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Assembly Elections 2018: मध्य प्रदेश की राजनीति में तीसरी ताकत का उभार- संभावनाएं और सीमाएं

By जावेद अनीस, स्वतंत्र पत्रकार
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नई दिल्ली। परम्परागत रूप से मध्यप्रदेश की राजनीति दो ध्रुवीय रही है। अभी तक यहां की राजनीति में कोई तीसरी ताकत उभर नहीं सकी है। हमेशा की तरह आगामी विधानसभा चुनाव के दौरान भी मुख्य मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच ही है लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि इस बार यह मुकाबला बहुत करीबी हो सकता है। इसे क्षेत्रीय पार्टियां एक अवसर के तौर पर देख रही हैं। प्रदेश की राजनीति में बसपा, सपा और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी जैसे पुराने दल तो पहले से ही सक्रिय हैं लेकिन इस बार कुछ नये खिलाड़ी भी सामने आये हैं जो आगामी चुनाव के दौरान अपना प्रभाव छोड़ सकते हैं। आदिवासी संगठन "जयस" और मध्यप्रदेश में स्वर्ण आन्दोलन की अगुवाई कर रहे "सपाक्स" ने आगामी विधानसभा चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। मध्यप्रदेश में अपना पहला विधानसभा चुनाव लड़ने जा रही आम आदमी पार्टी भी मैदान में है।

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मुख्य मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच

मुख्य मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच

जाहिर है इस बार मुकाबला बहुत दिलचस्प और अलग होने जा रहा है क्योंकि ऐसा मान जा रहा है कि किसी एक पार्टी के पक्ष में लहर ना होने के कारण हार जीत तय करने में छोटी पार्टियों की भूमिका अहम रहने वाली है। इसीलिए क्षेत्रीय पार्टियों पूरी आक्रमकता के साथ अपने तेवर दिखा रही हैं जिससे चुनावके बाद वे किंगमेकर की भूमिका में आ सकें। कांग्रेस पिछले डेढ़ दशक से मध्यप्रदेश की सत्ता से बाहर है लेकिन इस बार वो पुरानी गलतियों को दोहराना नहीं चाहती है। कांग्रेस पार्टी पूरे जोर-शोर से तैयारियों में जुटी है। कमलनाथ के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद से पार्टी में कसावट आई है, गुटबाजी भी पहले के मुकाबले कम हुई है लेकिन गुटबाजी अभी भी पूरी तरह से खत्म नहीं हुई है, इसी तरह से मध्यप्रदेश में सत्ता के खिलाफ नाराजगी तो है लेकिन अभी तक कांग्रेस इसे अपने पक्ष में तब्दील करने में नाकाम रही है।

बसपा, सपा और GGP जैसे पुराने दल छोड़ सकते हैं प्रभाव

बसपा, सपा और GGP जैसे पुराने दल छोड़ सकते हैं प्रभाव

पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान बसपा और गोंडवाना गणतंत्र जैसी पार्टियों ने 80 से अधिक सीटों पर 10,000 से ज्यादा वोट हासिल किए। जो की हार-जीत तय करने के हिसाब से पर्याप्त हैं। कांग्रेस की अंदरूनी रिपोर्ट भी मानती है कि मध्यप्रदेश के करीब 70 सीटें ऐसी हैं जहां क्षेत्रीय दलों के मैदान में होने कि वजह से कांग्रेस को वोटों का नुकसान होता आया है जिसमें बसपा सबसे आगे है। इसीलिये कांग्रेस कि तरफ से बसपा के साथ गठबंधन को लेकर सबसे ज्यादा जोर दिया जा रहा था।

