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क्या बताती है चुनाव के दौरान करोड़ों रुपये की जब्ती

By आर एस शुक्ल
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नई दिल्ली। वह कोई और दौर रहा होगा जब बहुत कम खर्चे में चुनाव लड़े या जीते जा सकते होंगे। फिलहाल चुनाव लड़ना जितना महंगा हो चुका है और चुनाव में जितना धन खर्च किया जाने लगा है, उससे आम आदमी तो शायद चुनाव लड़ने के बारे में सोच भी नहीं सकता है। धनबल के अधिकाधिक उपयोग के कारण ही चुनावों की निष्पक्षता पर सवालिया निशान लगाए जाने लगे हैं। हालांकि चुनाव आयोग ने चुनावों में खर्च की सीमा जरूर तय कर रखी है, प्रत्याशी और पार्टियां अपने चुनावी खर्चे बताते भी हैं, लेकिन इस पर शायद ही किसी को विश्वास होता हो। यह एक तरह से स्थापित सत्य हो चुका है कि धनबल के बल पर चुनावी वैतरणी पार की जा सकती है। इसीलिए प्रत्याशी और पार्टियां दोनों इस मामले में किसी तरह की कोताही नहीं बरतना चाहते। मतदाताओं को लुभाने के लिए वे इसका भरपूर उपयोग करते हैं, भले ही आयोग ने इस पर रोक लगा रखी हो। यह जरूर होता है कि आयोग की सख्ती की वजह से रुपये पकड़े और जब्त भी किए जाते हैं, लेकिन चोरी-छुपे यह चलता रहता है। चुनावों में धनबल के उपयोग के खिलाफ चिंता बहुत प्रकट की जाती है, पर अभी तक कोई ऐसी व्यवस्था नहीं बनाई जा सकी है जिससे इस पर प्रभावी अंकुश लगाया जा सके।

कमलनाथ के करीबियों पर की गई कार्रवाई

कमलनाथ के करीबियों पर की गई कार्रवाई

अभी लोकसभा चुनाव का पहला चरण ही बीत रहा है। चुनाव आयोग की ओर से उपलब्ध कराई गई जानकारी के मुताबिक चुनावों की घोषणा के बाद से अब तक करीब 377 करोड़ रुपये नगद जब्त किए जा चुके हैं। इसके अलावा, 157 करोड़ रुपये की शराब और 750 करोड़ रुपये मूल्य के नशीले पदार्थ भी जब्त किए गए हैं। इसमें कुछ जगहों पर छापे भी मारे गए हैं जहां से रुपये बरामद किए गए हैं जबकि कई वाहनों से रुपये पकड़े गए हैं। उदाहरण के लिए तेलंगाना की साइबराबाद पुलिस ने दो करोड़ रुपये नगद के साथ दो लोगों को गिरफ्तार किया है। गिरफ्तार लोगों ने स्वीकार किया कि इस धन का इस्तेमाल चुनाव में किया जाना था। आंध्र प्रदेश के चित्तूर में एक वाहनसे 39 लाख रुपये पकड़े गए। तमिलनाडु सर्वाधिक 127 करोड़ रुपये नगद जब्त किए गए हैं। अप्रैल की शुरुआत में झारखंड में करोड़ों रुपये पकड़े गए। राज्य में सवा करोड़ रुपये से ज्यादा जब्त किया गया है। उत्तर प्रदेश के मेरठ में एक कार से एक लाख 70 हजार रुपये पकड़े गए। पकड़े लोग यह नहीं बता पाए कि आखिर वे यह रुपये किसके लिए ले जा रहे थे। उत्तराखंड के सेलाकुई में एक कार से पुलिस ने डेढ़ लाख रुपये पकड़े। आयोग की ओर से की जा रही कार्रवाई में बिहार में करोड़ों रुपये नगद जब्त किए गए हैं। उत्तर प्रदेश 17 करोड़ रुपये से अधिक की नगदी पकड़ी गई है। इन छापों और जब्ती में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ के करीबियों पर की गई कार्रवाई और जब्ती भी शामिल है जिसको लेकर राजनितिक हलकों में काफी बातें की जा रही हैं।

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पाबंदी के बाद भी बड़ी मात्रा में कैश बरामद

