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कहीं भाजपा और बसपा के लिए बड़ी मुसीबत तो नहीं बन जाएंगे चंद्रशेखर

By आर एस शुक्ल
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नई दिल्ली। एक थे आजादी की लड़ाई के क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद जिन्होंने देश की स्वतंत्रता की खातिर शहादत स्वीकार की और जिनके बलिदान को देश और दुनिया में आदर के साथ याद किया जाता है। एक और चंद्रशेखर देश के प्रधानमंत्री थे जिन्होंने पूरे देश को अपनी अलग किस्म की राजनीति का लोहा मनवाया। अब उत्तर प्रदेश से एक और नए नेता चंद्रशेखऱ बहुत तेजी के साथ सामने आ रहे हैं। चंद्रशेखर आजाद जो न केवल पिछले कुछ वर्षों से काफी चर्चा में हैं बल्कि फिलहाल इनको लेकर यह कयास भी लगाए जा रहे हैं कि हालिया लोकसभा चुनाव में वह और उनकी भीम आर्मी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। शायद इसीलिए सत्ताधारी भाजपा से लेकर विपक्षी कांग्रेस और बसपा तक उनको लेकर कुछ न कुछ करते-कहते रहते हैं। इससे इस बात को बल मिलता है कि निश्चित ही वह कोई ऐसी ताकत बनकर उभरे हैं कि कोई आसानी से उनकी अनदेखी नहीं कर पा रहा है।

प्रियंका गांधी ने मेरठ के अस्पताल में की चंद्रशेखर से मुलाकात

प्रियंका गांधी ने मेरठ के अस्पताल में की चंद्रशेखर से मुलाकात

ताजा घटनाक्रम यह है कि चंद्रशेखर की ओर से 15 मार्च को दिल्ली में हुंकार रैली प्रस्तावित है। इसको लेकर वह पश्चिमी उत्तर प्रदेश में प्रचार अभियान चला रहे थे। इसी दौरान उन्हें पुलिस ने चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन करने के आरोप में उन्हें गिरफ्तार कर लिया। इस एक घटना ने चंद्रशेखर को नए सिरे से सुर्खियों में ला दिया। गिरफ्तारी के बाद अस्वस्थ होने पर उन्हें मेरठ के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया। इसी बीच, उनसे मिलने कांग्रेस की नवनियुक्त महासचिव और पूर्वी उत्तर प्रदेश की प्रभारी प्रियंका गांधी अस्पताल पहुंच गईं। इसको लेकर पत्रकारों ने जब चंद्रशेखर से बातचीत की, तो उनकी ओर से यह कहा गया कि वह बनारस से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे। इसके साथ ही चंद्रशेखर को लेकर तरह-तरह की राजनीतिक चर्चाएं तेज हो गईं। कहा जाने लगा कि उनका कांग्रेस के साथ गठबंधन हो सकता है अथवा कांग्रेस उन्हें किसी सीट पर लड़ा भी सकती है। यहां तक बातें की जाने लगीं कि इस चुनाव में चंद्रशेखर अगर सक्रिय होते हैं, तो उनके प्रभाव को नकारा नहीं जा सकता है।

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भीम आर्मी का औपचारिक गठन 2015 में

भीम आर्मी का औपचारिक गठन 2015 में

वर्तमान में चंद्रशेखर के राजनीतिक महत्व को लेकर कुछ समझने से पहले भीम आर्मी के बारे में जान लेना जरूरी होगा। खुद चंद्रशेखर का कहना है कि भीम आर्मी कोई राजनीतिक नहीं बल्कि एक तरह से सामाजिक संगठन है। इस संगठन का मुख्य काम पश्चिमी उत्तर प्रदेश में माना जाता है। भीम आर्मी का औपचारिक गठन 2015 में किया गया था। शुरू में यह केवल सहारनपुर तक ही सीमित लगता था। बाद में इसका विस्तार होता चला गया और काफी संख्या में दलित और अल्पसंख्यक इसके साथ जुड़ते चले गए। एक-दो साल के भीतर ही यह संगठन समर्थन संख्या के लिहाज से बड़ा माना जाने लगा। बीते एक-दो वर्षों में ही दलित उत्पीड़न और दलितों-अल्पसंख्यकों के सवाल पर भीम आर्मी की ओर से आंदोलन भी किए गए और चंद्रशेखर को भी निशाने पर लिया जाने लगा। वैसे चंद्रशेखर खुद कहते हैं कि भीम आर्मी दलितों, मुस्लिमों और पिछड़ों के उत्पीड़न-शोषण के खिलाफ संघर्ष करने वाला संगठन है।

