Missing Monuments: गायब होते जा रहे हैं संरक्षित स्मारक, लेकिन परवाह किसे है?
संस्कृति मंत्रालय की रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत के कई संरक्षित स्मारक कागज पर तो हैं लेकिन जमीन पर उनके नामो निशान नहीं मिल रहे हैं। यह रिपोर्ट संसद में पेश की जा चुकी है लेकिन सवाल है कि इसकी परवाह किसे है?
Missing Monuments: 850 साल पुराने जैसलमेर के सोनार दुर्ग किले का निर्माण रावल जैसल ने 1156 में करवाया था। यह विश्व का एकमात्र आवासीय किला है, जहां करीब 400 घरों में 1200 लोगों की आबादी रहती है। विश्वधरोहर घोषित सोनार दुर्ग को 'सोनार किला' या 'स्वर्ण किले' के नाम से भी लोग जानते हैं, क्योंकि सूर्यास्त के समय पीले बलुआ पत्थरों वाला यह किला सोने की तरह चमकने लगता है।
यह किला जिस थार मरुस्थल के त्रिकुटा पर्वत पर बना है, इस पर्वत की उम्र 154 लाख साल बताई जाती है। इस किले पर कई ऐतिहासिक लड़ाईयां भी हुई हैं। 2009 में आए भूकंप ने पूरे किले को हिलाकर रख दिया था। किले की दीवार गिरने से एक बार कुछ लोगों की मौत भी हो चुकी है लेकिन अभी भी किले के रख रखाव पर विशेष ध्यान नहीं दिया जा रहा है।
ऐसी बुरी स्थिति सिर्फ जैसलमेर के सोनार किले की ही नहीं है। संस्कृति मंत्रालय ने कुछ समय पहले संसद में बताया था कि भारत भर के 3693 केन्द्रीय संरक्षित स्मारकों में से 50 स्मारक लापता हैं। 14 स्मारक तेजी से शहरीकरण के कारण खो गए हैं, 12 जलाशयों/बांधों में डूब गए हैं, जबकि 24 का पता नहीं चल पाया है, इस तरह लापता स्मारकों की संख्या 50 हो गई है।
प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल और अवशेष अधिनियम (एएमएएसआर अधिनियम) के अन्तर्गत राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों और पुरातात्विक स्थलों की देखभाल भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) करता है। इसमें ऐसे मंदिर, कब्रिस्तान, शिलालेख, मकबरे, किले, महल शामिल हैं, जो 100 वर्ष से अधिक पुराने हैं। इसके अलावा चट्टानों को काटकर बनाई गई गुफाएं, सीढ़ीदार कुएं और यहां तक कि तोप जैसी वस्तुएं भी ऐतिहासिक महत्व की हो सकती हैं। एएमएएसआर अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार, एएसआई अधिकारियों को स्मारकों की स्थिति का आंकलन करने के लिए समय समय पर निरीक्षण करना चाहिए। जिसमें लापरवाही साफ दिखाई देती है।
विभिन्न संरक्षण कार्यों के अलावा, एएसआई अधिकारी आवश्यकता पड़ने पर पुलिस में शिकायत भी दर्ज करा सकते हैं। स्मारक यदि अतिक्रमण से प्रभावित हो रहा है तो उसे हटाने के लिए कारण बताओ नोटिस जारी कर सकते हैं और स्थानीय प्रशासन को अतिक्रमण हटाने की आवश्यकता बता सकते हैं लेकिन इन बातों की खूब उपेक्षा की जाती है। जिसका परिणाम आज हम अपनी भारतीय धरोहर को खोकर चुका रहे हैं।
'भारत में स्मारकों के संरक्षण और अप्राप्य स्मारकों से संबंधित मुद्दे' शीर्षक से आई रिपोर्ट के हिस्से के रूप में जब स्मारकों के गायब होने की जानकारी आई, उसके बाद यह सवाल उठना स्वाभाविक था कि राष्ट्रीय महत्व के स्मारक जमीन से गायब हो गए और किसी को खबर भी नहीं हुई। यह सब एक दिन में नहीं हुआ होगा।