“जयस” और “सपाक्स” ने भी किया चुनाव लड़ने का ऐलान

“जयस” और “सपाक्स” ने भी किया चुनाव लड़ने का ऐलान

वहीं दूसरी तरफ सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी अच्छी तरह से जानती है कि कांग्रेस के हाथों मध्यप्रदेश की सत्ता गंवाना उसके लिये कितना भारी पड़ सकता है। भाजपा के लिये गुजरात के बाद मध्यप्रदेश सबसे बड़ा गढ़ है और कांग्रेस उसे यहां की सत्ता से बेदखल करने में कामयाब हो जाती है तो इसे इसका बड़ा मनोवैज्ञानिक लाभ मिलेगा। पिछले दो चुनाव की तरह मध्यप्रदेश में इस बार बीजेपी के लिए राह आसान दिखाई नहीं दे रही है। इस बार कांग्रेस कड़ी चुनौती पेश करती हुई नजर आ रही है। किसान आंदोलन, गंभीर भ्रष्टाचार के आरोप तो पहले से ही थे, इधर उस सवर्णों की नाराजगी को भी झेलना पड़ रहा है। पिछले दिनों सवर्णों के गुस्से को देखते हुये शिवराज सिंह ने ऐलान किया था कि ‘प्रदेश में बिना जांच के एट्रोसिटी एक्ट के तहत मामले दर्ज नहीं किए जाएंगे' लेकिन इससे भी सवर्णों की नाराजगी कम नहीं हुई है उलटे सपाक्स ने सभी सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है। अगर चुनाव तक भाजपा सवर्णों की नाराजगी को शांत नहीं कर पायी तो इसका खामियाजा उसे भुगतना पड़ सकता है।

2013 में बसपा तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी

2013 में बसपा तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी

मध्यप्रदेश में विधानसभा की कुल 230 सीटें हैं जिनमें से 82 सीटें अनुसूचित जाति, जनजाति के लिये आरक्षित हैं जबकि 148 सामान्य सीटें की है, भाजपा की चिंता इसी 148 सामान्य सीटों को लेकर है जिस पर सपाक्स के आन्दोलन का प्रभाव पड़ सकता है। मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड, विंध्य, ग्वालियर-चंबल और उत्तर प्रदेश से लगे जिलों में बहुजन समाज पार्टी व समाजवादी का प्रभाव माना जाता है जबकि महाकौशल के जिलों में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का असर है। 2003 के विधानसभा चुनाव के दौरान गोंडवाणा गणतंत्र पार्टी ने 3 सीटें जीती थीं लेकिन इसके बाद से आपसी बिखराव के कारण उसका प्रभाव कम होता गया है। पिछले चुनाव के दौरान उसे करीब 1 प्रतिशत वोट मिले थे। ऐसा माना जाता है कि गोंडवाणा गणतंत्र पार्टी का अभी भी शहडोल,अनूपपुर, डिंडोरी, कटनी, बालाघाट और छिंदवाड़ा जिलों के करीब 10 सीटों पर प्रभाव है। 2003 के विधानसभा चुनाव के दौरान समाजवादी 8 सीटें जीतकर मध्यप्रदेश की तीसरी सबसे बड़ी ताकत के रूप में उभरी थी। प्रदेश में उसके एक भी विधायक नहीं हैं, पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान सपा को करीब सवा प्रतिशत वोट हासिल हुये थे। बहुजन समाज पार्टी के साथ कांग्रेस, सपा और गोंगपा से भी गठबंधन करना चाहती थी लेकिन इस पर भी अभी तक कोई फैसला नहीं हो सका है। इन सबके बीच सपा और गोंगपा के एक साथ मिलकर चुनाव लड़ने की संभावना बन रही है।

मध्यप्रदेश में विधानसभा की कुल 230 सीटें हैं

मध्यप्रदेश में विधानसभा की कुल 230 सीटें हैं

इन तीनों पार्टियों के वोटबैंक भले ही कम हो लेकिन यह असरदार हैं, इनकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि इनका प्रभाव पूरे प्रदेश में बिखरा न होकर कुछ खास जिलों और इलाकों में केंद्रित है। जिसकी वजह से यह पार्टियां अपने प्रभाव क्षेत्र में हार-जीत को प्रभावित करने में सक्षम हैं। आम आदमी पार्टी पहली बार मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव में उतरने जा रही है। पार्टी काफी पहले ही प्रदेश सभी 230 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुकी है। पार्टी के प्रदेश संयोजक आलोक अग्रवाल को मुख्यमंत्री पद के दावेदार के रूप में पेश किया है। आलोक अग्रवाल लम्बे समय से नर्मदा बचाओ आंदोलन में सक्रिय रहे हैं।