पाबंदी के बाद भी बड़ी मात्रा में कैश बरामद

यह स्थिति तब है जब चुनावों के दौरान 50 हजार रुपये से ज्यादा नगदी लेकर चलने पर पाबंदी है। तय व्यवस्था के अनुसार इससे ज्यादा रकम पकड़े जाने पर संबंधित दस्तावेज दिखाकर यह साबित करना होगा कि यह रुपया किस काम के लिए ले जाया जा रहा है। बैंक अकाउंट से 10 लाख से ज्यादा रुपये के लेन-देन पर बैंक अधिकारी को भी ब्यौरा देना होगा। कैश लेकर चलने वाली एजेंसियों के भी रात में नहीं चलने का प्रावधान किया गया है। इतना ही नहीं, एक प्रोफार्मा भी बनाया गया है जिसमें व्यापारी, फर्म, पेट्रोल पंप, शराब व्यवसायी तथा अन्य लोगों को नगदी के साथ इसे लेकर चलना होगा ताकि पकड़े जाने पर यह पता चल सके यह धन इस मद का है। यह व्यवस्था इसलिए बनाई गई है ताकि आम लोगों को किसी तरह की परेशानी न हो और उन लोगों को आसानी से पकड़ा जा सके जो अन्य उद्देश्यों से काफी मात्रा में नगदी लेकर जा रहे हों। चुनाव आयोग को शायद पहले ही आशंका थी कि इस बार के चुनावों में धनबल का उपयोग ज्यादा किया जा सकता है, इसीलिए पहले से ज्यादा सख्ती की गई। वैसे हर चुनाव में चुनाव आयोग की ओर से इस तरह के अभियान चलाए जाते हैं और हर बार काफी मात्रा में नगदी पकड़ी जाती है। अब जैसे बीते लोकसभा चुनाव के दौरान चुनाव आयोग के आंकड़ों के ही मुताबिक आयोग ने 299.99 करोड़ रुपये नगद जब्त किए थे। अगर इसकी तुलना हालिया चुनावों से की जाए तो पता चलता है कि पहले चरण में ही उससे ज्यादा रकम जब्त की जा चुकी है।

क्या कहते हैं पूर्व चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी

क्या कहते हैं पूर्व चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी

चुनावों के दौरान इस तरह रुपयों की जब्ती पर एक टीवी चैनल पर पूर्व चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी कहते हैं कि इसमें चौंकाने वाला कुछ भी नहीं है। जिस तरह रुपये बरामद हो रहे हैं अथवा जब्त किए जा रहे हैं, उससे साफ पता चलता है कि चुनावों में धन का इस्तेमाल बढ़ता जा रहा है और पहले की तुलना में काफी ज्यादा हो गया लगता है। एक अन्य पूर्व चुनाव आयुक्त नवीन चावला का मानना है कि आयोग की सख्ती से धनबल के उपयोग में कमी लाई जा सकती है। ऐसे छापों जिनको लेकर पक्षपात की बातें की जा रही हैं, उस पर भी चुनाव आयोग की ओर से पहल की गई है। आयोग की ओर से राजस्व सचिव को पत्र लिखकर कहा गया है कि चुनाव में अवैध धन के उपयोग के लिए निष्पक्ष और भेदभाव रहित कार्रवाई होनी चाहिए। राजस्व विभाग के तहत आने वाली एजेंसियों को सलाह भी दी गई है कि कोई भी कार्रवाई तटस्थ और पक्षपात रहित होनी चाहिए। अगर पुख्ता जानकारी हो कि संबधित धन का उपयोग गलत तरीके से चुनाव को प्रभावित करने के लिए किया जा रहा हो, तब इसकी जानकारी मुख्य चुनाव अधिकारी को भी दी जाए।

मतदाताओं को लुभाने के लिए इस्तेमाल ?

मतदाताओं को लुभाने के लिए इस्तेमाल ?

इस सबके बावजूद यह तो हो रहा है कि चुनाव के दौरान नगदी पकड़ी जा रही है जो इस ओर ही इशारा करता है कि इनका उपयोग गलत तरीके से किया जा रहा है और मतदाताओं को लुभाने के लिए किया जा रहा है। निश्चित रूप से चुनाव आयोग सख्त है और इसका असर भी दिख रहा है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब पहले चरण के पहले ही इतना ज्यादा धन जब्त किया जा चुका है, तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि अभी आने वाले दिनों में इसकी तादाद कितनी हो सकती है। ऐसे में इसकी जरूरत ज्यादा आ गई है कि चुनाव आयोग नए सिरे से इस समस्या पर विचार करे और ऐसे तरीके खोजे जाएं जिससे चुनावों में धनबल के उपयोग को कम से कम किया जा सके क्योंकि इसे स्वस्थ लोकतंत्र के लिए किसी भी लिहाज से उचित नहीं ठहराया जा सकता। अगर चुनाव में काले धन का उपयोग इसी तरह से बढ़ता रहा, तो आने वाले समय में हालात और ज्यादा खराब हो सकते हैं। संभावना जताई जा सकती है कि इन चुनावों के बाद जरूर ही इस दिशा में कुछ ठोस कदम उठाएगा। ज्यादा अच्छा होगा कि इसमें सभी राजनीतिक दलों और सरकार के साथ भी विचार-विमर्श किया जाए कि इस बारे में क्या-क्या किया जा सकता है।

(इस लेख में व्यक्त विचार, लेखक के निजी विचार हैं. आलेख में दी गई किसी भी सूचना की तथ्यात्मकता, सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं।)

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English summary
millions of rupees seized during the lok sabha elections 2019, what does it indicates
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