अपनी परंपरा और संस्कृति पर गर्व करने वाले किसी भी देश के लिए यह चिंता की बात होगी। क्या यह विश्वास करने वाली बात है कि हरियाणा में कोस मीनार, दिल्ली में बाराखंभा कब्रिस्तान, अरुणाचल प्रदेश में तांबे के मंदिर का खंडहर और उत्तर प्रदेश में गनर बुर्किल का मकबरा जैसे विरासत स्थल जो एएसआई की सूची में शामिल तो हैं लेकिन जमीन पर कहीं मौजूद नहीं हैंं।
यह स्मारक जमीन से गायब कैसे हुए? इसमें एक जाहिर सी वजह एएसआई की लापरवाही तो है ही साथ ही साथ आजादी के बाद देश की आबादी में हुई बढ़ोत्तरी भी इसकी एक वजह है। आजादी के समय भारत की आबादी 34 करोड़ थी जो आज एक अरब चालीस करोड़ हो गई है। मतलब चार गुने से भी कहीं अधिक।
इस तरह सीमित संसाधनों के कारण हमारे धरोहर लगातार इतिहास की जमीन से गायब होते गये। जैसे कि दिल्ली के अंदर एक समय में बाराखंभा एक मकबरा हुआ करता था, जिसका नाम इसकी छत को सहारा देने वाले 12 खंभो के नाम पर रखा गया था। उसी के बगल बनी सड़क को बाराखंभा रोड कहा जाता है। लेकिन रोड तो है लेकिन अब बाराखंभा रोड पर वह मकबरा कहीं नहीं मिलता। अब वह एएसआई की अप्राप्य स्मारकों की सूची में शामिल कर लिया गया है।
एएसआई की स्थापना 1861 में अलेक्जेंडर कनिंघम ने की थी। वह इसके पहले महानिदेशक भी बने। कनिंघम ब्रिटिश सेना के इंजीनियर थे। स्वतंत्रता के पूर्व 1920 और 1930 के दशक में एएसआई सबसे अधिक सक्रिय रहा। आजादी के बाद अपने स्मारकों के संरक्षण पर सरकारों का ध्यान कम ही रहा। विरासत की रक्षा करने की बजाय, स्वास्थ्य, शिक्षा और बुनियादी ढांचे पर उनका ध्यान केन्द्रित रहा। जिसकी वजह से हमारे कई स्मारक शहरीकरण, बांधों और जलाशयों के निर्माण और यहां तक कि शहरी अतिक्रमण में खो गए।
जिन स्मारकों के गायब होने की जानकारी सार्वजनिक हुई है, वह सब एएसआई द्वारा चिन्हित स्मारक हैं। इस देश में सैकड़ों स्मारक एएसआई की नजर में भी कभी नहीं आ पाए और पूरी तरह खत्म हो गए। यह आश्चर्य की ही बात है कि एक अंग्रेज की कब्र को काशी में एएसआई राष्ट्रीय महत्व का मानता है लेकिन जिस काशी विश्वनाथ मंदिर की वजह से पूरी दुनिया में काशी को पहचान मिली, उस मंदिर को एएसआई राष्ट्रीय धरोहर नहीं मानता। देश भर में ऐसे अनगिनत राष्ट्रीय धरोहर बिखरे पड़े हैं। आवश्यकता है उनको पहचानने की और संरक्षित करने की।
एएसआई के अनुसार 24 अप्राप्य स्मारकों का पता लगाने का वह एक अंतिम प्रयास और करेगा। यदि उनमें से किसी का पता लगाया जा सका, तो उस स्मारक का नाम लापता स्मारकों की सूची से काट दिया जाएगा। उल्लेखनीय है कि संरक्षित स्मारकों की सूची से खोए हुए स्मारकों को हटाना आसान नहीं है। हटाने के लिए एएमएएसआर अधिनियम की धारा 35 के अन्तर्गत उक्त स्मारक को गैर-अधिसूचित करने की आवश्यकता होती है, यह एक लंबी प्रक्रिया है।
एक अनुमान के अनुसार संस्कृति और विरासत से जुड़े हुए स्मारक 40% अंतरराष्ट्रीय पर्यटन बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। सच तो यह भी है कि भारत में सांस्कृतिक पर्यटन को लेकर कोई आधिकारिक आंकड़ा हमारे पास नहीं है, लेकिन इस बात से इनकार भी नहीं किया जा सकता कि पर्यटकों को आकर्षित करने में हमारी समृद्ध संस्कृति और विरासत का बहुत अहम योगदान होता है। इसलिए इन ऐतिहासिक स्थलों और खंडहरों की रक्षा से पर्यटन के राजस्व में भी वृद्धि हो सकती है।
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