चंद्रशेखर बसपा और मायावती की भी आलोचना करते रहे हैं

चंद्रशेखर बसपा और मायावती की भी आलोचना करते रहे हैं

इसी क्रम में वह सत्ताधारी भाजपा पर आक्रामक होते हैं और आरोप लगाते हैं कि केंद्र और उत्तर प्रदेश की सरकारें उनका उत्पीड़न कर रही हैं। इसलिए वह उन्हें सत्ता से बाहर करने की लड़ाई लड़ रहे हैं। इसके अलावा, अगर उनके पिछले कुछ वर्षों के आंदोलनों और वक्तव्यों को देखा जाए तो पता चलता है कि वह बसपा और बसपा प्रमुख मायावती की भी आलोचना करते रहे हैं। कहा जाता है कि वे मानते हैं कि बसपा औऱ मायावती ने दलितों, मुस्लिमों और पिछड़ों के लिए कुछ नहीं किया बल्कि केवल सत्ता के लिए उपयोग किया। शायद यही कारण रहा है कि मायावती शुरू से ही चंद्रशेखर को लेकर आक्रामक रही हैं। इतना ही नहीं, वह तो चंद्रशेखर को भाजपा के इशारे पर काम करने वाला तक बताती रही हैं। यह अलग बात है कि चंद्रशेखर ने अब से कुछ समय पहले यह कहा था कि वह भाजपा को हराने के लिए सपा-बसपा गठबंधन का समर्थन करेंगे। लेकिन अब शायद वह कुछ पुनर्विचार पर पहुंच गए हैं।

चंद्रशेखर ने बनारस से चुनाव लड़ने का किया ऐलान

चंद्रशेखर ने बनारस से चुनाव लड़ने का किया ऐलान

हालांकि अभी तक स्पष्ट तौर पर चंद्रशेखर ने केवल इतना ही कहा है कि वह बनारस से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ लोकसभा चुनाव लड़ेंगे। लेकिन राजनीतिक हलकों में इसे कोई अंतिम वाक्य नहीं माना जा रहा है क्योंकि राजनीति में कुछ भी अंतिम नहीं माना जाता और वक्त के मुताबिक चीजें बदलती रहती हैं। इसी तर्क के आधार पर तेजी के साथ कयास भी लगाए जाने लगे हैं। इसमें मजबूती मिली प्रियंका की मुलाकात से। यहां यह ध्यान में रखने की जरूरत है कि कांग्रेस उत्तर प्रदेश में कमजोर मानी जाती है। कारण कुछ भी हो सकते हैं लेकिन सपा-बसपा ने गठबंधन में औपचारिक तौर पर कांग्रेस को शामिल नहीं किया। ऐसा तब किया गया जब वक्त की जरूरत थी मजबूत विपक्षी एकता। ऐसे में एक तरह से कांग्रेस को या तो अकेला छोड़ दिया गया या वह खुद अकेले पड़ गई। तब कांग्रेस ने खुद को अपने दम पर खड़ा करने और चुनाव में जाने का फैसला लिया।

चंद्रशेखर से प्रियंका के मुलाकात की क्या है रणनीति

चंद्रशेखर से प्रियंका के मुलाकात की क्या है रणनीति

इतना ही नहीं, चुनाव में मजबूती से हस्तक्षेप करने के लिए ट्रंप कार्ड के रूप में प्रियंका गांधी को उतारा। प्रियंका गांधी ने सक्रिय राजनीति में आते ही कांग्रेस को मजबूती प्रदान करने की दिशा में काम करना शुरू किया और तमाम छोटे दलों, संगठनों और जनाधार वाले नेताओं को साथ लाने की कोशिशें शुरू कर दीं। चंद्रशेखर से अस्पताल में जाकर मुलाकात करने के पीछे कांग्रेस की यह रणनीति हो सकती है कि वह उन्हें अपने साथ जोड़ सके। दरअसल चंद्रशेखर के जरिये कांग्रेस दलितों और अल्पसंख्यकों को अपने पाले में लाने की कोशिश में हैं। इसके पीछे कांग्रेस की यह सोची मानी जा रही है कि दलित और मुस्लिम बसपा और सपा दोनों से संतुष्ट नहीं हैं और ये दोनों ही समुदाय चंद्रशेखर के साथ जुड़ाव महसूस कर रहे हैं। अगर चंद्रशेखर किसी भी रूप में कांग्रेस के साथ जुड़ जाते हैं तो इसका दूरगामी फायदा कांग्रेस हासिल कर सकती है। बहुत ज्यादा नहीं तो कम से कम पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को जरूर लाभ पहुंच सकता है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि कुछ दिन पहले ही एक बड़ी नेता सावित्री बाई फुले कांग्रेस में शामिल हुई हैं जो वर्तमान में भाजपा सांसद हैं और बहराइच व आसपास के इलाकों में बड़ी दलित नेता के रूप में उनकी पहचान है। बहरहाल, अभी सब कुछ राजनीतिक चर्चाओं में ही है। यह देखने की बात होगी कि क्या अपने दम पर चंद्रशेखर बनारस से मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ते हैं, सपा-बसपा गठबंधन को समर्थन करते हैं अथवा कांग्रेस के साथ किसी गठबंधन में जाते हैं। लेकिन इतना तय माना जा रहा है कि अकेले लड़ने अथवा कांग्रेस के साथ जाने दोनों ही स्थितियों में चंद्रशेखर और उनकी भीम आर्मी भाजपा और सपा-बसपा गठबंधन के लिए परेशानी का सबब बन सकते हैं।

(इस लेख में व्यक्त विचार, लेखक के निजी विचार हैं. आलेख में दी गई किसी भी सूचना की तथ्यात्मकता, सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं।)

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English summary
Lok Sabha Elections 2019: Will Bhim Army Chief Chandrashekhar be a big trouble for BJP and BSP.
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