"सपाक्स" और "जयस" का असर

"सपाक्स" और "जयस" जैसे संगठनों ने भी विधानसभा चुनाव में उतरने का ऐलान किया था सपाक्स ने तो बाकायदा पार्टी बनाकर प्रदेश के सभी सीटों से राजनीति में उतरने का ऐलान कर दिया है जबकि "जयस" के हीरालाल अलावा को कांग्रेस प्रत्याशी घोषित किए जाने के बाद से अब इसके चुनाव लड़ने की संभावाना नहीं है। सपाक्स यानी सामान्य, पिछड़ा एवं अल्पसंख्यक वर्ग अधिकारी कर्मचारी संस्था मध्य प्रदेश के सरकारी कर्मचारियों, अधिकारियों का संगठन है जो प्रमोशन में आरक्षण और एट्रोसिटी एक्ट के ख़िलाफ आन्दोलन चला रहा है। सपाक्स ने 2 अक्टूबर 2018, गांधी जयंती के मौके पर अपनी नयी पार्टी लॉन्च करते हुए सभी 230 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। सपाक्स का सवर्णों और ओबीसी समुदाय के एक बड़े हिस्से पर प्रभाव माना जा रहा है। सपाक्स के नेता हीरालाल त्रिवेदी ने कहा है कि उनके संगठन ने राजनीतिक दल के पंजीयन के लिये चुनाव आयोग में आवेदन किया है। यदि चुनाव से पहले पंजीयन नहीं होता है तो भी सपाक्स पार्टी निर्दलीय उम्मीदवार खड़ा करके चुनाव लड़ेगी। जानकार मानते हैं कि अगर सपाक्स चुनाव लड़ती है तो इसका सबसे ज्यादा नुकसान भाजपा हो सकता है। दरअसल इन दिनों मध्यप्रदेश में सपाक्स को मजाक के तौर पर नोटा कहा जा रहा है।

मध्यप्रदेश में कांग्रेस-भाजपा के अलावा किसी तीसरे दल का उभार आसान नहीं

मध्यप्रदेश में कांग्रेस-भाजपा के अलावा किसी तीसरे दल का उभार आसान नहीं

हालांकि सपाक्स को लेकर दिग्विजय सिंह का एक बयान भी काबिले गौर है जिसमें उन्होंने सपाक्स को भाजपा द्वारा प्रायोजित आंदोलन बताते हुये इसके नेता हीरालाल त्रिवेदी को भाजपा से मिला हुआ बताया था। सपाक्स को लेकर दिग्विजय सिंह की तरह ही कई विश्लेषक भी यह मान रहे हैं कि दरअसल सपाक्स की पूरी कवायद भाजपा पर दबाव डालने की है जिससे अपने लोगों के लिये ज्यादा-ज्यादा टिकट हासिल किया जा सके। मध्यप्रदेश का चुनावी इतिहास देखें तो समय-समय पर कई राजनीतिक ताकतें उभरी हैं लेकिन उनका उभार ना तो स्थायी रहा है और ना ही उनमें से कोई पार्टी निर्णायक भूमिका में आ सकी हैं। इसी तरह से मध्यप्रदेश में गठबंधन की राजनीति भी नहीं हुई है। मध्यप्रदेश में कांग्रेस और भाजपा के अलावा किसी भी तीसरे दल के लिये उभरना आसान नहीं है, इसके लिये सिर्फ पार्टी ही काफी नहीं है बल्कि ऐसे नेता और नीति की भी जरूरत है जो प्रदेश स्तर पर मतदाताओं का ध्यान खींच सके।

(ये लेखक के निजी विचार हैं)

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English summary
Madhya Pradesh Elections 2018: Emergence of third Front power in politics possibilities limitations
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