी ख़त्म, कैसा है यह लोकतंत्र?

By प्रेम कुमार
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नई दिल्ली। मेंटनेंस ऑफ इंटरनल सिक्योरिटी एक्ट यानी 'मीसा' कभी भारत में ख़ौफ़ का पर्याय थी, आज यह पेंशन की वजह के रूप में जानी जा रही है। कांग्रेस ने 'मीसा' लागू करने के लिए संविधान संशोधन किया था, तो जनता पार्टी ने इसे ख़त्म करने के लिए इसी संविधान संशोधन का सहारा लिया था।

एक सरकार पेंशन शुरू करे, दूसरी ख़त्म, कैसा है यह लोकतंत्र?

'मीसा' फिलहाल जिस वजह से चर्चा में है उसकी वजह है मध्यप्रदेश में कांग्रेस की कमलनाथ सरकार। इस सरकार ने आते ही 'मीसा'बंदियों के लिए पेंशन की समीक्षा का एलान कर दिया है। तत्काल इसे रोक दिया गया है और कांग्रेस नेताओं के बयानों का सार समझें, तो इसकी कोई ज़रूरत नहीं है। यानी यह स्थायी रूप से बंद किया जा सकता है।

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पहली बार नहीं हुआ है मीसाबंदियों का पेंशन बंद

पहली बार नहीं हुआ है मीसाबंदियों का पेंशन बंद

अगर मध्यप्रदेश में मीसाबंदियों के लिए पेंशन बंद की जाती है तो यह देश में पहला मौका नहीं होगा जब ऐसा किया जाएगा। राजस्थान में 2009 में जब अशोक गहलोत सरकार आयी थी तब उसने राजस्थान में ‘मीसा'बंदियों के लिए पेन्शन बंद कर दिया था।

बीजेपी की राजनीति ‘मीसा' को याद दिलाते रहने की है। ‘मीसा' के दौरान देश मे 1 लाख लोग अधिकतम 18 महीने तक जेल में रहे थे। इनमें पत्रकार, नेता, राजनीतिक कार्यकर्ता शामिल थे। वह समय आपातकाल के नाम से कुख्यात है। तब विपक्ष में रही जनता पार्टी तो आज नहीं है लेकिन उसका घटक रहा जनसंघ भारतीय जनता पार्टी के रूप में जीवित है। कांग्रेस और बीजेपी इन दिनों देश की दो सबसे बड़ी पार्टियां हैं। ये दोनों ही पार्टियां ‘मीसा' के नाम पर भी दो-दो हाथ करने को आमादा दिखती रही हैं। परिपार्टी ये बन गयी है कि बीजेपी सत्ता में आए तो वह ‘मीसा'बंदियों को ढूंढ़-ढूंढ़ कर पेंशन देगी और कांग्रेस सत्ता में आने पर उसे ख़त्म करेगी।

मध्यप्रदेश में 2 हज़ार से ज्यादा मीसा बंदी हैं। इनके लिए 2008 में शिवराज सरकार ने 3000 और 6000 रुपये प्रतिमाह पेंशन का एलान किया। इसे बढ़ाकर 10 हज़ार प्रतिमाह कर दिया गया। 2017 में यह राशि बढ़ाकर 25 हज़ार कर दी गयी। मीसाबंदियों को पेंशन पर सालाना खर्च 75 करोड़ रुपये है। हरियाणा में अप्रैल 2017 में मीसाबंदियों को पेंशन देने की घोषणा की गयी। 890 लोगों को 10 हज़ार रुपये प्रतिमाह पेंशन दिए जाते हैं। महाराष्ट्र में भी यही राशि है।

स्वतंत्रता सेनानियों से तुलना भी है कांग्रेस की रणनीति

स्वतंत्रता सेनानियों से तुलना भी है कांग्रेस की रणनीति

मध्यप्रदेश में कांग्रेस का सवाल ये है कि जब देश में स्वतंत्रता सेनानियों को उचित पेंशन नहीं मिल पा रहा है, तो मीसाबंदियों पर 25 हज़ार रुपये हर महीने क्यों ‘लुटाए' जा रहे हैं? कांग्रेस मीसाबंदियों की तुलना स्वतंत्रता सेनानियों से कर रही है तो इसके पीछे भी मंशा साफ है कि विरोध की आवाज़ को वे कमजोर कर सकें। जब वह 25 हज़ार रुपये ‘लुटाने' की बात करती है तो वह ‘मीसा'बंदियों को पेंशन के मकसद पर सवाल उठाती दिखती है।

इसमें संदेह नहीं कि स्वतंत्रता सेनानियों की हालत आज़ाद भारत में अच्छी नहीं रही। उन्हें पेंशन के नाम पर इतनी मामूली रकम दी जाती रही कि उससे उनकी हालत में कोई सुधार नहीं हुआ। अब जो गिने-चुने स्वतंत्रता सेनानी रह गये हैं उनकी उम्र 100 के करीब या उसके पार की है। ऐसे में उनके स्वास्थ्य और बेहतर जीवन के लिए सोचा जाना चाहिए। पेंशन की राशि में बढ़ोतरी की जानी चाहिए। उन्हें चिकित्सा सुविधा दी जानी चाहिए। यह बात सिर्फ मध्यप्रदेश के लिए नहीं है, पूरे देश के लिए है। मगर, क्या इसके लिए ‘मीसा'बंदियों की सुविधाएं बंद करना जरूरी है?- ये सवाल अहम है।

राजनीतिक फैसलों का सम्मान हो

राजनीतिक फैसलों का सम्मान हो

राजनीतिक रूप से आपातकाल और ‘मीसा' को नकारात्मक देखने वाली पार्टी अगर उसके दुष्परिणाम झेलने वालों की मदद करती है तो इसका सम्मान किया जाना चाहिए। भले ही आप उससे असहमत हों। लोकतंत्र इसी को कहते हैं। यह कैसा लोकतंत्र है कि एक सरकार आए तो मीसाबंदियों को पेंशन दे, दूसरी सरकार आए तो उसे हटा लेने की घोषणा करे? पेंशन का संबंध सरकारों के आने-जाने से नहीं होना चाहिए।

एक सरकार अगर नियुक्ति करती है तो क्या दूसरी सरकार में वे नियुक्तियां ख़त्म हो जाती हैं? एक सरकार अगर कोई योजना शुरू करती है तो क्या दूसरी सरकार में उस योजना को बंद कर दिया जाता है? यही बात पेंशन के मामले में सरकारें क्यों नहीं समझतीं?

वंदेमातरम् बहाल हो गया, क्या मीसाबंदियों का पेंशन होगा?

वंदेमातरम् बहाल हो गया, क्या मीसाबंदियों का पेंशन होगा?

वंदेमातरम् की परम्परा को हटा लेने के बाद कमलनाथ सरकार ने इसे दोबारा नये रूप में शुरू कर दिया। ‘मीसा'बंदियों के पेंशन के मसले पर क्या कमलनाथ सरकार ऐसा कर पाएगी? ऐसा बिल्कुल नहीं लगता। वजह ये है कि मीसबंदियों की संख्या इतनी नहीं है कि उसे वोटबैंक केरूप में देखा जाए या फिर यह मुद्दा इतना बड़ा नहीं है कि इसका प्रभाव अधिक लोगों पर पड़े। वंदेमातरम् का मामला राष्ट्रीय रूप ले सकता था, कांग्रेस को मध्यप्रदेश से बाहर भी उसका नुकसान हो सकता था। इसलिए वंदेमातरम् पर कांग्रेस ने अलग रुख रखा।

मीसाबंदियों के लिए पेंशन की परिपाटी ही गलत पड़ी

मीसाबंदियों के लिए पेंशन की परिपाटी ही गलत पड़ी

मीसाबंदियों को पेंशन देने की परिपार्टी ही गलत थी। कल को अन्ना आंदोलन में भाग लेने वाले लोगों के लिए भी पेंशन की घोषणा की जा सकती है। अयोध्या आंदोलन में भाग लेने वालों के लिए भी ऐसी ही घोषणा की जा सकती है। दूसरे मामले भी पेंशन बांटने के मौके के तौर पर गढ़े जा सकते हैं। विशुद्ध रूप से यह राजनीतिक पहल थी जिसे करने से किसी सरकार को बचना चाहिए।

60 साल के बाद गुजारा के लायक पेंशन हर किसी को हो

60 साल के बाद गुजारा के लायक पेंशन हर किसी को हो

फिर भी, 1975 में अगर कोई 20 साल का नौजवान भी जेल गया होगा, तो आज उसकी उम्र 63 साल की होगी। वह वास्तव में पेंशन की उम्र में ही होगा। इस लिहाज से ऐसी घोषणा को वापस लेना दरअसल क्रूरता है। होना तो ये चाहिए कि जिनकी उम्र 60 साल से अधिक हो गयी है और जिनके पास आमदनी का कोई स्रोत नहीं है उनके लिए जीने लायक रकम पेंशन के तौर पर उपलब्ध करायी जाए ताकि उनके जीने के अधिकार का सम्मान किया जा सके। मगर, किसी भी सूरत में एक से अधिक पेंशन की व्यवस्था को रोकना होगा। अगर ऐसा हो सका, तो आप चाहे जिस नाम से भी पेंशन दीजिए वह ज़रूरत मंद लोगों को ही मिलेगा।

पेंशन शुरू करना एक बात, ख़त्म करना बिल्कुल अलग

पेंशन शुरू करना एक बात, ख़त्म करना बिल्कुल अलग

पेंशन शुरू करने पर आपत्ति एक बात है, मगर बंद करने पर आपत्ति बिल्कुल अलग बात। सरकार चाहे किसी भी दल की हो, पेंशन चाहे जिस वजह से मिल रहा हो- न पेंशन बंद करने को सही ठहराया जा सकता है, न ही ऐसे किसी फैसले के साथ खड़ा हुआ जा सकता है। ऐसी लोकतांत्रिक तटस्थता और जनोन्मुख सोच समाज में विकसित करने की जरूरत है ताकि राजनीतिक लामबंदी से दूर रहकर सोचने की शक्ति विकसित हो।

(ये लेखक के निजी विचार हैं।)

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English summary
MISA pension: A government start a pension, other end, Madhya pradesh kamal nath congress
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